इन दिनों आर्थिक मंदी के संकेत नजरअंदाज करने लायक नहीं हैं। औद्योगिक उत्पादन से लेकर बिजली उत्पादन, निर्यात या वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से मिलने वाला राजस्व, सबमें कमी के संकेत मिल रहे हैं। हालांकि कुछ संकेतकों से धोखा भी हो जाता है जैसे कि बैंक ऋण लगभग 14 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। लेकिन जब थोक मूल्य मुद्रास्फीति 12.4 प्रतिशत के स्तर पर हो तब अधिकांश वृद्धि केवल सामान्य कीमत बढ़ोतरी को दर्शाती है। वाणिज्यिक वस्तु निर्यात की बात करें तो इसमें शुरुआत में पिछले साल से चली आ रही तेज रफ्तार बरकरार थी। लेकिन सितंबर तक न केवल इसकी तेजी थमी बल्कि महीने के दौरान इसमें 3.5 प्रतिशत तक की कमी आई। इसके पूरे विवरण को समझना चिंता बढ़ाने के लिए काफी था। इंजीनियरिंग वस्तुओं का निर्यात सितंबर में 17 प्रतिशत तक घट गया जबकि कपड़े (धागे, परिधान आदि) में 31.5 प्रतिशत की गिरावट आई। इलेक्ट्रॉनिक सामान के निर्यात में तेज उछाल (64 प्रतिशत तक) देखी गई लेकिन यह नुकसान की पूरी भरपाई नहीं कर सका और वैसे भी इस क्षेत्र से घरेलू स्तर पर मूल्यवर्धन में कम योगदान है। कुल नतीजों को देखें तो संकेत मिलते हैं कि पहले छह महीने में वाणिज्यिक वस्तुओं का व्यापार घाटा लगभग दोगुना हो गया है। पूरे वर्ष के लिए चालू खाते का घाटा (सेवा क्षेत्र में व्यापार सहित) एक दशक के उच्चतम स्तर तक पहुंचने का अनुमान है। बिजली उत्पादन क्षेत्र की कहानी भी निर्यात क्षेत्र जैसी ही है। साल के शुरुआती महीनों में बिजली उत्पादन की मात्रा बढ़ी थी, लेकिन अगस्त तक वृद्धि कम हो गई थी और आंकड़े मूल रूप से सपाट स्तर पर थे। इसे पिछले साल (2021-22) की बिजली उत्पादन की पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए जो चार साल पहले वर्ष 2017-18 की तुलना में केवल 1 प्रतिशत अधिक था। जहां तक औद्योगिक उत्पादन सूचकांक की बात है तो जुलाई में वृद्धि दर 2.4 प्रतिशत रही जबकि अगस्त के दौरान ‘बुनियादी ढांचे से जुड़े क्षेत्र’ (इस्पात, सीमेंट, उर्वरक और विभिन्न ऊर्जा कारोबार) में उत्पादन वृद्धि नौ महीने के निचले स्तर 3.3 प्रतिशत पर आ गई। जीएसटी के आंकड़े भी सामने आ रहे हैं। अप्रैल में 1.68 लाख करोड़ रुपये के राजस्व के बाद (इसमें मार्च में वार्षिक उत्पादन वृद्धि भी शामिल है), इसके बाद के महीनों के आंकड़े 1.41 लाख करोड़ रुपये, 1.44 लाख करोड़ रुपये, 1.49 लाख करोड़ रुपये और 1.43 लाख करोड़ रुपये थे। सितंबर में संग्रह 1.45 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। अगर अर्थव्यवस्था सपाट स्तर की ओर बढ़ रही है तब प्रत्यक्ष कर संग्रह में तेज उछाल को कैसे समझा जा सकता है? निराशाजनक संकेतकों वाली परिस्थितियों के बीच एक उम्मीद की किरण यह है कि कॉरपोरेट जगत के मुनाफे में वृद्धि जारी है, हालांकि लागत वृद्धि का मतलब यह है कि मार्जिन नौ तिमाहियों में अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। अप्रैल-जून के आंकड़े में करीब 3,000 सूचीबद्ध कंपनियों के शुद्ध लाभ में 22.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, लेकिन इसमें वित्तीय क्षेत्र की सेहत में सुधार से मजबूती मिली। इसे छोड़ने पर यह आंकड़ा घटकर 16.3 प्रतिशत रह गया। इसके अलावा, आधा दर्जन बड़ी कंपनियों के मुनाफे में बढ़ोतरी हुई जिसका वृद्धि में योगदान था। गौर करने वाली बात यह है कि शेयर बाजार के प्रमुख सूचकांक एक साल पहले के मुकाबले आज निचले स्तर पर हैं और इसके साथ ही रुपया और कमजोर हो सकता है। ज्यादातर बुरी खबरों (सभी के लिए नहीं) के लिए बाहरी कारक जिम्मेदार हैं, जिनमें तेल की अधिक कीमतें, आपूर्ति में बाधा, डॉलर में तेजी और वैश्विक आर्थिक मंदी जैसी वजहें शामिल हैं। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि इस वक्त हम एक कठिन दुनिया में जी रहे हैं और हमें वृद्धि की उम्मीदों को संयमित तरीके से देखना होगा। भारतीय रिजर्व बैंक के पूरे साल के लिए 7 फीसदी वृद्धि दर के पूर्वानुमान के साथ अलग-अलग आंकड़ों वाली तस्वीर के संतुलन को समझना मुश्किल है। हालांकि विश्व बैंक 6.5 प्रतिशत के संशोधित पूर्वानुमान के साथ इस स्तर के करीब होगा। इस बीच केंद्रीय बैंक, महंगाई की ऊंची दर और कम वृद्धि में फंसा हुआ है। दस साल के ट्रेजरी बॉन्ड का प्रतिफल पिछले एक साल में 6.27 फीसदी से बढ़कर लगभग 7.45 फीसदी हो गया है, जिससे यह पिछले एक दशक में प्रतिफल की सीमा के लगभग मध्य में आ गया है। आरबीआई मुद्रास्फीति से जूझ रहा है और अगर ऐसे में प्रतिफल और बढ़ता है तब वृद्धि की गुंजाइश को और धक्का पहुंचेगा। कर में तेजी से मदद हासिल करने और इस चुनौती का मुकाबला करने के लिए सरकार बाजार से कम उधार ले सकती है और ब्याज दरों को नियंत्रण में रख सकती है। लेकिन अगर वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में वृद्धि दर 4 प्रतिशत से नीचे चली जाती है तब हैरान न हों, महामारी से पहले के वर्ष के दौरान भी यह इसी स्तर पर थी।
