मालिनी शाह (बदला हुआ नाम) अपनी बेटी को अमेरिका से वापस बुलाने की सोच रही हैं। उनकी बेटी को अमेरिका गए अभी कुछ ही हफ्ते हुए हैं। वह अमेरिका के एक विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग में स्नातक करने गई है। मालिनी शाह जो दिल्ली में एक शिक्षिका हैं, वह बताती है कि जब अपनी बेटी को अमेरिका में पढ़ने भेजने की तैयारी शुरू कर रही थी उस समय 1 डॉलर 76 से 77 रुपये के बीच था। लेकिन जब मैने अपनी बेटी के फॉल सेमेस्टर (सितंबर से दिसंबर) तक की फीस जमा की, उस समय तक रुपये का मूल्य गिर चुका था। जिस कारण से मुझे 3.5 से 4 लाख रुपये तक का अतिरिक्त भुगतान करना पड़ा। मालिनी शाह अब तक 28 लाख रुपये खर्च कर चुकी है। जिसमें फीस, हवाई यात्रा, किराए पर घर लेने और रहने का खर्च शामिल है। यह सारे पैसे उन्होंने अपनी सेविंग से खर्च किए हैं। जिस प्रकार से रुपया गिर रहा है उस हिसाब से आगे की चार साल की पढ़ाई के लिए एजुकेशन लोन लेना उन्हें सही प्रतीत नहीं हो रहा है।Collegify के सह संस्थापक और निदेशक आदर्श खंडेलवाल कहते है कि जो भारतीय छात्र बाहर पढ़ने जाना चाहते हैं उनको दोहरा नुकसान उठाना पड़ता है। एक तो रुपये का गिरता मूल्य और दूसरे विश्वविद्यालयों की बढ़ी हुई फीस के कारण उन्हें दोहरी मार सहना पड़ता है। अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालयों ने 10 फीसदी की फीस वृद्धि की है।अमेरिका में स्नातक प्रोग्राम की फीस 55,000 से 60,000 डॉलर प्रति वर्ष से बढ़कर अब 65,000 से लेकर 70,000 डॉलर प्रति वर्ष हो गई हैं। इसके अलावा अभी हाल ही में डॉलर के मुकाबले रुपया कम से कम 2 रुपये कमजोर हुआ है। इसके साथ ही 3.5 फीसदी चार्ज बैंकों को रुपये भेजने के लिए देने पड़ते है। इस प्रकार रुपया के 80 पार हो जाने के कारण अतिरिक्त 1.5 से 2 लाख रुपये तक का दबाव छात्रों पर पड़ रहा है।पिछले कुछ सालों से कुछ एजुकेशन लोन देने वाली फर्में खासकर स्टार्टअप सीधे विश्वविद्यालय को ही डॉलर में ऋण देने लगे हैं। लेकिन अभी भी ज्यादातर भारतीय रुपये में ही लोन लेते हैं। रुपये में लोन लेकर डॉलर में फीस चुकाने के कारण एक डॉलर में 2 से 3 रुपये का नुकसान उठाना पड़ता है। MPOWER फाइनैंसिंग के उपाध्यक्ष अश्वनी कुमार कहते है कि इन्ही सभी चिंताओं को देखते हुए हमने अपनी कंपनी बनाई है। हमने 400 से अधिक अमेरिका और कनाडा के विश्वविद्यालयों से पार्टनरशिप कर रखी है। जिससे हम विश्वविद्यालय को ही फीस का भुगतान कर देते हैं। यह भुगतान छात्रों की तरफ से डॉलर में होता है । जिससे बाहर दूर देश जाकर पढ़ने वाले छात्र बिना किसी चिंता के अपनी पढ़ाई कर सके। उन्हे मुद्रा में होने वाले उतार चढाव की चिंता ना करनी पड़े।हालांकि अधिकांश एजुकेशन लोन फ्लोटिंग रेट पर दिए जाते हैं । जिस वजह से करेंसी में उतार -चढाव का असर लोन के रिपेमेंट पर पडता है। इससे ट्यूशन फीस भी एकसमान नहीं रह पाती है। हालिया समय में में हवाई किराए में हुई 50-60 फीसदी तक की बढ़ोतरी जैसे अन्य खर्चों ने भी बड़ी संख्या में छात्रों के लिए विदेशी शिक्षा पाना कठिन बना रहे हैं। लेकिन बढ़ते खर्च के बावजूद विदेश में शिक्षा प्राप्त करने के लिए आए आवेदनों में 55 फीसदी की वृद्धि हुई हैं। इस वृद्धि की शुरुआत पिछले साल से शुरू हुई है। अंतरराष्ट्रीय छात्रों के रहने की व्यवस्था करने वाले यूनिवर्सिटी लिविंग ने भारत और चीन जैसे देशों से बाहर पढ़ने जाने वाले छात्रों की संख्या में अधिक वृद्धि देखी है। इसने अपनी सेवाओं के लिए होने वाली पूछताछ में 5 गुना वृद्धि देखी हैं। नोएडा संचालित यूनिवर्सिटी लिविंग के संस्थापक और सीईओ सौरभ अरोड़ा कहते हैं कि हम कोशिश कर रहे हैं कि ज्यादा से ज्यादा छात्रों को उनके विश्वविद्यालयों के पास अच्छे से रहने को घर मिल सके। लेकिन हम हर 10 में से चार छात्रों की ही मदद कर पा रहे हैं। एक आपूर्ति संकट भी है क्योंकि यह स्थान अंतरराष्ट्रीय छात्रों की और संख्या को रखने में सक्षम नहीं है। उन्होंने कहा कि महंगाई के साथ-साथ इसने छात्रों को रहने को और मुश्किल बना दिया हैं। यूनिवर्सिटी लिविंग के आंकड़ों के अनुसार- इस साल लगभग 1,20,000 भारतीय छात्र ब्रिटेन जा रहे हैं। जिनमें से कम से कम 25 फीसदी सही रहने की जगह खोजने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इसके अलावा 7,500-10,000 ऐसे भारतीय छात्र है जो यूके में किसी भी तरह रहने को तैयार है। इस बीच अमेरिका के पास अधिक जमीन होने के कारण वहां रहने की लागत थोड़ा अलग होती हैं। अरोड़ा कहते हैं कि अमेरिका में एक छात्र के रहने की लागत 9,800 से 14,400 डॉलर प्रति वर्ष के बीच आ सकती है। ऑस्ट्रेलिया के कई शहरों में किराए में 20 फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई है। वहां अधिक घर भी किराए के लिए खाली नहीं है। समुदाय-आधारित ऑनलाइन प्लेटफॉर्म Yocket के सह-संस्थापक सुमित जैन कहते हैं कि इन मुश्किलों को देखते हुए कुछ छात्र अपने विदेश में पढ़ने की योजना को छोड़ रहे हैं। हम जनवरी 2023 की स्थिति के बारे में अभी कुछ भी नहीं कह सकते हैं।यह वाणिज्य दूतावासों पर निर्भर करता है कि वह इस संकट से कैसे निपटते हैं। वह कहते है कि रुपये की इस गिरावट ने मुश्किल खड़ी कर दी है लेकिन मुझे उम्मीद है कि नए साल तक इस स्थिति में सुधार आ जाएगा।
