इक्विटी बाजारों में काफी उथलपुथल के बावजूद देसी निवेशक इस साल अभी तक के लिहाज से दो फीसदी से कम के नुकसान पर हैं। हालांकि विदेशी निवेशकों के मामले में स्थिति अलग है, जिन्होंने साल की शुरुआत से भारतीय बाजारों में निवेश किया है। भारतीय इक्विटी का प्रदर्शन अन्य बाजारों के मुकाबले बेहतर रहने के बावजूद डॉलर के मुकाबले रुपये में आई गिरावट ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों का घाटा दो अंकों में पहुंचा दिया है। बेंचमार्क सेंसेक्स के लिए डॉलर में रिटर्न की माप करने वाला डॉलेक्स 30 में 10.7 फीसदी की गिरावट आई है जबकि पिछले तीन साल के दौरान इसमें 50 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई थी। इस अवधि में सेंसेक्स 61 फीसदी चढ़ा है। पिछले दशक में विदेशी निवेशकों का रिटर्न साल 2017 में दमदार रहा था क्योंकि तब सेंसेक्स में स्थानीय मुद्रा के लिहाज से 28 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी जबकि अमेरिकी डॉलर के लिहाज से 36 फीसदी का इजाफा हुआ था। हालांकि रुपये पर दबाव ने इस साल रिटर्न पर काफी चोट पहुंचाई है। अगर रुपये में और गिरावट आती है तो विदेशी निवेशकों के रिटर्न पर और चोट पड़ सकती है और भारतीय बाजारों में उनकी तरफ से भविष्य में होने वाले निवेश पर असर दिख सकता है। अक्टूबर 2021 से जून 2022 के बीच एफपीआई ने देसी बाजारों से 2 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की निकासी की है। हालांकि इस अवधि में रुपये को भारतीय रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप से थोड़ा सहारा मिला था। पर आरबीआई का विदेशी मुद्रा भंडार घट रहा है, ऐसे में उस समय केंद्रीय बैंक के हाथ बंध सकते हैं जब अमेरिकी बॉन्ड का प्रतिफल व मुद्रा में तेजी से बढ़ोतरी हो रही हो। स्वतंत्र बाजार विश्लेषक अजय बोडके ने कहा, आरबीआई वैसे देश में निवेशको प्राथमिकता देते हैं जहां की मुद्रा मध्यम अवधि में बढ़ने की संभावना है क्योंकि इससे सुनिश्चित होता है कि पूंजी वापसी के समय उनका रिटर्न कम न हो जाए। अमेरिकी फेडरल रिजर्व सख्ती बरत रहा है, ऐसे में उभरते बाजारों में जोखिम न लेने की इच्छा के कारण ही देश से पूंजी की निकासी हो रही है। आरबीआई को नजर रखनी चाहिए कि निवेश निकासी में तेजी न आने पाए। बाजार के विशेषज्ञों ने कहा कि मौजूदा जोखिम निवेशकों के लिए अहम बन गया है क्योंकि ज्यादातर वैश्विक मुद्राओं पर चोट पड़ी है। हाल तक भारतीय रुपये का प्रदर्शन क्षेत्रीय मुद्राओं के मुकाबले बेहतर था, जिसकी वजह आर्थिक फंडामेंटल में मजबूती थी। हालांकि डॉलर के मुकाबले रुपया 82 की ओर बढ़ रहा है, ऐसे में उसके आर्थिक फंडामेंटल की परख हो सकती है। साथ ही मौजूदा परिस्थितियों के कारण एफपीआई की निवेश निकासी में तेजी आ सकती है। जुलाई में एफपीआई देसी बाजारों में नौ महीने बाद शुद्ध खरीदार बने थे। जुलाई में उनका निवेश 61.8 करोड़ डॉलर और अगस्त में 6.4 अरब डॉलर रहा, जिससे बाजार अपने सर्वोच्च स्तर के आसपास पहुंच गया। हालांकि सोमवार को करीब 5,000 करोड़ रुपये की निकासी के बाद सितंबर के निवेश आंकड़े ऋणात्त्मक हो सकते हैं। विश्लेषकों ने कहा, अमेरिका में बॉन्ड प्रतिफल ज्यादा होने और देसी बाजारों में स्प्रेड कम रहने के कारण आगामी निवेश सिकुड़ा रह सकता है। पिछले एक महीने में 10 वर्षीय अमेरिकी ट्रेजरी और भारत सरकार की 10 वर्षीय प्रतिभूतियों का स्प्रेड 100 आधार अंक घटकर 360 आधार अंक रह गया है। आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज के अध्ययन से पता चलता है कि स्प्रेड में कमी से इक्विटी बाजार का मूल्यांकन सिकुड़ सकता है।
