मूल्य निर्धारण दबाव घटने, अमेरिका में जेनेरिक से जुड़ी जटिलताएं बढ़ने, भारत व उभरते बाजार में विकास संभावनाओं से दवा उद्योग को मजबूत खुराक मिलने की संभावना है निफ्टी फार्मा इंडेक्स पिछले साल के दौरान सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला दूसरा निफ्टी सेक्टोरल सूचकांक था और इसमें 13 प्रतिशत से ज्यादा की कमजोरी आई। दो साल की अवधि के दौरान भी इसका कमजोर प्रदर्शन बरकरार रहा। यह एक अंक (6 प्रतिशत) का प्रतिफल देने वाला एकमात्र सूचकांक रहा। अमेरिकी बाजार में मूल्य निर्धारण दबाव, बढ़ती कच्चे माल की लागत, नियामकीय चुनौतियां, भारतीय बाजार में कई सेगमेंटों में असमान वृद्धि (फॉर्मूलेशन और एपीआई सेगमेंट दोनों में) ऐसे कुछ कारण थे, जिनकी वजह से निवेशक दवा निर्माताओं से दूर बने रहे। 2022-23 की अप्रैल-जून तिमाही में वित्तीय परिणाम ने शायद इस क्षेत्र के लिए वृद्धि संबंधित चिंताओं को बढ़ाया है। बड़ी कंपनियों के राजस्व में करीब 30-40 प्रतिशत योगदान देने वाले अमेरिकी व्यवसाय में सालाना आधार पर 4 प्रतिशत की गिरावट आई है। ऐक्सिस कैपिटल के अनुसार, यह गिरावट कीमतों में कमी और ऊंची प्रतिस्पर्धा की वजह से दर्ज की गई, जैसा कि ल्यूपिन और सिप्ला के मामले में उनके ब्रोवेना के जेनेरिक वर्सन के लिए देखा गया। इस ब्रॉनोडायलेटर का इस्तेमाल ऑब्सट्रटिक पल्मोनरी रोग के उपचार में किया जाता है। भारतीय व्यवसाय की वृद्धि सालाना आधार पर 2 प्रतिशत तक घटी, क्योंकि इस पर कोविड की वजह से प्रभाव पड़ा। इस क्षेत्र के लिए तिमाही में बड़ा प्रभाव मार्जिन के मोर्चे पर दर्ज किया गया था। तिमाही में परिचालन मुनाफा मार्जिन सालाना आधार पर 400 आधार अंक तक घट गया, क्योंकि कच्चे माल की कीमतों पर दबाव देखा गया जिससे सकल मार्जिन पर भी नकारात्मक असर हुआ। सेंट्रम रिसर्च की शोध विश्लेषक अल्का कटियार का कहना है, ‘तिमाही का प्रदर्शन हमारे अनुमानों के अनुसार काफी हद तक कमजोर रहा, क्योंकि इस अवधि के दौरान भारी मार्जिन दबाव और आय में कमजोरी दर्ज की गई। तिमाही प्रदर्शन बढ़ती कच्चे माल की लागत, माल ढुलाई लागत, परिचालन खर्च में वृद्धि की वजह से प्रभावित हुआ जिससे मार्जिन पर भी नकारात्मक असर दिखा।’ इसके अलावा, नियामकीय चुनौतियों की वजह से सन फार्मास्युटिकल इंडस्ट्रीज, डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज, जाइडस हेल्थकेयर, ल्यूपिन, टॉरंट फार्मास्युटिकल्स, और सिप्ला जैसी जेनेरिक कंपनियों की समस्याएं बढ़ने का अनुमान है। मोतीलाल ओसवाल रिसर्च में विश्लेषक तुषार मनुधाने का कहना है, ‘ऑफीशियल एक्शन इनीशिएटेड (ओएआई- अत्यधिक नियामकीय जोखिम से संबंधित) प्रमाणन की संख्या बढ़ने, उपचारात्मक कदमों के क्रियान्वयन के बाद अमेरिकी दवा नियामक द्वारा निरीक्षण में विलंब, और अनुपालन की बढ़ती जरूरतों ने भारतीय दवा कंपनियों के लिए नियामकीय जोखिम बढ़ा दिए हैं। ओएआई प्रमाणन की लंबी अवधि ने संबंधित संयंत्रों से दवा मंजूरी में विलंब को बढ़ावा दिया है।’ हालांकि कुछ कंपनियों ने संभावित नियामकीय कदमों के जोखिम को कम करने के लिए वैकल्पिक संयंत्रों से आवेदन करने पर जोर दिया है, लेकिन इसकी वजह से इन संयंत्रों में कम इस्तेमाल दर और प्रतिफल अनुपात को बढ़ावा मिला है। इन चिंताओं और आधार पोर्टफोलियो में मौजूदा कीमत गिरावट को देखते हुए मोतीलाल ओसवाल रिसर्च ने ग्लैंड फार्मा और लौरुस लैब्स जैसी कंपनियों को पसंद किया है, जिन्होंने अपने जेनेरिक प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले बेहतर अनुपालन में सफलता हासिल की है। हालांकि अन्य ब्रोकरों का मानना है कि कमजोर प्रदर्शन कर रहे फार्मा क्षेत्र का रिस्क-रिवार्ड भविष्य में अधिक अनुकूल बनाने वाले कई कारक मौजूद हैं। सिस्टमैटिक्स इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के विश्लेषकों विशाल मनचंदा और बेजाड देबू ने ऐसे चार कारकों की पहचान की है जो इस क्षेत्र के सकारात्मक परिदृश्य से जुड़े हुए हैं। ये हैं - नरम पड़ रहा मुद्रास्फीति दबाव, अमेरिकी बाजार में कम कीमत गिरावट, कॉम्पलेक्स जेनेरिक्स में बिक्री के अवसर, और ब्रांडेड फॉर्मूलेशन में विकास संभावनाएं। ब्रोकरेज ने सन फार्मा, सिप्ला, डॉ. रेड्डीज, अजंता फार्मा, और इंडोको रेमेडीज पर ‘खरीदें’ रेटिंग दी है। ब्रोकरेज का मानना है कि बड़े अमेरिकी जुड़ाव वाली कंपनियां कीमतों पर बढ़ते दबाव और क्रियान्वयन से जुड़ी अनिश्चितता की वजह से गिरावट पर कारोबार कर रही हैं और हालात बदलने पर परिणाम सकारात्मक हो सकता है। अमेरिकी बाजार के अलावा, दलाल पथ भारतीय बाजार के परिदृश्य पर भी उत्साहित है, जो कीमत वृद्धि की मदद से लगातार तीसरे महीने (अगस्त में) अच्छी बढ़त दर्ज करने में कामयाब रहा।
