दर वृद्धि के बाद क्रेडिट रिस्क फंडों को छोड़कर कई डेट फंड निवेशकों में अपना भरोसा लौटाने में सफल रहे हैं। इन ज्यादा जोखिम वाली योजनाओं का यील्ड-टु-मैच्युरिटी (वाईटीएम) अभी भी 8 प्रतिशत या कॉरपोरेट बॉन्ड फंडों जैसी सुरक्षित फंड श्रेणियों के वाईटीएम (7-7.25 प्रतिशत) के मुकाबले कुछ बेहतर है। इसके अलावा, यदि फंड प्रबंधन खर्च या एक्सपेंस रेशियो पर ध्यान दिया जाए तो दोनों श्रेणियों में मामूली दर अंतर है। क्रेडिट रिस्क फंडों का एक्सपेंस रेशियो करीब 1 प्रतिशत है, जो कॉरपोरेट बॉन्ड फंडों के 0.3 प्रतिशत के मुकाबले काफी अधिक है। इसके परिणामस्वरूप, दोनों योजनाओं की श्रेणियों का शुद्ध प्रतिफल अब करीब 7 प्रतिशत के समान है, जिससे निवेशकों के लिए ज्यादा जोखिम उठाने के लिए कम गुंजाइश रह गई है। डेट योजनाओं का वाईटीएम आगामी प्रतिफल का अच्छा संकेतक है। क्रेडिट रिस्क फंडों पर निवेशकों ने महामारी फैलने के बाद से कम ध्यान दिया है। वर्ष 2020 में, कई डाउनग्रेड और कॉरपोरेट पत्रों में चूक के बीच इन योजनाओं से 35,710 करोड़ रुपये की शुद्ध निकासी दर्ज की गई थी। इसके परिणामस्वरूप, इस श्रेणी के लिए प्रबंधन अधीन परिसंपत्तियां दिसंबर 2020 में घटकर 28,500 करोड़ रुपये रह गईं, जो फरवरी 2020 में 62,000 करोड़ रुपये थीं। इस साल अगस्त तक, क्रेडिट रिस्क फंडों की एयूएम 26,260 करोड़ रुपये थी, जो महामारी-पूर्व स्तर का एक छोटा हिस्सा है। इस निवेश में कमी आई है, क्योंकि प्रतिफल घटा है। वैल्यू रिसर्च के आंकड़े के अनुसार, इन योजनाओं का तीन वर्षीय प्रतिफल 6.37 प्रतिशत की सालाना वृद्धि दर से बढ़ा, जबकि एक वर्षीय प्रतिफल 6.9 प्रतिशत पर रहा है। ऐसी 16 में से 10 योजनाओं ने 6 प्रतिशत से कम प्रतिफल दिया है। विश्लेषकों का मानना है कि पिछले कुछ वर्षों में क्रेडिट रिस्क फंडों के कमजोर प्रदर्शन के पीछे कई कारक जिम्मेदार रहे हैं। इसमें ऊंचा फंड प्रबंधन शुल्क भी मुख्य वजह है। इंटरनैशनल मनी मैटर्स के वरिष्ठ उपाध्यक्ष (शोध) राहुल जैन का कहना है, ‘वे अपने ब्रांड को नुकसान नहीं पहुंचाने को लेकर बेहद सतर्कता दिखा रहे हैं। कोई भी ऐसी कंपनी में निवेश नहीं करना चहेगा, जो चूक से जुड़ी रही हो। वे कम रेटिंग वाले पत्रों में न्यूनतम निवेश शर्तों को पूरा करते हैं, लेकिन सिर्फ यही पर्याप्त नहीं है। इसकी वजह यह है कि कॉरपोरेट बॉन्ड फंड जैसी सुरक्षित समझी जाने वाली योजनाएं भी प्रतिफल बढ़ाने के लिए कुछ हिस्सा कम रेटिंग के पत्रों में निवेश करती हैं।’ भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने क्रेडिट रिस्क फंडों के लिए अपनी कुल परिसंपत्तियों का कम से कम 65 प्रतिशत हिस्सा ‘एए’ या इससे कम रेटिंग के पत्रों में निवेश करना अनिवार्य बनाया है। वैल्यू रिसर्च के आंकड़े में कहा गया है कि ‘एए’ या इससे कम रेटिंग के पत्रों में क्रेडिट रिस्क फंडों का औसत निवेश 54.5 प्रतिशत (14 सितंबर तक) के साथ कम है। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि भविष्य में वाईटीएम में सुधार आएगा और क्रेडिट रिस्क फंड फिर से कुछ खास निवेशकों के लिए अनुकूल साबित हो सकते हैं।
