कर्ज में डूबी पंजाब सरकार की तरफ से आए इस बयान के साथ ही कि वह पुरानी पेंशन प्रणाली को फिर से बहाल करने पर विचार कर रही है, पुरानी पेंशन प्रणाली (ओपीएस) और नई पेंशन प्रणाली (एनपीएस) के तुलनात्मक लाभों पर बहस फिर से छिड़ गई है । छत्तीसगढ़ और राजस्थान सरकारें पहले ही पुरानी पेंशन प्रणाली को अपना चुकी हैं।इसके अलावा, कांग्रेस ने भी सोमवार को गुजरात में मतदाताओं से वादा किया कि वह इस साल के अंत में होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों में सत्ता में आने पर एनपीएस को ओपीएस से बदल देगी।मंगलवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने भी वडोदरा में एक टाउन हॉल बैठक को संबोधित करते हुए लोगों से यही वादा किया।जहां एनपीएस में नियोक्ताओं और कर्मचारियों के योगदान को लेकर स्पष्टता है, वहीं ओपीएस में पेंशन को लेकर कोई अनिश्चितता नहीं है। फिलहाल पेंशन नियामक, पीएफआरडीए भी एक ऐसा उत्पाद पेश करने की प्रक्रिया में है जो एनपीएस के तहत सुनिश्चित रिटर्न देगा।इस उत्पाद (जो अभी तक आया नहीं है) के अलावा, एनपीएस के तहत रिटर्न की दर पर कोई आश्वासन नहीं है, भले ही यह वर्तमान में अन्य योजनाओं द्वारा दिए गए रिटर्न से अधिक है।1 जनवरी 2004 को या उसके बाद केंद्र सरकार की सेवा में शामिल होने वाले लोग एनपीएस के अंतर्गत आते हैं जहां सरकार और कर्मचारी समान रूप से कॉर्पस (corpus) में योगदान करते हैं। इस स्कीम में कर्मचारी की पसंद और दिए गए दिशा-निर्देशों के अनुसार, फंड को डेट या इक्विटी में निवेश किया जाता है। केद्र सरकार द्वारा इस पेंशन स्कीम को लागू किए जाने के बाद बाद, पश्चिम बंगाल को छोड़कर सभी राज्य सरकारें एनपीएस के दायरे में आ गईं। लेकिन अब छत्तीसगढ़ और राजस्थान ओपीएस में वापस आ गए हैं, जबकि पंजाब इस पर विचार कर रहा है।ओपीएस के तहत, एक बार जब कोई कर्मचारी सेवानिवृत्त हो जाता है, तो उसे अपने अंतिम वेतन (लास्ट ड्रान सैलरी) का एक हिस्सा (आमतौर पर 50 प्रतिशत) हर महीने पेंशन के रूप में मिलता है, जबकि हर छह महीने में मुद्रास्फीति से जुड़ी महंगाई राहत (डियरनेस रिलीफ) की घोषणा की जाती है।छत्तीसगढ़, राजस्थान और पंजाब ने 1 जनवरी 2004 को एनपीएस को अपनाया था।तो विपक्ष शासित राज्य सरकारों ने एनपीएस की शुरुआत के 18 साल बाद ओपीएस को क्यों अपनाया या वापस करने पर विचार कर रहे हैं?पीएफआरडीए के पूर्व अंतरिम अध्यक्ष डी स्वरूप ने कहा कि पुरानी पेंशन प्रणाली पर लौटने से सरकारी खजाने पर वित्तीय दबाव पड़ेगा लेकिन फिर भी कुछ राज्य इसे अपना रहे हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र ने 1 जनवरी 2004 से एक नई पेंशन प्रणाली को अपनाया है, जिसे पश्चिम बंगाल को छोड़कर हर राज्य ने अपनाया है।उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया, 'इन वर्षों में ऐसा क्या हुआ है जिसने राज्यों को ओपीएस में वापस जाने के लिए प्रेरित किया है।'इससे पहले, राजस्थान सरकार ने कहा था कि एनपीएस ने सरकारी कर्मचारियों के बीच असुरक्षा पैदा की है।स्वरूप ने कहा, "यह निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी कि एनपीएस ने सरकारी कर्मचारियों के बीच असुरक्षा पैदा कर दी है। लोगों को अभी तक इस स्कीम का लाभ भी नहीं मिला है, क्योंकि एक जनवरी, 2004 के बाद सरकारी सेवा में शामिल होने वाले लोग सेवानिवृत्त नहीं हुए हैं।"उन्होंने कहा, "एनपीएस के तहत कोई नीतिगत जोखिम नहीं है। तकनीकी रूप से कहें तो, एक नीतिगत जोखिम हो सकता था। लेकिन केंद्र सरकार के पास कभी भी धन की कमी नहीं होगी। लेकिन मान लें कि किसी विशेष राज्य के पास वेतन और पेंशन का भुगतान करने के लिए पैसे नहीं हैं। (ऐसे परिदृश्य में) ओपीएस के तहत डिफ़ॉल्ट हो सकता है।"पिनबॉक्स सॉल्यूशंस के सह-संस्थापक और निदेशक गौतम भारद्वाज, जो एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी और कैरिबियन (एलएसी) क्षेत्र में डिजिटल माइक्रो-पेंशन सिस्टम के डिजाइन और निर्माण में मदद करते हैं, ने कहा, "एनपीएस को लेकर राज्यों के पास अपर्याप्त समझ है। सुधार को उलटने के लिए वे ओपीएस में वापस आने से उत्पन्न होने वाली देयता (liabilities) की गणना करने में असमर्थ हैं।उन्होंने अपने और सेबी के पहले अध्यक्ष सुरेंद्र ए दवे द्वारा लिखित एक अध्ययन का हवाला दिया, जिसमें दिखाया गया था कि निहित पेंशन ऋण (आईपीडी) 2006-07 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 65 प्रतिशत था। IPD कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) की कर्मचारियों की पेंशन योजना के फंडिंग गैप के साथ-साथ केंद्र और राज्य सरकार के कर्मचारियों और कुछ अन्य लोगों से किए गए भविष्य के पेंशन वादों का शुद्ध वर्तमान मूल्य है।उन्होंने कहा कि सरकारी कर्मचारियों की पेंशन में जाने वाले पैसे का इस्तेमाल शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे पर किया जा सकता है।पंजाब की माली हालत विशेष रूप से अस्थिर है, सरकार द्वारा दी जाने वाली पेंशन 2022-23 के दौरान 15,146 करोड़ रुपये होने का अनुमान है। यह वर्ष 2022-23 के लिए 45,588 करोड़ रुपये के राज्य के अपने कर राजस्व (ओटीआर) का एक तिहाई होगा। यदि इसे अन्य दो प्रतिबद्ध व्यय (वेतन और ब्याज) से जोड़ा जाए तो वित्त वर्ष 2022-23 के लिए राज्य का कुल खर्च 66,440 करोड़ रुपये होगा जो राज्य के ओटीआर से लगभग 46 प्रतिशत अधिक होगा। पंजाब की बकाया देनदारी वर्ष 2022-23 के लिए उसके सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का 48.5 प्रतिशत होने का अनुमान है। अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि गुजरात में किस पार्टी की सरकार बनेगी, क्योंकि राज्य विधानसभा के चुनाव की घोषणा अभी बाकी है। हालांकि, आर्थिक रूप से गुजरात कई अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर स्थिति में है। 2022-23 के लिए इसका पेंशन खर्च 17,590 करोड़ रुपये आंका गया है जो इसके ओटीआर का 15.31 प्रतिशत यानी 1.15 खरब/ट्रिलियन रुपये है। वेतन और ब्याज भुगतान को जोड़ने पर, राज्य का प्रतिबद्ध व्यय (committed expenditure) 82,731 करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जो वित्त वर्ष 2022-23 के लिए इसके ओटीआर का 72 प्रतिशत है। वर्ष के लिए सार्वजनिक ऋण उसके जीएसडीपी के 16 प्रतिशत के करीब रहने का अनुमान है। सोमवार को, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने ट्वीट किया, "मेरी सरकार पुरानी पेंशन प्रणाली को वापस लाने पर विचार कर रही है। मैंने अपने मुख्य सचिव को इसके कार्यान्वयन की व्यवहार्यता और तौर-तरीकों का अध्ययन करने के लिए कहा है। हम अपने कर्मचारियों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध हैं।" गुजरात में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अर्जुन मोढवाडिया ने संवाददाताओं से कहा था कि अगर पार्टी गुजरात में सत्ता में आती है तो कांग्रेस वही करेगी जो छत्तीसगढ़ और राजस्थान में उसकी सरकारों ने की थी। उन्होंने कहा, "गुजरात के उन सभी कर्मचारियों से हमारा वादा है जो 2004 या उसके बाद शामिल हुए थे कि सत्ता में आने पर हम यहां भी ऐसा ही करेंगे।" कुछ राज्यों द्वारा ओपीएस का बचाव पश्चिम बंगाल के तत्कालीन वित्त मंत्री असीम दासगुप्ता की याद दिलाता है जब उन्होंने 2007 में तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा एनपीएस को प्रमोट करने के लिए बुलाई गई राज्यों की एक बैठक में ओपीएस का दृढ़ता से बचाव किया था। बैठक के अंत में, चिदंबरम ने पत्रकारों को एनपीएस के गुणों के बारे में जानकारी दी, इसके तुरंत बाद दासगुप्ता ने पेंशन प्रणाली के नुकसान के बारे में आशंका व्यक्त की थी। उस समय, केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने 1993-94 से 2004-05 की पूरी अवधि को समग्र रूप से लेते हुए पेंशन व्यय में वृद्धि और कर राजस्व में पेंशन व्यय के अनुपात में वृद्धि का अनुमान लगाया था, और केंद्र सरकार के लिए लगभग 21 प्रतिशत और राज्यों के लिए 27 प्रतिशत पेंशन व्यय में वृद्धि दर का संकेत दिया था।। इसने 1993-94 से 2004-05 तक केंद्र सरकार के लिए पेंशन व्यय और कर राजस्व के अनुपात में 9.7 प्रतिशत से 12.6 प्रतिशत और राज्यों के लिए 5.4 प्रतिशत से 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि का अनुमान लगाया। इस अवधि (1993-94 से 2004-05) के दौरान पेंशन व्यय और कर राजस्व की प्रवृत्ति दर के आधार पर, मंत्रालय द्वारा पेंशन-कर राजस्व अनुपात में वृद्धि के संदर्भ में वित्तीय अस्थिरता के लिए प्रक्षेपण किया गया है। दूसरी ओर, दासगुप्ता ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने संबंधित अवधि को ध्यान में नहीं रखा। यदि राज्यों में मूल्य वर्धित कर (वैट) लागू होने के बाद की अवधि को ध्यान में रखा जाता, तो आंकड़े एक अलग तस्वीर पेश करेंगे। 1 अप्रैल 2005 से अधिकांश राज्यों में वैट लागू किया गया था। दासगुप्ता के अनुसार, राज्यों के कर राजस्व की वृद्धि दर वैट के बाद उल्लेखनीय रूप से बढ़ गई थी - मसलन बिक्री कर राजस्व में 12 प्रतिशत की ऐतिहासिक वृद्धि दर के मुकाबले वैट राजस्व में 20 प्रतिशत से अधिक की सालाना वृद्धि । उन्होंने यह भी कहा कि हाल के वर्षों में पेंशन की वृद्धि दर भी गिरने लगी है। उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल के लिए, पिछले तीन वित्तीय वर्षों (2004-05, 2005-06 और 2006-07) के दौरान, पेंशन व्यय में वृद्धि आम तौर पर 10 प्रतिशत से कम रही है।दासगुप्ता द्वारा दिए गए तर्कों को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया गया और देर से ही सही पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) विधेयक 2013 में यूपीए सरकार द्वारा पारित किया गया था, हालांकि एनपीएस को एक जनवरी 2004 से केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए अनिवार्य कर दिया गया था। लेकिन इन सब के बीच सत्ता में बदलाव के बावजूद एनपीएस को लेकर पश्चिम बंगाल की अपनी आशंका है। यह आशंका विपक्ष शासित कुछ अन्य राज्यों में भी फैल गई है।
