ऐसे समय में जब दुनिया के अधिकांश इलाकों में वृद्धि के अनुमानों को संशोधित करके घटाया जा रहा है, केंद्र सरकार इस बात को लेकर आश्वस्त नजर आ रही है कि भारत का प्रदर्शन बेहतर रहेगा। उदाहरण के लिए वित्त मंत्रालय की ताजा मासिक रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि धीमी वृद्धि और उच्च मुद्रास्फीति बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को परेशान कर रही है लेकिन भारत में वृद्धि मजबूत है और मुद्रास्फीति नियंत्रण में है। इस समाचार पत्र के साथ एक साक्षात्कार में मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने कहा है कि सरकार के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में भारत 7.2 फीसदी से 7.4 फीसदी की दर से वृद्धि हासिल करेगा। इसके अलावा उन्होंने कहा कि वैश्विक मंदी भारत के लिए बेहतर रहेगी क्योंकि इससे ईंधन आयात का बिल कम होगा और उससे विकसित देशों में मौद्रिक नीतियां प्रभावित होंगी। सरकार से यही उम्मीद की जाती है कि वह आशावादी तस्वीर पेश करेगी लेकिन साथ ही यह भी माना जाना चाहिए कि सरकार उन चुनौतियों को भी स्वीकार करेगी जो मध्यम अवधि में भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने आ सकती हैं। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वास्तविक वृदि्ध 13.5 फीसदी थी जो भारतीय रिजर्व बैंक के 16.2 फीसदी के अनुमान से काफी कम है। ऐसे में भले ही वर्ष की बाकी तिमाहियों में वृद्धि अपेक्षाओं के अनुरूप हो लेकिन पूरे वर्ष के आंकड़े रिजर्व बैंक के 7.2 फीसदी के अनुमान से कम रहेंगे। केंद्रीय बैंक से यही अपेक्षा है कि वह इस माह के अंत में वृद्धि के अनुमानों को संशोधित कर सकता है। इस बीच एशियाई विकास बैंक ने बुधवार को इस वर्ष के वृद्धि अनुमानों को 7.2 फीसदी से कम करके 7 फीसदी कर दिया। पूरे वर्ष के आंकड़े अपेक्षाकृत बेहतर नजर आते हैं क्योंकि पहली तिमाही की उच्च वृद्धि के पीछे कमजोर आधार एक वजह है। वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में वृद्धि के घटकर करीब चार फीसदी हो जाने का अनुमान है। इसके अलावा कहा जा रहा है कि मुद्रास्फीति नियंत्रण में है लेकिन इसकी दर पिछले आठ महीनों से रिजर्व बैंक के तय दायरे से ऊपर है। विधि अनुसार मुद्रास्फीति की दर के लगातार तीन तिमाहियों तक तय दायरे से ऊपर रहने को लक्ष्य प्राप्ति में विफलता माना जाएगा।हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार उच्च मुद्रास्फीति को बरदाश्त करने का मन बना चुकी है, लेकिन केंद्रीय बैंक को मौद्रिक सख्ती के साथ आगे बढ़ना होगा। फिलहाल निरंतर सख्ती बरतना आवश्यक है लेकिन इससे वृद्धि भी प्रभावित होगी। इसके अतिरिक्त वैश्विक माहौल के और खराब होने का अनुमान है। विश्व बैंक के एक नए अध्ययन के मुताबिक विश्व अर्थव्यवस्था 2023 में मंदी की शिकार हो सकती है क्योंकि केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में इजाफा कर रहे हैं और इससे उभरते बाजारों में वित्तीय संकट उत्पन्न हो सकता है। धीमी होती विश्व अर्थव्यवस्था और सख्त मौद्रिक हालात से भी जोखिम बढ़ेगा। उम्मीद की जाती रही है कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में एक बार फिर इजाफा करेगा। अमेरिका समेत तमाम विकसित देशों में मुद्रास्फीति की दर तय लक्ष्य से काफी ऊपर बनी हुई है ऐसे में ब्याज दरों के भी कुछ समय तक काफी ऊंचे स्तर पर बने रहने की संभावना है।कमजोर वृद्धि और वैश्विक स्तर पर सख्त वित्तीय हालात चालू खाते और पूंजी खाते दोनों पर नकारात्मक असर डालेंगे और ऐसे में वृहद अर्थव्यवस्था का अत्यधिक सावधानीपूर्वक प्रबंधन करने की आवश्यकता होगी। यह बात भी ध्यान देने लायक है कि वृद्धि को उच्च सरकारी बजट घाटे की मदद से सहायता प्रदान की जा रही है और इसे भी एक तय समय में कम करना ही होगा। ऐसे में संभव है कि भारत वर्ष के अंत तक चालू खाते के घाटे के मामले में अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति में रहे। मोटे तौर पर ऐसा इसलिए कि पहली तिमाही में प्रदर्शन अच्छा रहा है। परंतु वास्तविक मजबूती की परीक्षा वर्ष की दूसरी छमाही में तथा उसके बाद होगी।
