कृषि क्षेत्र की स्टार्टअप ने आधुनिकतम तकनीक को अपना कर किसानों की आय बढ़ाने के नए तरीके पेश किए हैं। इन स्टार्टअप ने भारतीय कृषि के तकनीक के आधार को ऊंचा करने की चुनौती को सफलतापूर्वक पूरा किया है। यह दायित्व कुछ समय पहले तक सरकारी विभाग और कृषि शोध एवं प्रसार से जुड़े सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थान ही निभा रहे थे लेकिन कृषि स्टार्टअप ने इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है। स्टार्टअप कृषि और कुछ ही अन्य क्षेत्रों में ऐसी उपलब्धि हासिल कर पाई हैं। ज्यादातर कृषि स्टार्टअप ने हाल ही में बाजार में कदम रखा है और उनका कारोबार तेजी से बढ़ रहा है। कृषि स्टार्टअप ज्यादातर परामर्श और चुनिंदा सेवाएं मुहैया कराती हैं। इन चुनिंदा सेवाओं में कृषि मशीनरी की 'कस्टम हायरिंग', ड्रोन सेवाएं, इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म के जरिये कृषि क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाले सामान की खरीद व बिक्री, कृषि कार्यों की दक्षता एवं सटीकता बढ़ाने के लिए उन्नत प्रौद्योगिकियां, जल संसाधन प्रबंधन और सूचना प्रौद्योगिकी शामिल हैं।ज्यादातर कृषि स्टार्टअप के कारोबार का मॉडल मुख्यतौर पर खेती में हाल में इस्तेमाल हो रही तकनीक और आधुनिकतम तकनीक के बीच की खाई को पाटने पर केंद्रित है। इन स्टार्टअप की पहल से किसानों को मूल्य श्रृंखला में अपने निवेश और श्रम का सबसे अच्छा प्रतिफल मिल पाया है। कई स्टार्टअप खेती से जुड़े अन्य सहयोगी कार्यों में जैसे डेरी, मुर्गी पालन, मछली पालन, सूअर पालन, मधुमक्खी पालन और ऐसे अन्य क्षेत्रों में अपनी सेवाएं मुहैया करा रही हैं। इनमें से कुछ स्टार्टअप सार्वजनिक-निजी भागीदारी के मॉडल के तहत सरकार की विभिन्न योजनाओं में साझेदारी करके आधिकारिक रूप से कृषि विकास योजनाओं को बढ़ावा देने में मदद कर रही हैं।देश में तकरीबन 70,000 स्टार्टअप हैं। इनमें से केवल पांच फीसदी ही कृषि क्षेत्र में हैं। बाकी स्टार्टअप सूचना प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, ई-कॉमर्स और अन्य तकनीक आधारित क्षेत्रों में हैं। खेती-किसानी में स्टार्टअप ने एक दशक पहले ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी लेकिन महामारी के दौरान साल 2021 बदलाव का दौर रहा। ग्रामीण क्षेत्रों में स्मार्टफोन का इस्तेमाल बढ़ने और किसानों के खुशी-खुशी नई तकनीक अपनाने से इस साल कृषि स्टार्टअप में निवेश तीन गुना बढ़ गया। वर्तमान समय कृषि की स्टार्टअप का व्यापारिक मूल्य तकरीबन 75,000-80,000 करोड़ रुपये है। इसमें रोचक बात यह है कि अन्य क्षेत्रों की स्टार्टअप की तुलना में कृषि क्षेत्र की स्टार्टअप को अपना कारोबार बढ़ाने के लिए विज्ञापन या कारोबार बढ़ाने के लिए खर्च नहीं करना पड़ा। यहां तक कि कृषि स्टार्टअप ने अपने ग्राहकों को सेवाओं या सामान के लिए छूट तक नहीं मुहैया कराई। कुछ कृषि स्टार्टअप 'यूनिकार्न' बन गई हैं यानी उनका कारोबार 100 करोड़ रुपये से अधिक हो गया है।ज्यादातर वित्तीय संस्थान पहले कृषि संबंधित उद्योगों में निवेश करने से हिचकिचाते थे। इन संस्थानों की आनाकानी करने का कारण यह था कि खेती में तकनीक का निम्न स्तर, फायदे की कम उम्मीद, खेती में अधिक जोखिम आदि थे। लेकिन वित्तीय संस्थानों ने अब अपनी बंदिशें तोड़कर कृषि स्टार्टअप को ऋण मुहैया कराना शुरू कर दिया था। इन संस्थानों का खेती के प्रति नजरिया बदल गया। खेती में देश की जरूरत से अधिक उत्पादन होने के कारण कई जिंसों का निर्यात होना शुरू हो गया। इन जिंसों में रोजमर्रा के खाने के अनाज, कच्चे व प्रसंस्कृत फल और सब्जियां, दूध, मांस और मत्स्य उत्पाद हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने वाणिज्यिक बैंकों को कृषि स्टार्टअप को 50 करोड़ रुपये तक का ऋण प्राथमिकता के आधार पर मुहैया कराने का स्वागत योग्य आदेश जारी किया था। इससे इन उद्यमों के लिए कोष की उपलब्धता बढ़ी। कृषि स्टार्टअप के निवेशकों में नामचीन वेंचर कैपिटल फंड, डेट फंड और ऐंजल निवेशक शामिल हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि नई तकनीक को हाथोहाथ अपनाने वाले युवा और उत्साही उद्यमी इस क्षेत्र की ओर आकर्षित हुए। इससे कृषि स्टार्टअप की संख्या में बढ़ोतरी हुई और इनसे कृषि व ग्रामीण विकास में मदद मिली।संयोगवश सरकार ने कृषि स्टार्टअप का महत्त्व समझा। सरकार ने इन स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल वातावरण, वित्तीय पहलें और मांगने पर अन्य सुविधाएं तत्काल उपलब्ध कराईं। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कहा था कि सरकार कृषि-तकनीक स्टार्टअप के लिए कोष की स्थापना करेगी। इन स्टार्टअप को मदद देने और खेती में ड्रोन का इस्तेमाल बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) से अधिक संसाधन मुहैया कराए जाएंगे। कृषि उत्पाद मूल्य श्रृंखला को मजबूत बनाने के लिए एक और विशेष कोष बनाया जाएगा। सीतारमण ने उम्मीद जताई थी कि कृषि आधारित स्टार्टअप से किसान उत्पादक संघों (एफपीओ) को मदद मिलेगी और इन संघों को जरूरी तकनीकी मदद मुहैया कराई जाएगी। उन्होंने यह भी बताया था कि फसल का आकलन, भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण, कीटनाशकों के छिड़काव और फसलों पर पोषक तत्त्वों के छिड़काव के लिए 'किसान ड्रोन' का इस्तेमाल किया जाएगा। सरकार की इन पहलों से यह स्पष्ट हो गया था कि सरकार कृषि आधारित स्टार्टअप की मदद से कृषि क्षेत्र का विकास करेगी। इन स्टार्टअप का विकास इस तरह किया जाएगा कि वे खेती के विकास में अहम भूमिका निभा सकें।दुर्भाग्य से कृषि स्टार्टअप और खेती व ग्रामीण क्षेत्र में उनका योगदान लिए जाने को लेकर सभी राज्यों में एक जैसा जोश नहीं है। राज्यों में कृषि स्टार्टअप को लेकर नीतियां भी अलग-अलग हैं। इससे देश में इन उद्यमों का एकसमान विकास नहीं हो पाया है। आमतौर पर कृषि स्टार्टअप हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक और महाराष्ट्र में ज्यादा सफल हुई हैं। लिहाजा अन्य राज्यों की सरकारों के लिए समय आ गया है कि वे खेती में विविधता के लिए कृषि स्टार्टअप को कार्य करने की बेहतरीन सुविधा मुहैया कराएं। कृषि स्टार्टअप के ज्ञान और तकनीक आधारित विकास की मदद ली जा सके। कृषि स्टार्टअप को भी बड़े पैमाने पर सेवा-प्रदाता से लेकर मूल्य वर्धित कृषि उत्पादों के उत्पादकों और विपणनकर्ताओं तक विविधता लाने की जरूरत है। यह उनके लिए और किसानों तथा उपभोक्ताओं के वास्ते भी फायदेमंद होगा।
