पढ़ने-लिखने के डिजिटल माध्यमों की बढ़ती लोकप्रियता ने किताबों के पाठक निश्चित तौर पर कम किए हैं लेकिन अभी भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो ऑफलाइन किताबें पढ़ना बेहतर समझते हैं। वहीं ऑनलाइन पढ़ने में रुचि लेने वालों का तर्क है कि उन्हें हर जगह किताब लेकर चलने की जरूरत नहीं पड़ती है और वे अपनी सुविधा के हिसाब से कहीं भी, कभी भी पढ़ाई कर सकते हैं। मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत कवि-गजलगो आलोक श्रीवास्तव इस बारे में कहते हैं, ‘हर नई चीज पुरानी को चुनौती देती ही है। मेरे ख्याल से हिंदी का पाठक कम नहीं हुआ है, मेरे जैसा विशुद्ध पाठक तो किताबों को ऑफलाइन ही पढ़ता है। जो किताबों की शक्ल है, रम्ज़ है, स्पर्श है और उसकी जो खुशबू है उन्हें किताबों को बिना हाथ में लिए महसूस ही नहीं किया जा सकता है।’ इस बीच युवाओं में किताबों के बजाय किंडल जैसी नई तकनीक का चलन और लोकप्रियता बढ़ी है। तीन वर्षों से किंडल का लगातार उपयोग कर रहे देवेश मिश्रा कहते हैं, ‘ किंडल के कारण पढ़ने की सहूलियत बढ़ गई है। उदाहरण के तौर पर यात्रा के दौरान अगर किसी को किताबें पढ़ने का मन करे तो भी वह उसे अधिक भार के कारण ले नहीं जा पाता, हम जैसे किराये के मकानों में रह रहे छात्र अगर कमरा बदलना चाहें तो बहुत सारी किताबें वाहन में लाद कर ले जाना पड़ता है। लेकिन किंडल बुक पर बस एक क्लिक पर हजारों किताबें एक फोल्डर में उपलब्ध हो जाती हैं। अगर सैकड़ों किताबों को अलमारी में रखकर ले जाने की सोचा जाए तो कितनी मुश्किल होगी।’ प्रकाशन समूह राजकमल का कहना है, ‘कोरोना काल से पाठकों की संख्या बढ़ी है। पुस्तकों की बिक्री बढ़ी है। बहुत से लोग जो पहले अंग्रेजी में किताबें पढ़ते थे, उन्होंने हिंदी किताबें पढ़नी शुरू कर दी हैं। हम कह सकते हैं कि किताबों की बिक्री में कोरोनाकाल के बाद करीब 20 फीसदी वृद्धि हुई है।’ राजकमल प्रकाशन के संपादक सत्यानंद निरुपम कहते हैं, ‘पाठकों की रुचि में भी बदलाव हुआ है, वे सामाजिक विषयों पर किताबें पढ़ना पसंद करते हैं। उन्हें ऐसी किताबें भी चाहिए जो उन्हें मानसिक शांति दे, तनाव से मुक्त करे, उन्हें अच्छे स्वास्थ्य की ओर ले जाए क्योंकि इधर पुस्तकें लाइब्रेरी के लिए नहीं बल्कि स्वयं पढ़ने के लिए खरीदी जा रही हैं। लोगों के चुनाव की प्रक्रिया भी बेहतर हुई है। वेअच्छी प्रस्तुति वाली, अच्छे लेखकों की, अच्छे पाठ वाली पुस्तकें पसंद कर रहे हैं।’ हालांकि रुझानों के मुताबिक भारत में डिजिटल रीडिंग का चलन बढ़ रहा है। एक अनुमान के मुताबिक इस समय पढ़ने वालों में तकरीबन 7 फीसदी लोग ई-बुक के माध्यम से पढ़ रहे हैं। एमेजॉन किंडल की बात करें तो उसने पांच क्षेत्रीय भाषाओं - हिंदी, तमिल, मराठी, गुजराती और मलयालम में ई-बुक की शुरुआत की है जिसके बाद से ही इसकी बिक्री में लगभग 80 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। वाणी प्रकाशन की कार्यकारी निदेशक अदिति माहेश्वरी कहती हैं, ‘प्रतिदिन ऑनलाइन और ऑफलाइन लगभग 300 से 400 किताबें पाठकों के बीच में पहुंच रही हैं। युवा पाठक ज्यादा पढ़ रहे हैं। महामारी के बाद बाजार बेहतर हो रहा है। महामारी के दौरान ऑनलाइन पाठकों की संख्या ज्यादा थी जिसमें अब अब कमी आ रही है।’ पायरेसी से बढ़ रही मुश्किल आलोक श्रीवास्तव कहते हैं कि पाठकों को भी समझना चाहिए कि लेखक बहुत मुश्किल से किताब लिखता है। ऐसे में उन्हें चोरी से छापी गई पायरेटेड किताबों को नहीं पढ़ना चाहिए। वहीं राजकमल प्रकाशन ने बड़े स्तर पर पायरेसी होने की संभावना जताई और कहा, ‘अंग्रेजी की किताबों की पायरेसी तो पहले से ही बहुत ज्यादा रही है। अब यह प्रवृत्ति हिंदी किताबों के साथ भी बढ़ रही है। हमारे प्रकाशन की बहुत सी किताबों के जाली संस्करण बाज़ार में हैं। इसका नवीनतम उदहारण ‘रेत समाधि’ है। ‘मामूली चीजों का देवता’, ‘एक दुनिया समानांतर’, ‘महाभोज’ जैसी किताबों के भी जाली संस्करण बाज़ार में समय-समय पर मिलते रहे हैं। इससे प्रकाशक से ज्यादा लेखक की अवमानना होती है क्योंकि पुस्तकें खराब ढंग से प्रस्तुत करना और खराब ढंग से बेचा जाना पुस्तक का अपमान है।’ पाठकों तक पहुंच के बारे में राजकमल प्रकाशन ने कहा कि वर्तमान समय में सोशल मीडिया ही पाठकों तक अपनी बात पहुंचाने का अकेला माध्यम है जिसका अलग-अलग तरह से उपयोग करते हुए हम अपनी किताबों की जानकारी पाठकों को दी जाती है। सोशल मीडिया को वैकल्पिक मीडिया की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है।
