राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) ने पिछले दिनों दिल्ली में एक सम्मेलन किया था। पार्टी के नेता अजित पवार जो पार्टी सुप्रीमो शरद पवार के भतीजे हैं, वह भी मंच पर मौजूद थे लेकिन जब पार्टी महासचिव प्रफुल्ल पटेल ने पार्टी की महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष जयंत पाटिल को बोलने के लिए आमंत्रित किया तो अजित पवार ने मंच छोड़ दिया। अजित शायद इस बात से नाराज हो गए कि उनके प्रतिद्वंद्वी को उनसे पहले बोलने के लिए आमंत्रित किया गया। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक उनकी चचेरी बहन सुप्रिया सुले उनके पीछे भागीं। लेकिन अजित तब तक नहीं लौटे जब तक पार्टी प्रमुख शरद पवार ने अपना भाषण नहीं समाप्त कर लिया। बाद में उन्होंने स्पष्टीकरण दिया कि वह शौचालय गए थे। अगर वाकई ऐसा था तो फिर यह पता नहीं चलता कि सुले उनके पीछे क्यों भागीं? जिन लोगों को पूरा घटनाक्रम पता है उनके लिए इसमें चौंकाने वाली कोई बात नहीं थी। अजित पवार महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री रहे हैं लेकिन उन्हें लगता है कि उन्हें उनके हक की चीजें नहीं मिलीं। 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले अजित चाहते थे कि राकांपा की चुनावी रैलियों में उनको दो ध्वज फहराने का अधिकार दिया जाए। एक तो पार्टी का तिरंगा झंडा और उसके साथ छत्रपति शिवाजी की तस्वीर वाला एक तिरंगा झंडा। शरद पवार ने सार्वजनिक रूप से इस विचार को खारिज कर दिया और कहा कि यह अजित का व्यक्तिगत विचार है। शरद पवार ने अजित को आश्वस्त किया कि वह उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार में उन्हें उपमुख्यमंत्री का पद दिलाएंगे। लेकिन अजित ने सोचा कि वह सौदेबाजी में अपने चाचा को पीछे छोड़ सकते हैं और विधानसभा चुनाव के बाद वह भाजपा के पास ऐसी पेशकश लेकर गए जिसे पार्टी ठुकरा न सकी। लेकिन पर्याप्त संख्याबल न जुटा पाने के कारण वह परिवार में लौट आए। प्रियम गांधी-मोदी की एक हालिया किताब में अलग ही बात कही गई है। उसमें कहा गया है कि उस वक्त अजित पवार को अपने चाचा का पूरा समर्थन हासिल था। किताब में एक फोन कॉल का जिक्र है जो देवेंद्र फडणवीस ने शरद पवार को की थी और अजित पवार की बगावत को मान्यता चाही थी। वहां बातचीत इतने अग्रिम स्तर पर थी कि राकांपा और भाजपा ने सरकार बनने के बाद मंत्रियों के विभागों और मंत्रियों के बारे में भी चर्चा कर ली थी। किताब में शरद पवार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच की एक बातचीत का भी जिक्र है जिसमें संकेत है कि बातचीत अग्रिम स्तर पर थी लेकिन शरद पवार ने अपना मन बदल लिया। अगर यह बात सही है कि तो अजित पवार ने बहुत छोटा महसूस किया होगा। अतीत में भी ऐसी घटनाएं घट चुकी हैं जिनसे उन्हें हताशा हुई होगी। 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले अजित ने जोर देकर कहा था कि उनके बेटे पार्थ को मावल लोकसभा क्षेत्र से टिकट दिया जाए हालांकि शरद पवार ने सार्वजनिक रूप से इसके खिलाफ राय दी थी। पार्थ चुनाव हार गए थे। 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने घोषणा की थी कि सरकार महाराष्ट्र में सिंचाई परियोजनाओं को लेकर एक श्वेतपत्र जारी करेगी। यह श्वेतपत्र जिस मंत्री के कामकाज पर निर्णय देता वह अजित पवार थे। जाहिर है इस घोषणा ने शरद पवार को भी चकित कर दिया था। नाराजगी की ताजा वजह यह थी कि अजित पवार की तुलना में जयंत पाटिल को अधिक तवज्जो दी जा रही थी। जब उद्धव ठाकरे की सरकार गिर गई, शिवसेना दो फाड़ हो गई और शिंदे गुट ने भाजपा के साथ सरकार बना ली तो सदन में नेता प्रतिपक्ष पाटिल को नहीं बल्कि अजित पवार को बनाया गया। पाटिल का पहले ही इस पद पर दावा था और बतौर पार्टी अध्यक्ष उन्हें विधानसभा अध्यक्ष को एक पत्र लिखना था। जब उनसे कहा गया कि यह पद अजित पवार को दिया जाना है तो उन्होंने पत्र ही नहीं लिखा। उनसे पत्र जारी करवाने के लिए प्रफुल्ल पटेल को दो बार फोन करना पड़ा। इन बातों में एक सबक है। अपनी राजनीतिक सनक के बावजूद शरद पवार इतने लंबे समय तक राजनीति में कैसे टिके रहे और उन्होंने अपने विरोधियों तक से इज्जत कैसे हासिल की? इसका संबंध आचरण से है। पवार पुराने कांग्रेसी राजनेता हैं जो राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को व्यक्तिगत दुश्मनी में बदलने में यकीन नहीं रखते। वह कभी अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ कटु भाषा का इस्तेमाल नहीं करते। यहां तक कि राजनीतिक रैलियों में भी वह ऐसा नहीं करते। हकीकत में वह सभी राजनीतिक विरोधियों तक पहुंच बनाने का प्रयास करते हैं और यही वजह है कि महाराष्ट्र में नंबर एक की जगह को लेकर इतनी तगड़ी प्रतिस्पर्धा के बीच शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे के साथ भी उनके बेहतरीन निजी रिश्ते रहे। अगर कभी बात प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी की आती तो निश्चित रूप से उन्हें बाल ठाकरे का समर्थन भी मिलता। उन्होंने यकीनन ऐसा तो कभी नहीं किया कि अगर किसी प्रतिद्वंद्वी को तवज्जो दी जा रही है तो उस बैठक से ही निकल जाएं। देवेंद्र फडणवीस जैसे युवा नेताओं द्वारा पवार के आकलन में तिरस्कार का भाव रहा है। कुछ वर्ष पहले एक मीडिया आयोजन में फडणवीस ने एक सवाल के जवाब में कहा था, ‘उन्हें शतरंज खेलना पसंद है और मुझे यह खेल अधिक पसंद नहीं। शरद पवार को सत्ता की राजनीति और जोड़तोड़ से लगाव है लेकिन मेरी रुचि केवल विकास में है।’ लेकिन पवार अभी भी बने हुए हैं और हाल की घटनाओं ने दिखाया कि सत्ता की राजनीति और जोड़तोड़ से फडणवीस भी अनजान नहीं हैं। वास्तव में ऐसी राजनीतिक सहजता आत्मविश्वास और अपने अहं पर नियंत्रण से आती है।
