भारत में 70 वर्षों के बाद एक बार फिर से चीते की दहाड़ सुनाई देगी। चीता परियोजना के तहत केंद्र सरकार मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में आठ अफ्रीकी चीते (5 मादा और 3 नर) ला रही है। चीतों के आगमन को चिह्नित करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने 72 वें जन्मदिन पर ‘बहादुरों की भूमि’ नामीबिया से सद्भावना राजदूतों की मेजबानी करेंगे। क्या है चीता परियोजना? उच्चतम न्यायालय ने चीता परियोजना को जनवरी 2020 में मंजूरी दी थी। इस प्रायोगिक परियोजना के तहत विदेश से भारत में चीते लाए जाएंगे। चीतों को वापस लाने की अवधारणा को पहली बार 2009 में भारतीय संरक्षणवादियों द्वारा चीता संरक्षण कोष (सीसीएफ) के साथ रखा गया था। सीसीएफ एक गैर-लाभकारी संगठन है, जिसका मुख्यालय नामीबिया में है। भारत और नामीबिया ने जुलाई 2020 में चीतों के संरक्षण के लिए एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए थे। इस परियोजना में नामीबिया भागीदार है और वहां की सरकार इस कार्यक्रम को शुरू करने के लिए 8 चीते दान करने के लिए सहमत हुई। क्यों लाए जा रहे हैं चीते? इस साल जनवरी में सरकार के दिए गए एक बयान के अनुसार ‘चीता परियोजना का प्रमुख उद्देश्य भारत में स्वस्थ मेटा-आबादी विकसित करना है जो चीते को एक शीर्ष शिकारी के रूप में अपनी कार्यात्मक भूमिका को निष्पादित करने की अनुमति देता है।’ चीता घास के मैदानों में रहने वाले जानवरों की एक प्रमुख प्रजाति है। चीतों को भारत लाने की योजनावर्ष 1947 में कोरिया सरगुजा (जिसे आज छत्तीसगढ़ के नाम से जाना जाता है) के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने कथित तौर पर भारत में दर्ज अंतिम तीन एशियाई चीतों को गोलियों से मार डाला था। परियोजना के अनुसार चीतों को गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में रखा जाएगा जिसकी शुरुआत मध्य प्रदेश से हो रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन चीतों को कुनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ेंगे। बाकी चीतों को अगले चरण में छोड़ा जाएगा। अगले पांच वर्षों में देशभर के जंगलों में करीब 50 चीतों को छोड़ा जाएगा। इस्तेमाल होने वाले संसाधन नामीबिया में भारतीय उच्चायोग ने मंगलवार को हवाई जहाज की एक तस्वीर के साथ ट्वीट किया ‘बहादुरों की भूमि’ से सद्भावना राजदूतों को ले जाने के लिए ‘बाघों की भूमि’ से एक विशेष चिड़िया (विमान) उतरी है। विमान के अगले हिस्से पर बाघ का चेहरा बनाया गया है। इस परियोजना के लिए कुल 96 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। परियोजना को समर्थन देने के लिए इंडियन ऑयल ने 50 करोड़ रुपये प्रदान किए हैं। चीता संरक्षण कोष के अनुसार कुनो राष्ट्रीय उद्यान में आवश्यक सुविधाओं को विकसित किया गया है। अधिकारियों ने कहा कि कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया गया है और बड़े शिकारियों को हटा दिया गया है। स्थानीय समुदायों के लिए जन जागरूकता अभियानों को औपचारिक रूप दिया गया है, जिन्हें ‘चिंटू चीता’ नामक एक स्थानीय शुभंकर के साथ चीता मित्र कहा जाएगा। चीता परियोजना की चुनौतियां भारतीय आवास में मौजूदा प्रजातियों के साथ भारत में लाए जा रहे चीतों के सह-अस्तित्व के संबंध में कुछ चिंताएं हैं। कुनो राष्ट्रीय उद्यान शेरों और तेदुओं का भी घर है। कई वन्यजीव विशेषज्ञों ने बताया है कि संघर्ष के कारण उन्मूलन की भारी आशंका है। भारत लाए जा रहे चीतों को अपने छोटे कद, भारत और नामीबिया की जलवायु और पारिस्थितिक में अंतर के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
