चावल मिल कंपनियों के शेयरों का प्रदर्शन इस महीने बेंचमार्क सूचकांकों से कमजोर रहा है क्योंकि सरकार ने टूटे चावल के निर्यात पर पाबंदी लगा दी है और चावल की विभिन्न किस्मों के निर्यात पर 20 फीसदी निर्यात शुल्क लगा दिया है। एलटी फूड्स, कोहिनूर फूड्स, चमन लाल सेतिया एक्सपोर्ट्स के शेयरों में 0.8 फीसदी से लेकर 10 फीसदी तक की गिरावट आई है जबकि निफ्टी-50 इंडेक्स में 0.9 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। विश्लेषकों का मानना है कि सरकार के सुरक्षात्मक कदमों का अल्पावधि में कंपनियों पर असर पड़ेगा, लेकिन चावल के अच्छे उत्पादन और दुरुस्त फंडामेंटल लंबी अवधि में नकारात्मक अवधारणा को पीछे छोड़ देंगे। जियोजित फाइनैंशियल सर्विसेज के प्रमुख (निवेश रणनीतिकार) गौरांग शाह ने कहा, सरकार ने ये कदम महंगाई पर लगाम कसने के लिए उठाए हैं। अल्पावधि में इससे जुड़े शेयरों पर नकारात्मक असर दिख सकता है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि यह प्रवृत्ति लंबे समय तक रहेगी। हम निवेशकों को अच्छे फंडामेंटल वाली कंपनियों के शेयरों में निवेशित रहने की सलाह दे रहे हैं। लंबी अवधि के लिहाज से एलटी फूड्स अच्छा दांव है। आईडीबीआई कैपिटल के शोध प्रमुख ए के प्रभाकर ने कहा, एक और तिमाही तक निवेशकों को चावल मिलों के शेयरों से दूर रहना चाहिए। उन्होंने कहा, मुझे नहीं लगता कि चावल निर्यातक कंपनियां रूस-यूक्रेन युद्ध के समाधान तक मुनाफा कमा पाएंगे। इसके अलावा चावल उत्पादक इलाकों में बारिश के लगातार नहीं होने से भी सरकार के गोदामों में स्टॉक कम हो गया है। ऐसे में सरकार की अग्रणी प्राथमिकता इसे सुरक्षित बनाने की है। पिछले हफ्ते सरकार ने गैर-बासमती, बिना मिलिंग वाले चावल, मिलिंग वाले चावल और ब्राउन राइस के निर्यात पर 20 फीसदी शुल्क लगा दिया ताकि देसी आपूर्ति सुरक्षित रहे और औसत से कम मॉनसून सीजन के बाद कीमतें नरम रहे। निर्यात शुल्क से हालांकि बासमती चावल व पारबॉयल्ड राइस को अलग रखा गया है। गेहूं व चीनी के निर्यात को प्रतिबंधित करने के बाद टूटे चावल के निर्यात पर पाबंदी और चावल की अन्य किस्मों पर शुल्क देसी आपूर्ति सुरक्षित करने की खातिर सरकार का तीसरा कदम है। खाद्य मंत्रालय के मुताबिक, 2022-23 के मौजूदा फसल सीजन में देसी चावल उत्पादन 7 से 9 फीसदी घटकर 11.8 करोड़ टन से 12 करोड़ टन रह सकता है, जो पिछले साल 13 करोड़ टन रहा था। इसकी वजह बारिश के अभाव वाले राज्यों मसलन पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में धान की कम क्षेत्र में बोआई है। ऐसे में कम फसल उत्पादन और निर्यात पाबंदी ने भारत को पंगु बना दिया, जो दुनिया में चावल का सबसे बड़ा उत्पादक व कारोबारी है। वैश्विक स्तर पर चावल के व्यापार में भारत की हिस्सेदारी 40 फीसदी है। टूटे चावल के निर्यात पर पाबंदी के साथ इस साल अब तक राइस फ्यूचर 21 फीसदी से ज्यादा चढ़ चुका है। व्यापार आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2021-22 में भारत से टूटे चावल का निर्यात 90 फीसदी से ज्यादा बढ़कर 1.1 अरब डॉलर पर पहुंच गया, जो वित्त वर्ष 2021 में 59.57 करोड़ डॉलर रहा था। इसे देखते हुए विश्लेषकों को लग रहा है कि टूटे चावल का निर्यात करने वाली कंपनियों पर मामूली असर पड़ेगा। स्थिति हालांकि सुधरेगी अगर बासमती व पारबॉयल्ड राइस इसकी भरपाई कर दे।
