गेहूं तथा उसके उत्पादों पर रोक लगाने के कुछ माह बाद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाकर सरकार ने गलत समय गलत कदम उठाया है। उबले चावल और बासमती चावल के रूप में दो उन्नत प्रकारों को छोड़ दिया जाए तो शेष हर प्रकार के चावल के निर्यात पर या तो रोक लगा दी गई है या फिर उस पर 20 प्रतिशत का उच्च आयात शुल्क लगाकर निर्यात की संभावनाओं को लगभग समाप्त ही कर दिया गया है। ये कदम इस प्रमुख अनाज की अंतरराष्ट्रीय कीमतों और आपूर्ति को यकीनन प्रभावित करेंगे। इससे खाद्यान्न की कमी से जूझ रहे देशों में खाद्य सुरक्षा का संकट और गंभीर हो जाएगा। कोविड महामारी और रूस-यूक्रेन विवाद के चलते जिस समय वैश्विक अन्न आपूर्ति बाधित थी उस समय भारत ने गेहूं के निर्यात पर रोक लगाकर पहले ही वैश्विक नेताओं और संगठनों की नाराजगी मोल ली थी। यह बात इस तथ्य के बावजूद थी कि भारत वैश्विक बाजार के प्रमुख गेहूं आपूर्तिकर्ताओं में शामिल नहीं था। परंतु चावल के मामले में भारत न केवल दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है बल्कि 40 फीसदी बाजार हिस्सेदारी के साथ वह सबसे बड़ा निर्यातक भी है। ऐसे में भारत से चावल के निर्यात को अचानक रोके जाने से वैश्विक चावल बाजार में उथलपुथल मच जाएगी। बल्कि यह दांव उलटा भी पड़ सकता है और अनाज के विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता और विश्वसनीय व्यापारिक साझेदार की उसकी छवि को नुकसान पहुंचाकर उसके ही हितों को नुकसान पहुंचा सकती है।चावल निर्यात पर प्रतिबंध को उचित ठहराना किसी भी दृष्टि से खासा मुश्किल है। हालांकि यह स्वीकार करना होगा कि चालू खरीफ सत्र में धान की बोआई का रकबा मॉनसूनी बारिश की अनिश्चितता की वजह से कम हुआ है। मॉनसून के अनिश्चित रहने से धान के उत्पादन वाले इलाके में सूखे जैसे हालात बन गए हैं। इसमें उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और झारखंड शामिल हैं। हालांकि देश के समग्र चावल उत्पादन पर इसका बहुत अधिक असर पड़ने की संभावना नहीं है। ऐसा इसलिए कि इन राज्यों में सामान्य धान उत्पादन काफी कम है। आधिकारिक आंकड़ों पर नजर डालें तो खरीफ के समग्र उत्पादन में 40 से 50 लाख टन से ज्यादा की कमी नहीं आएगी। ऐसे में चावल की कुल उपलब्धता पिछले वर्ष के स्तर के आसपास रह सकती है। पिछले वर्ष हमारे पास चावल का काफी अधिशेष भंडार था और हमने 2.1 करोड़ टन चावल का निर्यात किया था। गत माह सरकार के चावल भंडार के बारे में अनुमान था कि यह बफर स्टॉक और जरूरी रणनीतिक भंडार की तुलना में कम से कम दोगुना है। कृषि मंत्रालय ने कहा है कि खरीफ उत्पादन में अनुमानित कमी की भरपाई रबी के मौसम में की जा सकती है। यानी देश में चावल के अधिशेष की स्थिति बनी रहेगी।इसके अलावा निर्यात पर प्रतिबंध का समय भी अनुचित माना जा रहा है। यह प्रतिबंध धान की फसल कटाई के मौसम के ठीक पहले लगाया गया है। फसल कटाई का मौसम इस महीने के अंतिम सप्ताह में आरंभ होगा। इस निर्णय की बदौलत घरेलू कीमतों में जो गिरावट आएगी उसका असर किसानों की आय पर पड़ना तय है। इससे उनका संकट और बढ़ेगा और ग्रामीण इलाकों में औद्योगिक वस्तुओं और सेवाओं की मांग पर भी विपरीत असर पड़ेगा। संयुक्त किसान मोर्चा (दिल्ली की सीमाओं पर एक साल तक चले विरोध प्रदर्शन का अगुआ संगठन) समेत कई संगठनों ने पहले ही उच्च कीमतों तथा कृषि उपज के सुनिश्चित विपणन के समर्थन में प्रदर्शन दोबारा शुरू करने की चर्चा छेड़ दी है। ऐसे समय पर जबकि अन्न उत्पादकों को फसल की आकर्षक कीमत देना सुनिश्चित करना चाहिए उस वक्त निर्यात में कटौती जैसे अदूरदर्शी निर्णय की कीमत चुकानी पड़ सकती है।
