घरेलू कीमतों पर काबू पाने के लिए केंद्र सरकार ने तत्काल प्रभाव से सभी तरह के टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके पहले गुरुवार को चावल की चुनिंदा किस्मों के निर्यात पर 20 प्रतिशत शुल्क लगाया गया था। टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध से उम्मीद है कि करीब 40 लाख टन चावल विदेश नहीं जा पाएगा। इसमें से ज्यादातर चावल चीन जैसे देशों में जाने की संभावना थी, जहां प्रमुख उत्पादक इलाके में सूखे के कारण पिछले कुछ महीने से चावल की मांग बढ़ी हुई है। अप्रैल और जून के बीच करीब 18 लाख टूटे चावल का निर्यात किया गया था। व्यापार और बाजार से जुड़े सूत्रों ने कहा कि कुल करीब 100 लाख टन चावल का निर्यात (59 लाख टन निर्यात शुल्क के तहत और 40 लाख टन पूरी तरह प्रतिबंध) घटेगा। चावल का सालाना औसत निर्यात 210 से 220 लाख टन है, जो इस समय प्रतिबंधों के दायरे में आ गया है। टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध 9 सितंबर से प्रभावी होगा। लेकिन अधिसूचना में कहा गया है कि 9 सितंबर से 15 सितंबर के बीच कंसाइनमेंट और शिपमेंट, जिसकी लदान बंदरगाहों पर शुरू हो गई है और शिपिंग बिल दाखिल कर दिया गया है, या जहां प्रतिबंध के पहले सीमा शुल्क को खेप सौंप दी गई है, उसके निर्यात की अनुमति होगी। यह सुनिश्चित करने के लिए छूट दी गई है कि दूरस्थ इलाकों से जो माल शिपमेंट के लिए निकल चुका है, बंदरगाहों पर उसका ढेर जमा न होने पाए। गेहूं पर 14 मई को प्रतिबंध लगाते समय भी यही व्यवस्था की गई थी। पिछली शाम को सरकार ने चावल की चुनिंदा किस्मों पर 20 प्रतिशत निर्यात शुल्क लगा दिया था, लेकिन बासमती और उबले चावल इसके दायरे से बाहर रखे गए हैं। व्यापार से जुड़े सूत्रों ने कहा कि भारत के चावल की किस्मों पर 20 प्रतिशत कर लगा देने पर भारतीय चावल वैश्विक प्रतिस्पर्धा से बाहर हो जाएगा क्योंकि कीमतें तत्काल 60 से 80 डॉलर प्रति टन बढ़ जाएंगी। निर्यात शुल्क लगने के पहले भारत के चावल की कुछ किस्मों की कीमत 380 से 400 डॉलर प्रति टन (एफओबी) लगाई जा रही थी, जबकि सबसे नजदीकी प्रतिस्पर्धी की कीमत इससे अधिक थी। इसकी वजह से भारत का चावल वैश्विक बाजार में सबसे सस्ता हो गया था और इसकी मांग बढ़ गई थी। उद्योग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इसकी वजह से कुछ चोरी शुरू हो गई थी और आरोप यह भी थे कि पीडीएस के तहत और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत चावल के वितरण के कारण चावल का निर्यात हो रहा था और दाम कम होने के कारण विदेशी बाजार में मांग ज्यादा थी। पहले चावल पर भारी निर्यात कर और उसके तत्काल बाद टूटे चावल के निर्यात पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने के फैसले ने इस चर्चा को हवा दे दी है कि केंद्र सरकार पीएमजीकेएवाई के तहत मुफ्त खाद्यान्न वितरण की योजना को सितंबर के बाद आगे बढ़ाने का फैसला कर सकती है। इस योजना के तहत करीब 80 करोड़ लाभार्थियों को प्रति व्यक्ति प्रति माह 5 किलो चावल या गेहूं मुफ्त दिया जाता है। यह वितरण राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत आने वाले लाभार्थियों के बीच किया जाता है और यह नियमित मासिक कोटे के अतिरिक्त होता है। इसे कल्याणकारी कदम के रूप में कोविड-19 महामारी के दौरान शुरू किया गया था। उसके बाद योजना की अवधि को 6 बार बढ़ाया जा चुका है। हाल में अप्रैल में इसे 6 महीने के लिए बढ़ाया गया था। अब तक चावल की ज्यादातर किस्मों पर निर्यात शुल्क नहीं लगता था। बहरहाल बाजार से जुड़े सूत्रों ने कहा कि वैश्विक चावल बाजार संभवतः लंबे समय तक मौजूदा स्तर पर नहीं रह पाएगा क्योंकि चीन इसका बड़ा उपभोक्ता है और उसके प्रमुख चावल उत्पादक इलाकों में सूखा पड़ा है। भारत में भी प्रमुख धान उत्पादक इलाकों में सूखा पड़ा है, जिसी वजह से घरेलू बाजार में सभी किस्मों के चावल के दाम बढ़ रहे हैं। जून से अब तक चावल के दाम 6 से 20 प्रतिशत तक बढ़े हैं। यह डर है कि इस साल खरीफ में कम बोआई के कारण उत्पादन पिछले साल की तुलना में 60 से 100 लाख टन कम होगा। 2021 में खरीफ सत्र में भारत में 1110 लाख टन चावल का उत्पादन हुआ था। आई-ग्रेन इंडिया में जिंस विश्लेषक राहुल चौहान ने कहा कि लंबे समय तक घरेलू बाजार में चावल की कीमतें कम नहीं रहेंगी क्योंकि वैश्विक बाजार में कमी है और घरेलू बाजार में मोटे अनाज की आपूर्ति भी कम है। बोआई की स्थिति देखें तो 2 सितंबर को धान का रकबा पिछले साल ककी समान अवधि की तुलना में करीब 6 प्रतिशत कम है। करीब 96.5 प्रतिशत सामान्य रकबे में पहले ही बोआई हो चुकी है। सामान्य रकबा पिछले 5 साल के बोआई के रकबे के औसत को कहते हैं, जो खरीफ के धान के मामले में 397 लाख हेक्टेयर है।
