भारत के नीति निर्माताओं को देश के सभी क्षेत्रों और नागरिकों का समान विकास सुनिश्चित करने की जरूरत है। सरकार की नीतियां ज्यादा नौकरियों के सृजन पर केंद्रित होनी चाहिए। अगर एशिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था को 2047 तक मध्य आय वाला देश बनना है तो यह करना जरूरी है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएम-ईएसी) द्वारा समर्थित इंस्टीट्यूट फॉर कंपेटेटिवनेस की एक रिपोर्ट में यह कहा गया है। कंपेटिटिवनेस रोडमैप फॉर इंडिया @100 नाम की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत एक ऐसा देश है, जिसमें उच्च और टिकाऊ आर्थिक वृद्धि की क्षमता है। लेकिन भारत को अभी भी निम्न मध्य आय वर्ग के देश के रूप में वर्गीकृत किया गया है। जब भारत भौगोलिक खाके के और अंतर्निहित विकास की गतिशीलता के आधार पर वृद्धि जारी रखेगा तो वृद्धि की यह मौजूदा धारणा इसके लक्ष्यों व क्षमता तक पहुंचने के लिए पर्याप्त नहीं होगी। मध्य आय वर्ग पर पहुंचने और उसके बाद उच्च आय वर्ग का दर्जा पाने की महत्त्वाकांक्षा पूरी करने की आगे की राह बहुत लंबी है।’रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को 3 प्रमुख चुनौतियों का समाधान करना होगा, जो मौजूदा निम्न मध्य आय वर्ग से मध्य आय वर्ग का देश बनने की राह में सामने आ रही हैं। पहली चुनौती साझा समृद्धि को लेकर है। भारत की प्रमुख जीडीपी वृद्धि मजबूत रही है और इसे गति मिल रही है। वहीं सामाजिक प्रगति कमजोर है, असमानता बढ़ रही है और विभिन्न क्षेत्रों में एकता का अभाव नजर आता है। इससे पता चलता है कि यह वृद्धि तमाम भारतीयों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार की उम्मीद में विफल रही है। नौकरियों को लेकर भी चुनौतियां हैं। युवाओं और बढ़ते कार्यबल वाली आबादी के दौर में लाखों लोग हर साल कार्यबल में शामिल हो रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अपने व्यापक कार्यबल के लिए नौकरियों के सृजन को लेकर भारत जूझ रहा है। खासकर महिलाओं और कम कुशल श्रमिकों के लिए नौकरियों का संकट है।’ तीसरा, नीतियों को लागू करने की चुनौती है, जहां नीति निर्माताओं ने आर्थिक सुधार के महत्त्वाकांक्षी एजेंडे पर जोर दिया है और खासकर समसामयिक विषयों पर ध्यान रहा है। यह ज्यादातर अवधारणा वाले सिद्धांतों के मुताबिक है, लेकिन नौकरियों के सृजन और नौकरियों में वृद्धि के हिसाब से महत्त्वाकांक्षा से बहुत पीछे है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इसके अलावा भारत को बदलते बाहरी वातावरण का सामना भी करना पड़ रहा है। इसमें बढ़ता भूराजनीतिक तनाव और वैश्वीकरण का बदलता स्वरूप, जलवायु परिवर्तन और नेट जीरो को लेकर बदलाव को हासिल करने की नीतियां, डिजिटल बदला और अन्य तकनीकी बदलाव शामिल हैं। कुल मिलाकर यह वृहद आर्थिक परिदृश्य को जटिल बना रहा है।’ रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जीडीपी के हिसाब से प्रति व्यक्ति आय के मुताबिक संपन्नता मापने का तरीका अपर्याप्त है और भारत के अगुआ लोगों को ‘जीवन सुगमता’, क्षेत्रीय विकास, अक्षय ऊर्जा में तेज बढ़ोतरी आदि को लक्ष्य बनाने की जरूरत है। बहरहाल कुछ और नए दिशानिर्देशक सिद्धांतों की भी जरूरत है। संपन्नता में वृद्धि को सामाजिक प्रगति से मिलान करने की जरूरत है। संपन्नता को देश के हर इलाके व क्षेत्र में साझा करने की जरूरत है। पर्यावरण के हिसाब से टिकाऊ बनने और बाहरी झटकों के प्रति प्रतिरोधी बनने की जरूरत है। इसमें कहा गया है, ‘भारत को उन लोगों के लिए प्रतिस्पर्धी नौकरियों के सृजन की जरूरत है, जो सक्रिय श्रम बाजार से दूर हैं।
