देसी शेयरों में जून के निचले स्तर से तेज बढ़ोतरी ने एक बार फिर भारतीय बाजारों को समकक्ष उभरते बाजारों के मुकाबले महंगा बना दिया है। निफ्टी-50 इंडेक्स के लिए 12 महीने आगे का पीई गुणक अभी करीब 20.6 गुना है, जो एमएससीआई ईएम इंडेक्स के 11.3 गुने के मुकाबले 82 फीसदी ज्यादा है। भारत का प्रीमियम मूल्यांकन पांच महीने की ऊंचाई को छू गया है। यह उभरते बाजारों व वैश्विक बाजारों के मुकाबले जून के निचले स्तर से उम्दा प्रदर्शन के कारण और जून 2022 की तिमाही की आय के बाद डाउनग्रेडिंग के चलते है। जब निफ्टी ने 17 जनवरी को साल 2022 के उच्चस्तर को छुआ था तब भारत का पीई 25 गुना था, जो एमएससीआई ईएम के मुकाबले करीब दोगुना था। दूसरी ओर, जब निफ्टी ने 17 जून को 13 महीने के निचले स्तर को छुआ था तब प्रीमियम सिकुड़कर महज 54 फीसदी रह गया था। भारतीय बाजारों का समकक्ष उभरते बाजारों के मुकाबले हमेशा ही मूल्यांकन प्रीमियम रहा है। विशेषज्ञों ने कहा, मौजूदा अंतर कंपनियों की आय व आर्थिक रफ्तार को लेकर बड़ी उम्मीद को शायद समाहित कर रहा है। साथ ही डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोरी और एफपीआई निवेश को लेकर अनिश्चितता पीई के और विस्तार पर लगाम कस सकता है। ऐसे में किन वजहों से भारतीय प्रीमियम का विस्तार हुआ है? भारतीय बाजार बेहतर स्थिति में बताए जा रहे हैं।बीएनपी पारिबा के इंडिया इक्विटीज प्रमुख अभिराम ईलेस्वारापु ने कहा, एशिया में हम (जापान को छोड़कर) भारत को लेकर ओवरवेट हैं। वैश्विक मंदी के व्यापक माहौल को देखते हुए भारत में कंपनियों की रफ्तार और राजकोषीय स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर नजर आ रही है। भारत की महंगाई में भी स्थानीय के बजाय बाहरी कारक का ज्यादा योगदान है। अल्फानीति फिनटेक के सह-संस्थापक यू आर भट्ट ने कहा, हमें ब्याज दर और आय की रफ्तार के संदर्भ में पीई पर नजर डालनी चाहिए। आय की रफ्तार के लिहाज से भारत अन्य से काफी आगे है। एतिहासिक तौर पर भारत में हमेशा ही अन्य के मुकाबले उम्मीद से बेहतर आय की रफ्तार रही है। अन्य के मुकाबले भारत बढ़त वाला क्षेत्र है। जब तक बढ़त की रफ्तार टिकी रहेगी तब तक मूल्यांकन प्रीमियम बना रहेगा। अगर जिंस की कीमतों के अवरोध या भूराजनीतिक तनाव के कारण बढ़त को झटका लगता है तो चीजें अलग होंगी। बाजार के विशेषज्ञों ने कहा, भारतीय बाजार का तेल के बाजार के साथ काफी ज्यादा पारस्परिक संबंध है। आयात पर देश की बड़ी निर्भरता उसे प्रतिकूल स्थिति में ले जाता है, वहीं जिंस का निर्यात करने वाले समकक्ष उभरते देशों को फायदा होता है। इक्विनॉमिक्स के संस्थापक जी. चोकालिंगम ने कहा, भारतीय रुपया फिसल रहा है, ऐसे में विदेशी मुद्रा भंडार भी घट रहा है और तेल की कीमतों में उतारचढ़ाव है। जोखिम वाले ऐसे कारकों के बावजूद हमें ऊंचा प्रीमियम मिल रहा है। आने वाले समय में गिरावट का जोखिम है। अगर फेडरल रिजर्व अपनी बैलेंस शीट सिकोड़ता है तो रुपये पर और दबाव दिख सकता है और एफपीआई निवेश एक बार फिर पलट सकता है। तेल की कीमतें अकेले यह तय करने वाला सबसे बड़ा कारक बना हुआ है कि यह प्रीमियम टिका रहेगा या नहीं। अगर तेल की कीमतें 100 डॉलर से नीचे रहती है तो प्रीमियम बढ़ेगा। अगर भाव वापस 120 डॉलर प्रति बैरल हो जाए तो स्थिति जटिल हो जाएगी। एमएससीआई ईएमइंडेक्स में भारत का तीसरा सबसे बड़ा भारांक 14 फीसदी है। चीन का भारांक 32 फीसदी और ताइवान का 15 फीसदी है।
