मौसम की मार के कारण कपास उत्पादन में आई तेज गिरावट और उसकी वजह से लगभग सभी कपास उत्पादक देशों में कीमतों में हुए इजाफे ने दुनिया भर में कपड़ा क्षेत्र को गंभीर संकट में डाल दिया है। अधिकांश देशों में कपास की कीमतें बीते एक वर्ष में 60 से 70 प्रतिशत तक बढ़ी हैं और इस समय ये बीते एक दशक के उच्चतम स्तर पर हैं। भारत में कीमतें बीते एक वर्ष में दोगुनी से अधिक हो चुकी हैं। यही वजह है कि कपड़ा उद्योग की अनेक इकाइयों को अपने परिचालन में कटौती करनी पड़ी या उत्पादन पूरी तरह बंद करना पड़ा। ऐसा तब हुआ जब आयात शुल्क माफ किया गया है तथा कपास का आयात बढ़ाने के लिए अन्य किस्म की रियायतें भी दी गई हैं। उत्पादन की ऊंची लागत और कई देशों में आर्थिक मंदी के कारण वस्त्रों की मांग में कमी ने कपड़ा उद्योग के सभी हिस्सेदारों के मार्जिन को प्रभावित किया है। इसमें धागा उत्पादकों से लेकर वस्त्र निर्माता और निर्यातक तक सभी शामिल हैं। कई कपड़ा मिलों को कपास के धागे में रेयान या पॉलिएस्टर जैसी चीजें मिलानी पड़ रही हैं ताकि कपास पर निर्भरता कम की जा सके और लागत में कटौती की जा सके। दुनिया के कई हिस्सों में असामान्य मौसम जिसमें सूखा और लू शामिल हैं, ने कपास के उत्पादन पर बुरा असर डाला है। इससे आपूर्ति का भारी संकट उत्पन्न हो गया है। ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, भारत और पाकिस्तान जैसे कुछ देशों में तो गुणवत्ता भी प्रभावित हुई है। 40 फीसदी बाजार हिस्सेदारी के साथ दुनिया के सबसे बड़े कपास निर्यातक देश अमेरिका में कपास के उत्पादन में 28 फीसदी की गिरावट आने का अनुमान है और इस महीने शुरू हो रहे नये मौसम में यहां उत्पादन 2010 के बाद के न्यूनतम स्तर पर पहुंच जाने का अनुमान है। कपास का पूर्व भंडार भी ऐतिहासिक रूप से कम स्तर पर है। दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कपास निर्यातक ब्राजील भी वर्षा की भारी कमी और उच्च तापमान से जूझ रहा है। इसके चलते वहां फसल उत्पादन में 30 फीसदी कमी आ सकती है। चीन कपास का एक अन्य बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता देश है और वह भी सूखे से जूझ रहा है। ऐसे में वहां भी आने वाली कपास की फसल कमजोर होने की आशंका है।भारत दुनिया के प्रमुख कपास उत्पादक देशों में शामिल है और यहां भी कपास की फसल संतोषजनक नहीं है। ऊंची कीमतों की वजह से कपास का रकबा जरूर 5 फीसदी बढ़ा है लेकिन उत्तर में कीटों के प्रकोप तथा दक्षिण में भारी बारिश के कारण उत्पादन प्रभावित हो सकता है। देश के सबसे बड़े कपड़ा केंद्रों में से एक तमिलनाडु में कई कताई संयंत्र, पावरलूम और वस्त्र निर्माण उपक्रम पहले ही बंद हो चुके हैं और इस महीने के अंत तक कई अन्य संयंत्र बंद हो सकते हैं। आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात की मिलों के भी बंद होने की आशंका है। दुनिया भर में कपास और कपड़ा क्षेत्र की मुश्किलों की एक वजह यह है कि यह फसल मौसम को लेकर अत्यधिक संवेदनशील है और हाल के दिनों में जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम बहुत अनिश्चित हो गया है। अधिकांश देशों में इस समय जो कपास उगाया जा रहा है उसे प्रमुख रूप से फसल की उपज बढ़ाने तथा कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए तैयार किया गया है। ये जलवायु परिवर्तन से सुरक्षित नहीं हैं। भारत की कपास क्रांति भी पूरी तरह बीटी-कॉटन हाइब्रिड पर निर्भर रही है जो बॉलवर्म जैसे कीटों के हमले से तो बच सकती है लेकिन प्रतिकूल मौसम से बचाव शायद ही उपलब्ध हो। दुनिया भर के शोधकर्ताओं को अब इस बात पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए कि कैसे बिना उपज क्षमता और गुणवत्ता को प्रभावित किए बदलते मौसम के अनुकूल फसल तैयार की जा सके।
