उत्तर प्रदेश के शामली जिले के उमेश कुमार 22 एकड़ खेत में कई तरह की फसल उगाते हैं, जिसमें गेहूं और चावल के साथ बागवानी की फसलें शामिल है। कुमार बड़े किसान हैं, जो देश के इन हिस्सों में कम ही होते हैं। इसके बावजूद उन्हें लगता है कि केंद्र या राज्य सरकार द्वारा बनाई जाने वाली कृषि नीति में किसानों को कोई नहीं पूछता। कुमार ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘कृषि क्षेत्र के लिए बनाई गई किसी भी नीति में किसानों की समान साझेदारी होनी चाहिए और इसकी शुरुआत कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) में उन्हें शामिल करके की जानी चाहिए, जो न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय करने के लिए मुख्य निकाय है।’ कुमार चाहते हैं कि नीति बनाने में किसानों की भागीदारी हो, वहीं कई अन्य एमएसपी और जलवायु परिवर्तन का खेत और फसलों पर पड़ने वाले असर को लेकर चिंतित हैं। स्वतंत्रता दिवस के सप्ताहांत पर कृषि के विशेषज्ञों और इस क्षेत्र में राय बनाने वाले अग्रणी लोगों के साथ 13 राज्यों के 19 किसान जमा हुए, जो भारत के कई तरह की कृषि भूमि, अलग अलग भूमिधारिता, फसल के तरीकों, बाजार के अनुभव और पारिस्थितिकी संबंधी स्थितियों से जुड़े थे। इसका मकसद था कि मांग की एक स्पष्ट रूपरेखा बनाई जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल तीन कृषि कानून वापस लेते समय एमएसपी को और प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया था, जिसकी पहली बैठक होने वाली है। इस बैठक में किसान अपनी मांग प्रस्तुत करने वाले हैं। इस समिति में नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद्र, आईआईएम अहमदाबाद के प्रोफेसर सुखपाल सिंह, इफको के चेयरमैन दिलीप संघानी, कृषि विभाग, राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों, सहकारिता एवं वस्त्र विभाग के सचिव के साथ कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, सिक्किम और ओडिशा के प्रतिनिधि शामिल होंगे। इस समिति की पहली बैठक अगले सप्ताह होनी प्रस्तावित है। सिटीजन जूरी की चर्चा तीन दिन के लिए 15 अगस्त से शुरू हुई। सॉक्रेटस फाउंटेशन ने इसकी प्रक्रिया की सुविधा मुहैया कराई थी। फाउंडेशन ने अपने को ऐसा संगठन बताया, जो विश्व के सामने आ रही जटिल चुनौतियों पर चर्चा के लिए मंच मुहैया कराता है। तीन दिन के कार्यक्रम में किसानों ने सभी क्षेत्र के विचारों को गौर से सुना, जिसमें शिक्षाविद, स्वतंत्र विशेषज्ञ, मीडिया और विभिन्न प्रबुद्ध मंडल के निर्णय लेने वाले लोग शामिल थे। जब विशेषज्ञ अपने विचार रख चुके थे तो किसान इससे संबंधित सवाल पूछ सकते थे, जिससे कि एक ठोस विचार सामने आ सके और सिफारिशों की अंतिम रूपरेखा तैयार की जा सके। इसमें भारत के किसानों की जिंदगी से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर चर्चा को शामिल किया गया था, जो न सिर्फ उत्पादन बल्कि स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण, वैश्विक कारोबार, बाजारों, सार्वजनिक वित्त, सब्सिडी औऱ यहां तक कि सामाजिक सुरक्षा से जुड़े मसले शामिल थे। इसमें शामिल हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले की त्वारकू देवी ने कहा, ‘मेरे विचार से किसानों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि सरकारी योजनाओं के आकलन में कठिनाई हो रही है और लाभ मिलने में देरी हो रही है।’ उन्होंने कहा कि बड़े किसानों को आसानी से लाभ मिल जात है, लेकिन सेब, छोटे अनार और सब्जियां उगाने वाले उनके जैसे 8 एकड़ जमीन पर खेती करने वाले लोगों को छोटे कृषि उपकरणों पर सब्सिडी पाने में छह से आठ महीने लग जाते हैं। जिन शिक्षाविदों और विशेषज्ञों ने इस कार्यक्रम में अपने विचार रखे, वे कृषि संबंधी विभिन्न मुद्दों पर अलग अलग विचारों के लिए जाने जाते हैं। इसमें शामिल विशेषज्ञों में जय किसान आंदोलन के योगेंद्र यादव भी शामिल थे, जो एक साल तक दिल्ली की सीमा पर चले किसान आंदोलन के अहम चेहरे थे। साथ ही इसमें आशा की कविता कुरुगंती से लेकर मुक्त बाजार के समर्थक और शेतकरी संघटना के गुणवंत पाटिल और स्वतंत्र भारत पार्टी के अनिल घनावत शामिल थे।
