मीडिया में आ रही रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) शोध विश्लेषकों और निवेश सलाहकारों की सेवाओं को नए सिरे से परिभाषित करना चाहता है। इसके लिए उन नियमों में एक बार फिर बदलाव किया जाएगा जिनसे ये शासित होते हैं। बात की शुरुआत एक प्रकटीकरण से करते हैं। मैं एक कंपनी चलाता हूं जो सेबी द्वारा विनियमित है और ऐसे में मेरा नजरिया निरपेक्ष नहीं होगा। बहरहाल, मैं इस बारे में कुछ अंत:दृष्टि प्रदान कर सकता हूं कि निवेशकों को किस चीज की तलाश है। कुछ ऐसी बातें जिनका अनुमान शायद उन लोगों को नहीं होगा जो वास्तव में व्यावहारिक रूप से काम नहीं कर रहे हैं। सेबी ने निवेश सलाहकारों को 2013 में और शोध विश्लेषकों को 2014 में नियामकीय दायरे में शामिल किया। निवेश सलाहकार प्राय: पारिवारिक चिकित्सकों की तरह होते हैं जिसे परिवार के हर सदस्य के स्वास्थ्य की पूरी जानकारी होती है। जो बातें चिकित्सक स्वास्थ्य के बारे में जानता है वही बातें निवेश सलाहकार को आपकी संपत्ति के बारे में जानना चाहिए। परंतु यह तुलना यहीं समाप्त हो जाती है। यदि एक से 100 के पैमाने पर चिकित्सकों पर नियामकीय बोझ का स्तर 10 है तो निवेश सलाहकारों के लिए यह 100 है। चिकित्सक हमारी जिंदगी से ताल्लुक रखते हैं। 2013 और 2016 के सेबी नियमन के जरिये पहले ही ग्राहकों के जोखिम के अनिवार्य आकलन, अनुशंसित उत्पादों की उपयुक्तता और दी जाने वाली हर सलाह की उपयुक्तता और व्यवहार्यता पर ध्यान दिया जा चुका था। निवेश सलाहकारों के पास यकीनन एक दस्तावेजीकृत प्रक्रिया होनी चाहिए जिसके मुताबिक वे ग्राहक की जरूरत और वित्तीय स्थिति के अनुसार निवेश का निर्णय कर सकें। उनके पास यह मानने का उचित आधार भी होना चाहिए कि कोई अनुशंसा या लेनदेन ग्राहक के लक्ष्यों और जोखिम प्रोफाइल के अनुरूप है। ये नियमन अब और अधिक सख्त होते जा रहे हैं। सन 2019-21 के दौरान सेबी ने कुछ और बदलाव किए। उसने 23 सितंबर, 2020 को अतिरिक्त दिशानिर्देश जारी कर दिए। यानी जुलाई 2020 में किए गए व्यापक बदलाव के दो माह के भीतर। इन बदलावों के परिणामस्वरूप निवेश सलाहकार क्रेडिट कार्ड से शुल्क नहीं ले सकते और उन्हें 26 प्रावधानों वाले निवेशक समझौते पर हस्ताक्षर करने होते हैं। इसके अलावा उन्हें लिखित और हस्ताक्षरित लिखित रिकॉर्ड रखने होते हैं, टेलीफोन की रिकॉर्डिंग, ईमेल, एसएमएस संदेश तथा अन्य विधिक रूप से जांचे जा सकने लायक रिकॉर्ड कम से कम पांच वर्ष तक रखने होते हैं। क्या ऐसी व्यवस्था व्यावहारिक है? निवेशक सलाहकार को इनका अनुपालन करने के लिए कर्मचारियों की पूरी फौज रखनी होगी। यदि एक चिकित्सक को हर मरीज के साथ 25 पन्नों पर हस्ताक्षर करने पड़े और हर मरीज को लिखे जाने वाले पर्चे को पांच वर्ष तक संभालना हो तथा हर वर्ष पूरी ऑडिट कराना हो तो वह एक दिन में शायद कुछ मरीज ही देख पाएगा। इस स्थिति में स्वास्थ्य सेवा अधिकांश लोगों की पहुंच से बाहर निकल जाएगी। यहां मूल विषय है सेबी का आदर्श निवेश सलाहकार का विचार जिसे अपने ग्राहक की पूरी वित्तीय जानकारी हो, उसके लक्ष्य और प्राथमिकताओं के बारे में, उसकी उधारी के बारे में, उसका वर्तमान निवेश, बचत, व्यय और व्यय और व्यक्तिगत कर आदि सब पता हो ताकि वह उसे एक समग्र राय दे सके। सेबी के दिमाग में जो चल रहा था उस पर उन व्यापक केस अध्ययन ने मुहर लगा दी जिन्हें निवेश सलाहकारों को हर तीसरे वर्ष राष्ट्रीय प्रतिभूति बाजार संस्थान (एनआईएसएम) की अनिवार्य परीक्षा पास करने के लिए पढ़ना पड़ता। सेबी की यह चाह हो सकती है कि सलाहकार व्यापक आंकड़े जुटाएं और अधिक विशिष्ट सेवा प्रदान करें लेकिन कई बार ग्राहक ही अपना ब्योरा नहीं देना चाहते। कुछ लोग विभिन्न सलाहकारों की सेवा का इस्तेमाल करना चाहते हैं जबकि अन्य पूरा भरोसा नहीं करते। दूसरी ओर फिनटेक कंपनियों का संचालन कर रहे वित्तीय उद्यमी एमेजॉन जैसी उपभोक्ता तकनीक को वित्तीय दुनिया में प्रतिरोपित करना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि कुछ ही महीनों में उनके लाखों ग्राहक हो जाएं। इतने बड़े पैमाने पर काम तभी हो सकता है जब न्यूनतम हस्तक्षेप हो, भौतिक प्रतिक्रिया न के बराबर हो और सारी प्रक्रिया महज कुछ मिनटों में समाप्त हो जाए। मौजूदा नियमन के तहत ऐसा कर पाना असंभव है और सेबी तथा फिनटेक कंपनियां दोनों का लक्ष्य है कि उचित निवेश सलाह लाखों लोगों तक पहुंचायी जा सके। फिनटेक कंपनियों की नजर में सेबी का वास्तविक निवेश सलाहकार का मॉडल गुजरे जमाने की व्यवस्था है। फिलहाल फिनटेक कंपनियां मशविरा देने और जोखिम प्रोफाइलिंग का काम कर रही हैं वह भी बिना सेबी के नियमों की परवाह किए। सवाल यह है कि उपभोक्ता क्या चाहते हैं? क्या हर ग्राहक को अत्यधिक गुणवत्तापूर्ण वित्तीय सलाह चाहिए या कुछ लोग सामान्य सलाह से संतुष्ट होंगे? याद रखिए कि वित्तीय नियोजन बिकता है, उसे खरीदना नहीं जाता। चिकित्सक के पास जाना किसी बीमार के लिए जरूरी हो सकता है लेकिन किसी वित्तीय सलाहकार के सामने बैठना जरूरी नहीं है। हमें अपने ग्राहकों से जो हजारों सवाल मिलते हैं उनमें से 80 प्रतिशत को व्यापक तौर पर तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है: पहली, मेरे पास पांच लाख रुपये की अधिशेष राशि बैंक में रखी है, मुझे उसे कहां निवेश करना चाहिए? दूसरा, यह मेरा पोर्टफोलियो है। क्या मुझे इन शेयरों को अपने पास रखना चाहिए या बेच देना चाहिए? तीसरा, फलाने शेयर या फंड के बारे में आपकी क्या राय है? सेबी के मौजूदा नियमन के अधीन निवेशक सलाहकार इनमें से किसी सवाल का जवाब तब तक नहीं दे सकता जब तक कि उसे वित्तीय नियोजन के बारे में भरपूर जानकारियां न हों। फिनटेक कंपनियां सेबी की मांग की भौतिक प्रक्रिया से कैसे निपटती हैं? वे ऐसा नहीं कर सकतीं। उनकी प्रक्रियाएं सेबी के नियमन का उल्लंघन करती हैं। पश्चिम में रोबो सलाह शुरू होने के एक दशक बाद 2016 में सेबी ने एक चर्चा पत्र में इसका उल्लेख किया लेकिन नियमन में इसकी इजाजत नहीं दी। इसके बावजूद बिना नियामकीय कदमों के भय के इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। ग्राहकों की जरूरत पूरी करने के लिहाज से शुरू की गई एक तरह की सेवा ने शोध विश्लेषकों और निवेश सलाहकारों के बीच के अंतर को धुंधला कर दिया है। यह दुख की बात है कि सेबी के कुछ नियम बहुत अस्पष्ट हैं लेकिन नियामक ने निवेश सलाहकारों द्वारा मानकों के उल्लंघन के मामलों में किसी तरह की नरमी नहीं दिखाई। हकीकत में ग्राहकों की आवश्यकता, फिनटेक कंपनियों द्वारा उन्हें की जा रही पेशकश और निवेश सलाहकारों से सेबी की अपेक्षाओं में काफी अंतर है। मैं इस अंतर को दूर करने के लिए पेश किए जाने वाले चर्चा पत्र की प्रतीक्षा कर रहा हूं। (लेखक मनीलाइफडॉटइन के संपादक हैं)
