कमजोर दरें चिंता का विषय हैं | बिजनेस स्टैंडर्ड / August 06, 2022 | | | | |
रीपो दर 50 आधार अंक तक बढ़ाकर 5.40 प्रतिशत किए जाने के बाद आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास, डिप्टी गवर्नर माइकल पात्र, एमके जैन, टी रवि शंकर, और एम राजेश्वर राव ने विभिन्न मुद्दों पर मीडिया के साथ बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश:
दर वृद्धि अधिक और जल्द की गई है। क्या आप इसे लेकर चिंतित नहीं है कि इससे मांग प्रभावित होगी?
दास: मुद्रास्फीति 7 प्रतिशत पर बनी हुई है, जो काफी ऊंचे स्तरों पर है। हमारे अनुमानों के अनुसार, यह इस साल की पहली तीन तिमाहियों में 6 प्रतिशत से ऊपर रही थी। चौथी तिमाही का अनुमान 5.8 प्रतिशत है। मुद्रास्फीति की इस रफ्तार के साथ मौद्रिक नीति में स्पष्ट तौर पर बदलाव लाना होगा। रीपो दर बदलाव के संदर्भ में, यदि आप अन्य केंद्रीय बैंकों को देखें तो 50 आधार अंक नया सामान्य बन गया है। कई केंद्रीय बैंक दरें 75-100 आधार अंक तक बढ़ा रहे हैं।
क्या पिछली दो दर वृद्धि के प्रभाव का असर मुद्रास्फीति अनुमानों में दिखा है?
पात्र: जब दर में बदलाव होता है, तो यह सही है कि हम अपने अनुमान लगाने के लिए सभी तथ्यों का इस्तेमाल करते हैं। हम संभावित बदलावों को ध्यान में नहीं रखते। इसलिए, उस नजरिये से यह आधारभूत परिदृश्य है।
मजबूत आर्थिक सुधार और भारी चालू खाता घाटा हो तो तरलता के संदर्भ में आरबीआई की प्रतिक्रिया कैसी रहेगी?
दास: हम तरलता हालात के प्रबंधन के लिए दो तरीकों पर काम करेंगे। पिछले महीने, बेहद ऊंचे जीएसटी और अन्य कर संग्रह की वजह से तरलता पर अचानक दबाव पड़ गया था। इसलिए, हमने तीन दिवसीय परिपक्वता की रीपो दर संबंधित बैठक का आयोजन किया। हमारा प्रयास यह सुनिश्चित करना होगा कि व्यवस्था में पर्याप्त तरलता हो।
मुद्रा में उतार-चढ़ाव का एमपीसी के निर्णय पर कितना असर पड़ा?
दास: मौद्रिक नीति में वृद्धि के लक्ष्य के साथ साथ मुद्रास्फीति को ध्यान में रखा गया है। इसलिए, यह मुद्रास्फीति विकास परिदृश्य है जो मौद्रिक नीति में बदलाव लाने वाला मुख्य कारक है। विनिमय दर अप्रत्यक्ष रूप में दर्ज की जा सकती है, क्योंकि रुपये में गिरावट से मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिलेगा। इसलिए मुद्रास्फीति पर इसका प्रभाव एक कारक है, लेकिन दरों के संबंध में निर्णय लेने के लिए यह एमपीसी के लिए कारक नहीं है।
आरबीआई दरों को तटस्थ कैसे बनाए रखेगा?
दास: कमजोर ब्याज दरें चिंता का विषय हैं और कुछ हद तक इसे लेकर एमपीसी अपनी चर्चाओं के दौरान ध्यान केंद्रित किया। फ्रंटलोडिंग पर, मैं ज्यादा नहीं बता सकता, क्योंकि यह बदलते हालात पर निर्भर करेगा। इसके दो पहलू हैं: मुद्रास्फीति को लक्ष्य के करीब लाना और वृद्धि का ध्यान रखना।
पात्रा: महामारी के दौरान, मुद्रास्फीति ऊंचाई पर थी और नीतिगत दर नीचे थी। अब इसमें दो बदलाव आए हैं: नीतिगत दर बढ़ रही है और मुद्रास्फीति में नरमी आने की संभावना है। इसलिए, अब कुछ भी हो सकता है।
आपको यह भरोसा कैसे हुआ है कि चालू खाते का घाटा (सीएडी) कम होगा?
पात्र: वर्ष के लिए सीएडी का आकलन एक महीने के व्यापार घाटे के आधार पर नहीं किया जा सकेगा। निर्यात में छोटी गिरावट इसलिए आई है, क्योंकि पेट्रोलियम उत्पाद निर्यात में कमी आई। सरकार ने निर्यात कर घटाकर त्वरित प्रतिक्रिया दिखाई है और हमारा मानना है कि निर्यात फिर से पटरी पर लौटेगा। आयात में, तेल की औसत कीमत (जिसकी घोषणा हमने एमपीसी में की थी) 105 डॉलर प्रति बैरल थी, लेकिन आज यह 94 डॉलर पर कारोबार कर रहा था और सभी जिंस कीमतों में नरमी बनी हुई थी। इसलिए हमें आयात के मोर्चे पर काफी नरमी आने की उम्मीद है।
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