जून में रोजगार में 1.3 करोड़ की नाटकीय गिरावट के बाद हमें उम्मीद थी कि जुलाई में इसमें सुधार होगा। हमारा अनुमान यह भी था कि यह सुधार ग्रामीण भारत में केंद्रित होगा क्योंकि जून में वहां रोजगार में नाटकीय कमी आई थी। हमने जून माह में रोजगार में असाधारण गिरावट के बारे में कहा था कि ऐसा इसलिए हुआ कि दक्षिण पश्चिम मॉनसून में देरी हो रही है और इस वजह से खरीफ की बुआई गतिविधियों में लगने वाले लोग बेरोजगार रहे। कुल मिलाकर हमारा मानना था कि बेरोजगारी की स्थिति अस्थायी रहेगी।जुलाई माह के श्रम से जुड़े आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण भारत में सुधार अवश्य हुआ लेकिन यह अपर्याप्त साबित हुआ। अगर जून में आई 1.3 करोड़ रोजगारों की गिरावट से तुलना की जाए तो जुलाई में केवल 63 लाख रोजगार ही बढ़े। जून में रोजगार में आई कमी पूरी तरह ग्रामीण क्षेत्रों में और कृषि से संबंधित थी। जुलाई में जो सुधार हुआ वह भी ग्रामीण इलाके में तथा खासतौर पर कृषि क्षेत्र में ही हुआ है। जून में रोजगार में कमी की अस्थायी प्रकृति वास्तविक प्रतीत होती है लेकिन इसके बावजूद सुधार की प्रत्याशा आंशिक रूप से ही सही नजर आती है। यह सही है कि दक्षिण-पश्चिम मॉनसून में सुधार होने के साथ ही खरीफ की बुआई संबंधी गतिविधियों ने जोर पकड़ा और कृषि श्रमिकों के रूप में कामगारों का रोजगार बढ़ा। जुलाई महीने में कृषि क्षेत्र में 94 लाख अतिरिक्त श्रमिक शामिल हुए। जून में इस क्षेत्र में 80 लाख रोजगार कम हुए थे। जुलाई माह में अकेले कृषि क्षेत्र में ही फसल बुआई की बदौलत 47 लाख अतिरिक्त रोजगार तैयार हुए जबकि जून में इस क्षेत्र में 34 लाख रोजगार थे। इससे पता चलता है कि खरीफ फसल की तैयारी और बुआई में लोगों को अस्थायी रोजगार मिला। श्रमिकों के कृषि क्षेत्र में जाने का फैसला अनुमान के अनुरूप ही है लेकिन इनकी तादाद जरूर अपेक्षा से कम है। जुलाई 2022 में कृषि क्षेत्र में करीब 14.75 करोड़ लोग रोजगारशुदा थे जबकि जुलाई 2021 तथा जुलाई 2020 में यह आंकड़ा 16.38 करोड़ था। यह जून 2022 में समाप्त हुए 12 महीनों के 15.4 करोड़ रोजगार के औसत से भी कम है। जुलाई माह में कृषि से जुड़ी गतिविधियों में अपेक्षा से कम रोजगार बताता है कि दक्षिण-पश्चिम मॉनसून अच्छा नहीं रहा और उसके बाद खरीफ के महीने में भी कमजोर बुआई हुई। उत्तर प्रदेश और बिहार में इस वर्ष अब तक बारिश कमजोर रही है। इसे गंगा के मैदानी इलाके में खरीफ की फसल की बुआई प्रभावित हुई है। इस वजह से चावल की फसल के बारे में कहा जा सकता है कि उसका रकबा कम हुआ होगा। जुलाई के अंत तक उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक चावल की बुआई में 13 फीसदी की कमी देखी गई और ज्यादा कमी बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में आई। असमान बारिश को भी जुलाई 2022 में रोजगार में अधूरे सुधार के लिए उत्तरदायी माना जा सकता है लेकिन यह वजह आंशिक ही है। उद्योग तथा सेवा क्षेत्र में भी रोजगार कम हुआ। वेतनभोगी कर्मचारियों के वेतन में भी कमी आई तथा कारोबारियों के भी। इस गिरावट को बारिश से नहीं जोड़ा जा सकता। जुलाई में औद्योगिक क्षेत्र ने दो लाख रोजगार गंवाए जबकि जून में उसने 43 लाख रोजगार गंवाए थे। सेवा क्षेत्र ने जुलाई में 28 लाख रोजगार गंवाए जबकि जून में उसने केवल 8 लाख रोजगार गंवाए थे। औद्योगिक और सेवा क्षेत्र ने भी इन दो महीनों में रोजगार गंवाए हैं। मई 2022 में औद्योगिक क्षेत्र में 10.8 करोड़ रोजगार बढ़े थे। यह इस क्षेत्र में रोजगार का उच्चतम स्तर था। जून और जुलाई में यह घटकर 10.4 करोड़ रह गया। उद्योग जगत में रोजगार का यह स्तर महामारी के पहले के वर्ष 2019-20 के औसत से बेहतर है। उस समय भी इस क्षेत्र में 10.4 करोड़ रोजगार थे। औद्योगिक रोजगारों में सुधार की बात करें तो निर्माण क्षेत्र में रोजगार में सुधार हुआ है, न कि विनिर्माण में। विनिर्माण क्षेत्र के रोजगार को तुलनात्मक रूप से बेहतर गुणवत्ता वाला भी माना जाता है। विनिर्माण क्षेत्र महामारी के दौरान रोजगार को पहुंची क्षति से उबर नहीं पाया है। इस क्षेत्र में महामारी के पहले जहां चार करोड़ लोग रोजगारशुदा थे वहीं अब यह आंकड़ा 3 करोड़ से लेकर 3.4 करोड़ रह गया है। विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार की यह गिरावट काफी अहम है। बीते दो महीनों में विनिर्माण क्षेत्र के रोजगार में आने वाली गिरावट व्यापक तौर पर रसायन और धातु जैसे बड़े तथा संगठित उद्योगों में केंद्रित रही। जून और जुलाई 2022 के दौरान करीब 80 लाख से अधिक गैर कृषि रोजगार गंवाए गये। यह नुकसान भी उद्योग और सेवा क्षेत्र के बीच समान रूप से बांटा जा सकता है।शहरी भारत के श्रम बाजार जुलाई में खासे दबाव में रहे। कृषि क्षेत्र में लोगों को रोजगार मिलने के कारण ग्रामीण भारत में रोजगार जून के 26.52 करोड़ से 69 लाख बढ़कर जुलाई में 27.21 करोड़ हो गया। बहरहाल, शहरी भारत में रोजगार में 6 लाख की कमी आई और यह 12.57 करोड़ से घटकर 12.51 करोड़ रह गया। यह मामला शायद श्रमिकों के शहर से गांव जाने की न हो। शहरी भारत में श्रम भागीदारी दर जुलाई में थोड़ी बढ़ी जबकि बेरोजगारी दर में भी इजाफा हुआ। यदि श्रमिक शहरों से गांव जा रहे होते तो श्रम भागीदारी दर में गिरावट आती। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। शहरी भारत में बेरोजगारी की दर तेजी से बढ़ी और वह जून के 7.3 फीसदी से बढ़कर जुलाई में 8.2 फीसदी हो गई। औसत शहरी बेरोजगारी दर बीते 12 महीनों में 8 फीसदी से ऊपर दर्ज की गई है। इसके साथ ही रोजगार की दर में धीरे-धीरे गिरावट आई है। शहरी रोजगार दर जून के 34 फीसदी से घटकर जुलाई में 33.8 फीसदी रह गई। यह एक वर्ष में न्यूनतम शहरी रोजगार दर है। गैर कृषि क्षेत्रों तथा शहरी क्षेत्रों के कमजोर प्रदर्शन ने श्रमिकों की मुश्किल बढ़ा दी है। अगर मॉनसून नाकाम रहा तो उनकी तकलीफ बढ़ जाएगी। (लेखक सीएमआईई प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक और सीईओ हैं)
