संसद में बुधवार को पेश किया गया ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) विधेयक 2022 विनिर्माण कंपनियों को अपनी निजी जरूरतों के लिए अक्षय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ाने के लिए प्रेरित कर सकता है। विधेयक में औद्योगिक गतिविधि के लिए गैर-जीवाश्म स्रोतों के उपयोग को अनिवार्य करने का प्रस्ताव है। साथ ही इसका अनुपालन न करने वालों को दंडित करने की बात भी कही गई है।फिलहाल सीमेंट से लेकर धातु एवं पेट्रोकेमिकल क्षेत्र की अधिकांश कंपनियां अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी हद तक ताप विद्युत परियोजनाओं पर निर्भर हैं। उद्योग के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, विनिर्माण कंपनियों के लिए तापीय ऊर्जा की हिस्सेदारी 90 से 95 फीसदी है जबकि उसमें अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी महज 5 से 10 फीसदी है।हालांकि आने वाले वर्षों में यह अनुपात बदल सकता है क्योंकि सरकार अक्षय ऊर्जा के उपयोग को अनिवार्य करना चाहती है। उदाहरण के लिए, अल्ट्राटेक, वेदांत, हिंदुस्तान जिंक और जेएसडब्ल्यू स्टील जैसी इस क्षेत्र की अग्रणी कंपनियों के पास अक्षय ऊर्जा स्रोतों को अपनाने के लिए स्पष्ट योजनाएं हैं। इन कंपनियों से बातचीत में इसका पता चलता है। उद्योग के अनुमान के अनुसार, साल 2030 तक बड़ी विनिर्माण कंपनियां अपनी 20 से 25 फीसदी कैप्टिव यानी निजी बिजली जरूरतों को गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों से पूरा कर सकती हैं क्योंकि अक्षय ऊर्जा को अपनाने पर जोर दिया जा रहा है।नई दिल्ली की अंतर्दृष्टि एवं अनुसंधान कंपनी काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायर्नमेंट ऐंड वाटर के फेलो वैभव चतुर्वेदी ने कहा, ' भारत को शून्य उत्सर्जन संबंधी प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए सभी औद्योगिक ऊर्जा उपयोग में कार्बन उत्सर्जन को कम करने की आवश्यकता होगी। समय बताएगा कि अक्षय ऊर्जा बाजार का चरणबद्ध विकास सहजता से इस बदलाव के लिए पर्याप्त समय सुनिश्चित करेगा। 'जेएसडब्ल्यू स्टील के चेयरमैन सज्जन जिंदल ने अपनी नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि कंपनी ने अगले कुछ वर्षों में अपनी विनिर्माण इकाइयों में तापीय बिजली के बजाय अक्षय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ाने के लिए 10,000 करोड़ रुपये के निवेश की योजा बनाई है।इस्पात मंत्रालय के एक दस्तावेज के अनुसार, भारत सालाना कुल कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जन में 12 फीसदी का योगदान करता है जो वैश्विक औसत करीब 8 फीसदी से अधिक है। सरकार ने हाल ही में इस्पात कंपनियों को कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए एक समयबद्ध कार्य योजना तैयार करने का निर्देश दिया था।उधर, धातु एवं खनन कंपनियों को प्रमुख औद्योगिक प्रदूषक माना जाता है। हिंदुस्तान जिंक के मुख्य कार्याधिकारी अरुण मिश्रा ने बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में कहा कि कंपनी शून्य कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य को पूरा करने के लिए 200 मेगावॉट क्षमता तक निजी अक्षय ऊर्जा विकास योजना को मंजूरी दी गई है।व्यापक स्तर पर हिंदुस्तान जिंक अपनी खनन गतिविधियों को पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए अगले पांच साल में 1 अरब डॉलर यानी करीब 8,000 करोड़ रुपये का निवेश करेगी।हिंदुसतान जिंक में 64.9 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाली मूल कंपनी वेदांत ने हाल में एक बयान में कहा था कि वह अपने भारतीय परिचालन के लिए 580 मेगावॉट अक्षय ऊर्जा हासिल करेगी। इसके लिए वेदांत समूह की विशेष उद्देशीय कंपनी स्टरलाइट पावर टेक्नोलॉजी के साथ बिजली खरीद समझौते पर हस्ताक्षर किए जा रहे हैं।इस बीच, अल्ट्राटेक ने साल 2050 तक अपनी शत प्रतिशत ऊर्जा जरूरतों को अक्षय ऊर्जा से पूरा करने का लक्ष्य रखा है। कंपनी ने हाल में कहा था कि उसने अपनी अक्षय ऊर्जा क्षमता में करीब ढाई गुना वृद्धि की है।
