बढ़ती वैश्विक अनिश्चितता के प्रभाव को सीमित रखने के लिए विभिन्न स्तरों पर नीतिगत हस्तक्षेप की आ�
बीएस टीम / नई दिल्ली 08 04, 2022
बढ़ती वैश्विक अनिश्चितता के प्रभाव को सीमित रखने के लिए विभिन्न स्तरों पर नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता होगी। विकसित देशों के केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए दरों में तेज इजाफा करने तथा वित्तीय हालात को तंग करने पर विवश हैं। जबकि इसी बीच महामारी के बाद मची उथलपुथल से निपटते हुए आर्थिक सुधार की ओर बढ़ने की प्रक्रिया कमजोर पड़ रही है। इसके परिणामस्वरूप धीमी वैश्विक वृद्धि भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्था के निर्यात को प्रभावित करेगी जबकि सख्त मौद्रिक हालात पूंजी प्रवाह को प्रभावित करेंगे। इस संदर्भ में व्यापार संबंधी ताजा आंकड़े इस बात को रेखांकित करते हैं कि बाह्य क्षेत्र के प्रबंधन में सावधानी बरतने की आवश्यकता है। भारत का वाणिज्यिक व्यापार घाटा जुलाई में 31.02 अरब डॉलर के नये स्तर पर पहुंच गया जबकि जून में यह 26.18 अरब डॉलर था। जुलाई 2021 में व्यापार घाटा केवल 10.63 अरब डॉलर था। पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में निर्यात में मामूली गिरावट आई जबकि आयात 43.59 फीसदी बढ़ा। अप्रैल-जुलाई में व्यापार घाटा 100 अरब डॉलर का स्तर पार कर गया जबकि गत वर्ष समान अवधि में वह 42 अरब डॉलर था।
निर्यात के मोर्चे पर जहां इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं और चावल के निर्यात में मजबूत वृद्धि देखने को मिली, वहीं इंजीनियरिंग वस्तुओं तथा पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात में कमी आई। ऐसा प्रतीत होता है कि पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात कम होने के पीछे एक वजह निर्यात शुल्क भी है। इस बीच आयात तेज बना रहा। पेट्रोलियम उत्पादों का आयात 70 प्रतिशत से अधिक बढ़ा। विश्लेषकों का अनुमान है कि आने वाले महीनो में आयात में कमी आएगी। आंशिक तौर पर इसकी वजह वैश्विक जिंस कीमतों में कमी आना भी है लेकिन ऊर्जा कीमतें अभी भी तेज बनी हुई हैं। कोयले के आयात में भी कमी आनी चाहिए क्योंकि घरेलू आपूर्ति में सुधार होने के साथ ही सरकार ने आयातित कोयला मिलाने की अनिवार्यता वाले आदेश को खत्म कर दिया है। बहरहाल, समेकित स्तर पर देखा जाए तो घाटे का स्तर ऊंचा बना रह सकता है। निर्यात प्रभावित होगा क्योंकि वैश्विक मांग के हालात कमजोर बने रहेंगे जबकि आयात इसलिए ऊंचा बना रहेगा कि ऊर्जा कीमतें ऊंची हैं और भारतीय अर्थव्यवस्था सुधार की प्रक्रिया से गुजर रही है।
अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में चालू खाते का घाटा (सीएडी) सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के तीन प्रतिशत से अधिक रहेगा। हालांकि सीएडी का स्तर बहुत अधिक चिंतित करने वाला नहीं है लेकिन पूंजी खाते के मोर्चे पर व्याप्त अनिश्चितता कठिनाई पैदा कर सकती है। हालांकि विदेशी पोर्टपोलियो निवेशक इस वर्ष 30 अरब डॉलर की बिकवाली करने के बाद हाल ही में भारतीय बाजारों में लौट आए हैं लेकिन वैश्विक आर्थिक एवं वित्तीय हालात के चलते पूंजी की आवक तंग बनी रहेगी। बाह्य स्थिति यह भी सुझाती है कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये में हालिया सुधार अल्पकालिक हो सकता है। इसके अलावा अगर और अधिक गिरावट आती है तो निर्यात को गति देकर तथा आयात को कम करके सीएडी को सीमित रखा जा सकता है। इससे भारतीय परिसंपत्तियां विदेशी निवेशकों के लिए और अधिक आकर्षक हो जाएंगी। इससे पूंजी की आवक को बल मिलेगा। यह बात ध्यान देने लायक है कि इस वर्ष डॉलर सूचकांक में 11 प्रतिशत की तेजी आई है। इससे यूरो और येन समेत कई मुद्राओं पर बहुत अधिक दबाव पड़ा है।
अपेक्षाकृत मजबूत रुपया भारत की बाह्य प्रतिस्पर्धा को प्रभावित करेगा और असंतुलन को बढ़ाएगा। भारतीय रिजर्व बैंक बाजार में आक्रामक ढंग से हस्तक्षेप करता रहा है ताकि अतिरिक्त अस्थिरता को सीमित किया जा सके तथा रुपये में गिरावट का प्रबंधन किया जा सके। अगर वह हस्तक्षेप कम करे और रुपये का अवमूल्यन होने दे तो बेहतर होगा क्योंकि इससे बाह्य खाते का प्रबंधन अपेक्षाकृत आसान होगा। मुद्रा के कमजोर होने से मुद्रास्फीति बढ़ सकती है लेकिन मौद्रिक नीति सामान्य होने और नकदी की स्थिति बेहतर होने से अन्य अनुमानों को सहारा देने में मदद मिलेगी। व्यापक स्तर पर जहां सरकार चालू वर्ष में 500 अरब डॉलर का निर्यात लक्ष्य हासिल करने को लेकर आशान्वित है, वहीं भारत को अधिक समझदारी भरी व्यापार नीति की आवश्यकता है ताकि निर्यात को टिकाऊ बनाया जा सके। ऐसा होने से न केवल बाह्य स्थिरता हासिल होगी बल्कि समग्र आर्थिक वृद्धि को भी मदद मिलेगी।
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