मकान के किराये पर कर वसूले जाने का मसला आजकल चर्चा में है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के नए नियम के मुताबिक आवासीय संपत्ति यानी मकान के किराये पर भी अब 18 फीसदी कर चुकाना होगा। यह नियम 18 जुलाई से लागू भी हो चुका है। खास बात है कि यह कर रिवर्स चार्ज व्यवस्था के तहत लिया जाएगा यानी जीएसटी किरायेदार को चुकाना पड़ेगा। पीएसएल एडवोकेट्स ऐंड सॉलिसिटर्स के मैनेजिंग पार्टनर संदीप बजाज कहते हैं, 'अचल संपत्ति को किराये पर उठाना जीएसटी अधिनियम के अंतर्गत सेवा की आपूर्ति माना जाता है। इसलिए किराये को सेवा के लिए किया गया भुगतान माना जाता है। ऐसे में उस पर जीएसटी बनता है।'किस पर कितना असर? किराये पर जीएसटी लगाए जाने का बड़ी संख्या में लोगों पर असर पड़ेगा। एसकेवी ऑफिसेज के सीनियर असोसिएट आशुतोष के श्रीवास्तव कहते हैं, 'भारत में किराये के बाजार पर इसका बड़ा असर होगा। कंपनियों को किराये पर लिए गए फ्लैट और गेस्ट हाउस के लिए किराया देते समय यह ध्यान रखना पड़ेगा कि उसके पूर 18 फीसदी कर यानी अतिरिक्त खर्च भी देना है।' को-लिविंग की सुविधा प्रदान करने वालों को इससे झटका लगेगा। टैक्समैन में उप प्रबंध निदेशक सुनील कुमार कहते हैं, 'जीएसटी कानून में संशोधन का असली मकसद किराये पर रहने की जगह देने वाली फर्मों से कर वसूनला है। लेकिन कानून का मसौदा देखकर लगता है कि इससे जीएसटी देने वाले ऐसे कई व्यक्तियों पर भी मार पड़ेगी, जिन्होंने मकान किराये पर लिया है।'कौन इसके दायरे में? विशेषज्ञों का कहना है कि नया कर उन्हीं किरायेदारों पर लगेगा, जिनका जीएसटी में पंजीकरण है। यह कर किराये के मकान में रहने वाले हरेक नौकरीपेशा व्यक्ति से नहीं वसूला जाएगा। क्लियर के मुख्य कार्य अधिकारी अर्चित गुप्ता समझाते हैं, 'मान लीजिए कि आप अस्थायी काम करने वाले यानी गिग वर्कर हैं, परामर्श सेवाएं देते हैं या ई-कॉमर्स विक्रेता हैं, जो किराये के घर से काम करते हैं। इस कानून की व्याख्या उदारता से की जाए तो अगर आप इस जगह का इस्तेमाल केवल रहने के लिए कर रहे हैं और किराये में खर्च होने वाली रकम को कारोबारी खर्च दिखाकर अपने आयकर रिटर्न में उस पर कर छूट की मांग नहीं कर रहे हैं तो आपको जीएसटी भरे बगैर रह सकते हैं।' लेकिन अगर आप किराये पर खर्च हो रही रकम का जिक्र अपने आयकर रिटर्न में करते हैं तो आपको पूरा हिसाब लगाकर जीएसटी चुकाना होगा। रिवर्स चार्ज व्यवस्था का मतलब हे कि सेवा प्राप्त करने वाले व्यक्ति (सेवा देने वाले नहीं) को सेवा की कीमत पर जीएसटी का हिसाब लगाना होगा और उसे जमा करना होगा।मकान मालिक पंजीकृत न हो… एक आम सवाल आता है कि जीएसटी में पंजीकृत व्यक्ति को कोई ऐसा व्यक्ति अपना मकान किराये पर देता है, जिसका खुद जीएसटी में पंजीकरण नहीं है तो क्या होगा। विक्टोरियम लीगलिस-एडवोक्ट्स ऐंड सॉलिसिटर्स के मैनेजिंग पार्टनर आदित्य चोपड़ा कहते हैं, 'उस सूरत में रिवर्स चार्ज व्यवस्था के तहत किरायेदार को 18 फीसदी जीएसटी चुकाना होगा।' वेद जैन ऐंड असोसिएट्स में पार्टनर अंकित जैन बताते हैं, 'अभी तक आवासीय किराये पर जीएसटी उसी सूरत में लगता था, जब आवासीय संपत्ति का इस्तेमाल गैर-आवासीय उद्देश्य जैसे दफ्तर, दुकान या गोदाम के लिए होता था।' लेकिन नए नियमों के तहत अगर जीएसटी में पंजीकरण वाला व्यक्ति किसी भी तरह से इस्तेमाल के लिए मकान किराये पर लेता है तो उसे किराये पर जीएसटी चुकाना ही होगा। किसी कंपनी का कर्मचारी अगर रहने के लिए ही मकान किराये पर लेता है तो भी उसे जीएसटी देना होगा। बजाज कहते हैं, 'अगर कोई कंपनी अपने कर्मचारियों के लिए किराये पर फ्लैट लेती है तो कंपनी को किराये पर जीएसटी भरना होगा क्योंकि इस मामले में किराये पर लेने वाली यानी किरायेदार कंपनी है। उस स्थिति में कर्मचारी के वेतन का ढांचा बदलना होगा। कंपनी को जीएसटी शामिल करने के लिए या तो कर्मचारी की कॉस्ट-टु-कंपनी (सीटीसी) बढ़ानी होगी या उसका मूल वेतन कम करना होगा।'जीएसटी चुकाएं कैसे? किरायेदार को जीएसटी रिटर्न भरना होगा और जो भी कर बनता है वह चुकाना होगा। उसे इनपुट टैक्स क्रेडिट लेने की इजाजत होगी। इनपुट टैक्स क्रेडिट का मतलब है कि वस्तु एवं सेवाएं खरीदते समय दिया गया जीएसटी आगे की कर देनदारी में से घटा दिया जाएगा। जीएसटी में पंजीकृत किरायेदार को किराये पर जीएसटी देने की जरूरत नहीं है, यह साबित करने का जिम्मा भी किरायेदार का ही है। जैन कहते हैं, 'अगर किरायेदार पहले से ही जीएसटी में पंजीकृत है तो उसे किराये पर जीएसटी देना होगा। अगर वह पंजीकृत नहीं है तो उस पर किसी तरह का जीएसटी नहीं बनता। किरायेदार को किराये पर जीएसटी भरने के मकसद से पंजीकरण कराने की कोई जरूरत नहीं है।'
