वैश्विक मंदी का निर्यात पर असर! | इंदिवजल धस्माना / नई दिल्ली July 30, 2022 | | | | |
वैश्विक मंदी के भय और अमेरिका में लगातार दो तिमाहियों तक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में गिरावट से भारत का निर्यात प्रभावित हो सकता है। हालांकि घरेलू मांग से अर्थव्यवस्था को मदद मिल सकती है और दबाव कम हो सकता है।
बैंक आफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि अमेरिका में मंदी से भारत से होने वाला निर्यात प्रभावित होगा और व्यापार घाटे पर दबाव बढ़ेगा और इसकी वजह से चालू खाते के घाटे को लेकर भी दबाव बढ़ेगा। इसकी बड़ी वजह यह है कि यूरोपियन यूनियन (ईयू) और अमेरिका भारत के बड़े निर्यात केंद्र हैं।
इक्रा में मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने भी कहा कि अमेरिका में मंदी सेवाओं और वाणिज्यिक वस्तुओं दोनों के ही निर्यात पर असर डाल सकता है। उन्होंने कहा, ‘बहरहाल जिंसों के दाम कम होने से सीएडी पर पड़ने वाला असर कम होगा।’ अमेरिकी बाजार भारत का सबसे बड़ा निर्यात केंद्र है। हाल के वर्षों में अमेरिका को होने वाला निर्यात भारत के कुल निर्यात के 16-18 प्रतिशत के बीच बना हुआ है। 2022 की दूसरी तिमाही में अमेरिका के जीडीपी में गिरावट के दौरान भी भारत से होने वाले निर्यात में शुरुआती दो महीनों में भारत के कुल निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी18 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सेदारी रही है। भारत से होने वाले निर्यात के केंद्र के रूप में अमेरिका, यूरोपियन यूनियन की तुलना में थोड़ा बड़ा है। यूरोपियन यूनियन एक और क्षेत्र है, जहां मंदी आने के करीब है, या आ सकती है।
सबनवीस ने कहा, ‘अगर वैश्विक अर्थव्यस्था में मंदी भी आती है तो भारत को मंदी का कोई खतरा नहीं होगा क्योंकि हमारी वृद्धि प्राथमिक रूप से घरेलू मांग पर आधारित है। भारत पर महंगाई दर का असर पड़ सकता है और ऐसे में हमें संभावित मंदी में घरेलू कारकों को ध्यान में रखना होगा।’ उन्होंने कहा कि इस समय सभी देशों के केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर रहे हैं, जिससे महंगाई में कमी आएगी।
नायर ने भी कहा कि घरेलू मांग हालांकि रपटीली है, लेकिन यह वैश्विक मंदी से निपटने में सक्षम है।
उन्होंने कहा, ‘हम भारत में मंदी की स्थिति नहीं देख रहे हैं। वैश्विक मंदी से जिंसों के दाम में कमी आएगी और इससे महंगाई दर कम होगी।’
एचडीएफसी बैंक ट्रेजरी में प्रधान अर्थशास्त्री साक्षी गुप्ता ने कहा कि अमेरिका और कुछ अन्य कारोबारी साझेदार देशों जैसे यूरोपियन यूनियन में मंदी का भारत की निर्यात वृद्धि पर असर पड़ सकता है। उन्होंने कहा, ‘हम उम्मीद करते हैं कि चालू वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि दर 7 प्रतिशत रहेगी, जो पहले के 7.3 प्रतिशत के अनुमान से कम है।’ बहरहाल उन्होंने कहा कि घरेलू बुनियादी अवधारणा आर्थिक वृद्धि को समर्थन करेगी।
गुप्ता ने कहा कि बेहतर मॉनसून, सरकार का पूंजीगत व्यय और ग्राहकों की मांग में बढ़ोतरी वृद्धि के हिसाब से सकारात्मक हो सकते हैं।
बहरहाल बीआर अंबेडकर स्कूल आफ इकोनॉमिक्स यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर एनआर भानुमूर्ति ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि अमेरिका में लंबे समय तक मंदी की स्थिति रहेगी। उन्होंने कहा, ‘बेरोजगारी के आंकड़े, एफओएमसी (फेडरल ओपन मार्केट कमेटी) के ब्योरे से पता चलवता है कि अगर अमेरिका में की मंदी है तो वह बहुत कम समय के लिए होगी।’
मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने संपर्क किए जाने पर दो दिन पहले के अपने साक्षात्कार का हवाला दिया। बिजनेस टुडे के साथ साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि विकसित देशों में मंदी या मंदी की स्थिति का शुद्ध असर भारत से होने वाले निर्यात और पूंजी प्रवाह पर पड़ेगा।
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