जुलाई 1969 में कुछ निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था। अब इन्हें पलटने का काम 53 साल बाद हो रहा है। शुरुआत में आईडीबीआई बैंक लिमिटेड के अलावा 12 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में से केवल दो का निजीकरण होगा। आईडीबीआई बैंक पहले ही निजीकरण की प्रक्रिया से गुजर रहा है। 19 जुलाई, 1969 की मध्य रात्रि को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के राष्ट्र को संबोधन के कुछ घंटों के बाद 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। इन बैंकों में हरेक की जमाएं कम से कम 50 करोड़ रुपये थीं। दूसरे चरण में छह बैंकों का राष्ट्रीयकरण 1980 में किया गया। इन बैंकों में से प्रत्येक की जमाएं 200 करोड़ रुपये से अधिक थीं। उसके बाद बैंकिंग उद्योग में कई गुना बढ़ोतरी हुई है। जून 1969 में 73 वाणिज्यिक बैंक थे। अब 78 हैं, जिनमें लघु वित्त बैंक, भुगतान बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक और स्थानीय क्षेत्र बैंक शामिल नहीं हैं। जून 1969 से दिसंबर 2021 के बीच बैंक शाखाओं की संख्या 8,262 से बढ़कर 2,11,332 पर पहुंच गई है। जून 1969 में बैंकों का जमा पोर्टफोलियो 4,646 करोड़ रुपये और कुल ऋण 3,599 करोड़ रुपये था। 1 जुलाई, 2022 तक जमा पोर्टफोलियो बढ़कर 169.6 लाख करोड़ रुपये और कुल ऋण 123.8 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गए हैं। सरकार ने निजीकरण की योजना से पहले विलय की मुहिम चलाई ताकि बैंकों को बड़ा और मजबूत बनाया जा सके। इससे पीएसबी की संख्या घटकर 12 रह गई है, जो 2017 में 27 थी। उनमें से सात काफी बड़े हैं और भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) परिसंपत्तियों के लिहाज से दुनिया भर में शीर्ष 50 बैंकों में शामिल है। पहली बार फरवरी 2021 के केंद्रीय बजट में दो पीएसबी के निजीकरण का जिक्र किया गया। उससे पहले सरकार ने आईडीबीआई बैंक के निजीकरण की प्रतिबद्धता जताई थी। भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) ने जनवरी 2019 में आईडीबीआई बैंक में 51 फीसदी हिस्सेदारी ली। उसके बाद एलआईसी की हिस्सेदारी घटकर 49.24 फीसदी पर आ गई क्योंकि बैंक ने दिसंबर 2020 में पात्र संस्थागत निवेशकों से 1,435 करोड़ रुपये जुटाकर अपनी इक्विटी बढ़ाई है। इस बैंक में सरकार की हिस्सेदारी 45.48 फीसदी है। आईडीबीआई बैंक एक निजी बैंक है, जिसका परिचालन कंपनी अधिनियम, 2013 के मुताबिक होता है। फिर भी यह केंद्रीय सतर्कता आयोग की जकड़न से मुक्त नहीं है, यह सूचना के अधिकार के दायरे में भी आता है और इसे राजभाषा नियमों का भी पालन करना होता है। ये सभी पीएसबी की विशेषताएं हैं। एलआईसी ने जरूरत पड़ने पर पांच साल के लिए पूंजी झोंकने और 12 साल में अपनी हिस्सेदारी घटाकर 40 फीसदी पर लाने की प्रतिबद्धता जताई है। हालांकि भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) के आदेश के मुताबिक एलआईसी जल्द ही बैंक में अपनी हिस्सेदारी घटाकर 15 फीसदी पर लाएगी और बैंक का प्रबंधन छोड़ देगी। आईडीबीआई बैंक की एक टीम ने जून में अमेरिका में रोडशो किया था। इस बैंक की बैलेंस शीट 3 लाख करोड़ रुपये है, जिसने पिछले दो साल में मुनाफा कमाया है, इसके शुद्ध फंसे कर्ज परिसंपत्तियों के 1.27 फीसदी हैं और प्रावधान कवरेज अनुपात 97.6 फीसदी है। लेकिन यह मुहिम आगे नहीं बढ़ पाई है क्योंकि निवेश एवं सार्वजनिक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग ने अभी तक निवेशकों से तथाकथित पत्र आमंत्रित नहीं किए हैं। परंपरागत रूप से सरकार पीएसयू में अपनी हिस्सेदारी धन कमाने के लिए बेच रही है, लेकिन बैंकों के निजीकरण के पीछे तर्क सार्वजनिक धन को उनका वजूद बचाए रखने में उपयोग करने पर रोक लगाना है। सरकार 1994 से इन बैंकों में करीब 4.5 लाख करोड़ रुपये पूंजी के रूप में झोंक चुकी है। प्रधानमंत्री ने कहा है कि सरकार का काम गरीबों का खयाल रखना, खाद्य, शौचालय, मकान और स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित करना है, लेकिन इसका काम कारोबार करना नहीं है। निजीकरण का रास्ता साफ करने के लिए बैंक राष्ट्रीयकरण अधिनियम में संशोधन करना जरूरी है। क्या सरकार अपनी हिस्सेदारी 51 फीसदी से थोड़ा नीचे लाकर रुक जाएगी या इसमें और कटौती करेगी? यह निजीकरण की सफलता के लिए बहुत अहम है। अगर सरकार निवेशकों में पीएसबी को लेकर उत्साह का संचार करना चाहती है तो उसे कुछ और बदलाव लाने की जरूरत है।राष्ट्रीयकरण अधिनियम सरकार को व्यापक नियंत्रक शक्तियां देता है, जो अन्य किसी प्रमुख शेयरधारक को उपलब्ध नहीं हैं।मसलन, सरकार 10 फीसदी से अधिक वोटिंग का इस्तेमाल कर सकती है, लेकिन यह विशेषाधिकार अन्य किसी शेयरधारक को नहीं है इसकी पूंजी बढ़ाने और घटाने में निर्णायकभूमिका है यह जनहित में राष्ट्रीयकृत बैंकों को निर्देश (धारा 8) दे सकती है। वैसे यह काम आरबीआई के साथ विचार-विमर्श के बाद होना चाहिए। लेकिन आम तौर पर यह काम वित्त मंत्रालय की एक शाखा बैंकिंग विनियामक को जानकारी दिए बिना ही करती है। उसके पास पूर्णकालिक निदेशकों (एमडी सहित), गैर-कार्यकारी चेयरमैन और निदेशक मंडल के अन्य सदस्यों की नियुक्ति का अधिकार है। वह बोर्ड को बदल सकती है (धारा 18ए) और नियमों बनाने को मंजूरी दे सकती है (धारा 19)। सरकार के पास किसी बैंक के परिसमापन की शक्ति है। दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय के लिए सरकार की मंजूरी आवश्यक है।कुल मिलाकर सरकार के पास किसी भी बोर्ड द्वारा चलाई जा रही कंपनी में बहुलांश हिस्सेदार से अधिक शक्तियां हैं। पीएसबी के लिए सरकार स्वामित्व और नियामकीय शक्तियों, दोनों के लिहाज से सुपरबोर्ड है। केवल सरकार की हिस्सेदारी को घटाकर 51 फीसदी से नीचे लाने से पीएसबी के लिवाल नहीं मिलेंगे। अगर सरकार शक्तियां छोड़ने को तैयार है तो उसे अपनी हिस्सेदारी कम से कम 26 फीसदी पर लानी चाहिए। कोई भी गंभीर निवेशक किसी पीएसबी पर तभी विचार करना चाहेगा जब उसे ज्यादा मताधिकार समेत बैंक के मामलों में शामिल किया जाए। वह पैसा लगाकर सरकार का हस्तक्षेप/दखल/नियंत्रण नहीं चाहेगा। आखिर में सीईओ और ईडी की अवधि लंबी- 60 साल से अधिक होनी चाहिए। इस समय निजी बैंकों में सीईओ की उम्र सीमा 70 साल है। वेतन-भत्ते बाजार आधारित होने चाहिए। वर्ष 2014 में जेपी नायक समिति ने ये सिफारिशें की थीं, जो भारत में बैंकों के बोर्डों के प्रशासन की समीक्षा के लिए गठित की गई थी। आठ साल बीत चुके हैं, लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ है। सरकार बैंक राष्ट्रीयकरण की 53वीं वर्षगांठ मना रही है। ऐसे में अगर वह कुछ पीएसबी के निजीकरण को लेकर गंभीर है तो उसे आत्ममंथन करना चाहिए।
