भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के बोर्ड के सदस्य और सहकारी समितियों के अखिल भारतीय संगठन सहकार भारती के संस्थापक सदस्य सतीश मराठे ने कहा कि रिजर्व बैंक द्वारा मंगलवार को घोषित शहरी सहकारी बैंकों (यूसीबी) के संशोधित दिशानिर्देश से इन कर्जदाताओं की वृद्धि की राह साफ होगी। उन्होंने कहा कि नए बैंक लाइसेंसों की पेशकश कर इस सेक्टर को आगे और उदार बनाए जाने की जरूरत है। यूसीबी पर बने संशोधित दिशानिर्देशों में 4 स्तर के नियामकीय ढांचे का प्रस्ताव किया गया है, जिसमें मौजूदा यूसीबी की वित्तीय मजबूती के लिए अलग नियामकीय प्रावधान किए गए हैं। बड़े कर्जदाताओं की पूंजी की जरूरत बढ़ा दी गई है, जबकि शाखाओं का विस्तार ऑटोमेटिक कर दिया गया है। पूर्व डिप्टी गवर्नर एनएस विश्वनाथन की अध्यक्षता में शहरी सहकारी बैंकों के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया था और समिति की सिफारिशों के मुताबिक संशोधित मानकों को अंतिम रूप दिया गया। बिजनेस स्टैंडर्ड के साथ बातचीत में मराठे ने कहा कि सहकार भारती ने विश्वनाथन समिति को सुझाव दिया था कि यूसीबी के प्रवेश के लिए नए लाइसेंस की जरूरत है। मराठे ने कहा, ‘आप इस समय सभी तरह के बैंक खोलने की अनुमति दे रहे हैं। हमें देश में तमाम और छोटे बैंकों की जरूरत है।’ उन्होंने कहा, ‘मैंने रिजर्व बैंक से कहा कि आप अपने प्रवेश बिंदु और व्यवहार्यता मानकों पर फैसला करें। जो यह अनुभव करते हैं कि वे कर सकते हैं, वे आवेदन करें। आपको हमेशा जांच करनी होगी कि क्या वे उचित और सही हैं। संशोधित दिशानिर्देश में इसका समाधान नहीं किया गया है।’ बैंकिंग नियामक ने युनिवर्सल बैंकों व लघु वित्त बैंकों के लिए बैंक लाइसेंसिंग मानकों को खोला है। कोई भी अगर लाइसेंस के लिए आवेदन करना चाहता है तो वह ऐसा कर सकता है और उसे इसके लिए अलग विंडो का इंतजार नहीं करना होगा। मराठे ने कहा कि देश में तमाम बड़ी क्रेडिट सोसाइटीज हैं, जिनके पास 2,000 करोड़ रुपये से ज्यादा जमा है। इसमें से कुछ इकाइयों को नियामकीय दायरे के तहत लाए जाने की जरूरत है, जिससे जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा हो सके। उन्होंने कहा, ‘हमारे यहां तमाम बड़ी क्रेडिट कोऑपरेटिस सोसाइटी हैं, जिनमें 2,000 से 3,000 करोड़ रुपये से ज्यादा जमा है। इनमें से कुछ अपने को बैंक में बदलने को इच्छुक हैं। हमें इन क्रेडिट सोसाइटीज के जमाकर्ताओं को संरक्षण देने की भी जरूरत है। उन्हें उचित नियमन व निगरानी में लाए जाने की जरूरत है। सहकार भारती ने इस सिलसिले में विशेषज्ञ समिति से सिफारिश की थी।’ मराठे ने कहा कि बड़े यूसीबी के लिए ज्यादा पूंजी जरूरत का मानक बनाया जाना जरूरी था, क्योंकि इन कर्जदाताओं की जोखिम उठाने की क्षमता अच्छी रहे। बैंकिंग नियामक ने टियर-2 से टियर-4 वाले शहरों के लिए पूंजी पर्याप्तता अनुपात 12 प्रतिशत अनिवार्य कर दिया है। इस तरह के यूसीबी को ज्यादा पूंजी मानक पूरा करने के लिए 4 साल वक्त दिया गया है।
