गत सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकलुभावन राजनीति को लेकर एक नई बहस छेड़ दी। उन्होंने मुफ्त चीजों की पेशकश करके वोट जुटाने वाले राजनेताओं पर निशाना साधा और इसे ‘रेवड़ी’ बांटने जैसा बताते हुए कहा कि राजनीति में यह व्यवहार बंद होना चाहिए। हालांकि मोदी ने किसी का नाम नहीं लिया लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस टिप्पणी को अपने ऊपर लिया। उन्होंने उसी शाम प्रत्युत्तर देते हुए कहा कि उनका दिल्ली मॉडल वोट जुटाने के लिए मुफ्त पेशकश करने से दूर कमजोर आय वाले लोगों को नि:शुल्क शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पानी सुनिश्चित करके ‘देश की अर्थव्यवस्था की बुनियाद’ रखने की कोशिश कर रहा है। प्रधानमंत्री की टिप्पणी और दिल्ली के मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया ने एक बार फिर सबका ध्यान लोकलुभावनवाद के प्रतिस्पर्धी मॉडलों और उनके कथित प्रभाव की ओर आकृष्ट किया है। इसमें दो राय नहीं कि रणनीतिक लोकलुभावनवाद के एक नए मॉडल ने मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को निरंतर चुनावी सफलताएं दिलाने में मदद की है। मुफ्त साइकिल, लैपटॉप, मिक्सर ग्राइंडर, गाय, बकरी या स्वास्थ्य एवं शिक्षा के स्थान पर भाजपा की केंद्र सरकार ने निम्न और मध्य आयवर्ग वाले समूहों को अनिवार्य रूप से स्पर्श करने वाले बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित किया है। सन 2014 से ही उसने कम आय वर्ग के लोगों के लिए सफाई, घरेलू गैस, बैंकिंग, आवास, स्वास्थ्य बीमा और मातृत्व सुरक्षा पर ध्यान दिया है। अहम बात यह है कि इनमें से कोई भी चीज पूरी तरह मुफ्त नहीं है। जैसा कि घरेलू गैस योजना के लाभार्थियों को बाद में समझ में आया। हालांकि इन पर भारी सब्सिडी दी जाती है। सरकार को यह सुविधा मिलती है कि वह कुछ उत्पादन लागत वसूल कर सके और सतत आपूर्ति मॉडल की मदद से इन सेवाओं को जारी रख सकें। कुछ ही अर्थशास्त्री इस मॉडल में कमी निकालेंगे। हालांकि व्यवहार में इसकी सफलता पर सवाल उठाए जा सकते हैं। आजादी के बाद के सात दशकों में ऐसी मुफ्त वाली नीतियों की बदौलत बिजली और सरकारी बैंकिंग तंत्र में कई गड़बड़ियां सामने आईं । किसानों को मुफ्त बिजली और ऋण मेले आदि इसके उदाहरण हैं। दूसरी ओर केजरीवाल ने एक ऐसा मॉडल तैयार किया है जिसने चुनावी नतीजों में वैसी ही सफलता दिलाई है लेकिन यह मॉडल दिल्ली को उपलब्ध वित्तीय सुरक्षा पर आधारित है। दिल्ली का कर संग्रह अच्छा है और वह देश के सबसे अधिक प्रति व्यक्ति आय वाले राज्यों में शामिल है। इसके अलावा केवल तमिलनाडु में जयललिता ही ऐसा मुफ्त उपहारों पर आधारित प्रशासन कायम कर सकी थीं क्योंकि उनका राज्य भी आर्थिक दृष्टि से मजबूत और विनिर्माण का गढ़ था। दिल्ली के साथ एक और लाभ यह जुड़ा है कि उसे पुलिस बल का खर्च नहीं उठाना पड़ता क्योंकि वह केंद्र के अधीन है। इसके अलावा बिजली और जलापूर्ति से संबंधित क्रॉस सब्सिडी भी केजरीवाल को अपने लोकलुभावन कल्याण मॉडल को चलाने में मदद करती हैं। हालांकि आम आदमी पार्टी को अपने इस मॉडल को अन्य राज्यों में दोहराने में मुश्किल होगी। पंजाब में यह दिखायी भी पड़ रहा है क्योंकि वह देश के सर्वाधिक कर्जग्रस्त राज्यों में से एक है। यह कहा जा सकता है कि मोदी ने पुनर्वितरण का जो मॉडल अपनाया उसमें शिक्षा और स्वास्थ्य पर कम ध्यान दिया गया है लेकिन यह यकीनन लाभार्थियों खासकर महिलाओं और बच्चों के लिए उपयोगी साबित हुआ है। आने वाले दिनों में उनकी सरकार की परीक्षा यह है कि वह परिवहन ईंधन, खाद्य और उर्वरक सब्सिडी में निहित लोकलुभावनवाद को किस हद तक संभाल सकती है क्योंकि सरकारी व्यय का बड़ा हिस्सा इनमें जाता है और इनकी कीमतें लगातार बढ़नी हैं। ये सब्सिडी रेवड़ी नहीं हैं लेकिन चुनाव नतीजों पर उनका असर अवश्य होता है और यह बात बताती है कि सभी कल्याणकारी मॉडलों की अपनी सीमा है।
