डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट का रुख बना हुआ है। रुपया आज पहली बार 80 के पार पहुंच गया लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के हस्तक्षेप और निर्यातकों द्वारा डॉलर की बिकवाली से इसमें थोड़ा सुधार हुआ। सुबह के कारोबार में डॉलर के मुकाबले रुपया सर्वकालिक निचले स्तर 80.06 तक फिसल गया था। हालांकि कारोबार की समाप्ति पर यह 79.95 पर बंद हुआ। सोमवार को रुपया 79.98 पर बंद हुआ था। डॉलर की तुलना में रुपये में इस साल अब तक 7.01 फीसदी की गिरावट आई है। स्थानीय मुद्रा 80 रुपये प्रति डॉलर के मनोवैज्ञानिक स्तर के पार पहुंच गई थी लेकिन मुद्रा डीलरों का कहना है कि कई कारकों ने रुपये को सहारा दिया जिससे वह थोड़ा संभल गया। आरबीआई ने 80 के स्तर पर मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप किया, वहीं डॉलर सूचकांक के कमजोर होने, देसी शेयर बाजार के चढ़ने और निर्यातकों की ओर से बैंकों द्वारा डॉलर की बिकवाली करने से रुपये की गिरावट थामने में मदद मिली। अमेरिकी डॉलर सूचकांक इस महीने की शुरुआत में 20 साल के उच्च स्तर पर पहुंच गया था लेकिन फेडरल रिजर्व द्वारा इस महीने के अंत तक दरों में 100 आधार अंक के बजाय 75 आधार अंक की बढ़ोतरी के संकेत दिए जाने से पिछले कुछ दिनों से डॉलर सूचकांक में गिरावट आई है। डॉलर सूचकांक से अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले छह प्रमुख मुद्राओं को आंका जाता है। ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के मुताबिक दोपहर बाद कारोबार के दौरान 106.60 पर था जबकि शुक्रवार को यह 108.06 पर था। इस साल रुपये में जो 7 फीसदी की नरमी आई है, उनमें से ज्यादातर गिरावट बीते एक महीने में दर्ज की गई। कई डीलरों का कहना है कि हाल के समय में वैश्विक जिंसों के दाम घटने से रुपया मौजूदा स्तर से और नीचे नहीं आएगा। आईएफए ग्लोबल के मुख्य कार्याधिकारी अभिषेक गोयनका ने कहा, ‘काफी सारी नकारात्मक घटनाओं का रुपये पर असर दिख चुका है। हमें लगता है कि रुपया अब बुरे दौर के अंतिम चरण में है। जिंसों के दाम में गिरावट, आपूर्ति श्रृंखला में सुधार और तेल के दाम नियंत्रण में डॉलर सूचकांक जल्द ही नीचे आ सकता है।’गोयनका का कहना है कि 2022 की दूसरी छमाही से देश में विदेशी निवेश का प्रवाह लौट सकता है और डॉलर-रुपया का मौजूदा स्तर निर्यातकों को डॉलर की बिकवाली धीरे-धीरे करने के लिए प्रोत्साहित करेगा जिससे रुपये को मदद मिलेगी। एनएसडीएल के आंकड़ों के अनुसार विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने इस साल अब तक रिकॉर्ड 30 अरब डॉलर से ज्यादा की बिकवाली की है। विशेषज्ञों का कहना है कि चालू खाते के बढ़ते घाटे की चिंता के बावजूद विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में आरबीआई के हस्तक्षेप से भी रुपये में उतार-चढ़ाव को काबू में करने में मदद मिलेगी। बैंक ऑफ अमेरिका में इंडिया कंट्री ट्रेजरर जयेश मेहता ने कहा, ‘विदेशी मुद्रा भंडार और केंद्रीय बैंकों की सक्रियता की वजह से उभरते बाजारों की मुद्राएं पहले की तुलना में बेहतर स्थिति में हैं। इस लिहाज से हमें रुपये को लेकर चिंतित होने की जरूरत नहीं है।’ उन्होंने कहा, ‘अगर डॉलर में और मजबूती आती है तो निश्चित तौर पर रुपया सहित अन्य उभरते बाजारों की मुद्राओं पर इसका असर पड़ेगा। हालांकि विदेशी मुद्रा भंडार बेहतर होने से रुपये में तेज गिरावट की आशंका नहीं है।’ विश्लेषकों ने यह भी कहा कि डॉलर की तुलना में रुपये में नरमी आई है लेकिन यूरो, पाउंड और येन की तुलना में यह मजबूत हुआ है। ब्लूमबर्ग के आंकड़ों से पता चलता है कि 31 दिसंबर, 2021 को यूरो के मुकाबले रुपया 84.21 पर था, जो अब 81.87 पर आ गया है। ब्रिटिश पाउंड के मुकाबले रुपये में मजबूती काफी तगड़ी रही है। घरेलू मुद्रा 96.08 प्रति पाउंड रही, जो 31 दिसंबर, को 100.44 थी। कमजोर रुपया निर्यातकों, खास तौर पर भारतीय आईटी क्षेत्र के लिए सकारात्मक है, जबकि इसका दवा उद्योग पर असर मिलाजुला रहेगा। आईटी उद्योग के राजस्व में अमेरिका 50 फीसदी से अधिक योगदान देता है, इसलिए डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट से उनकी आमदनी बढ़ती है। विश्लेषकों का कहना है कि डॉलर के मुकाबले रुपये में 100 आधार अंक की गिरावट से परिचालन मार्जिन 30 आधार अंक बढ़ जाता है। इसके साथ ही पाउंड, यूरो और येन के मुकबले डॉलर में मजबूती का उद्योग का नकारात्मक असर पड़ता है क्योंकि इस उद्योग के लिए अमेरिका के बाद ब्रिटेन और यूरोप सबसे बड़े बाजार हैं। ऐसा भारतीय आईटी कंपनियों के जून तिमाही के नतीजों भी नजर आया। इतना ही नहीं, यात्रा, वीजा और वेतन खर्च भी बढ़ रहे हैं। दवा उद्योग को कमजोर रुपये से होने वाले लाभ बढ़ती इनपुट लागत से सपाट हो सकते हैं। उद्योग ऐक्टिव फार्मास्यूटिकल इन्ग्रेडिएंट (एपीआई) और अन्य कच्चे माल का आयात करता है। इसमें से ज्यादातर आयात चीन से होता है और उसका भुगतान डॉलर में होता है। इसके अलावा प्रमुख एपीआई की कीमतें 30 से 140 फीसदी तक बढ़ चुकी हैं, जबकि हाल के महीनों में मालभाड़ा और बिजली की लागत भी बढ़ी है। वाहन क्षेत्र में बजाज ऑटो जैसी परंपरागत वाहन विनिर्माता को फायदा मिलना चाहिए क्योंकि इस दिग्गज दोपहिया कंपनी की करीब आधी आमदनी निर्यात से होती है। हालांकि वास्तविक लाभ कंपनी के अपने विदेशी मुद्रा जोखिम की हेजिंग पर निर्भर करेगा। जर्मनी की लक्जरी कार विनिर्माता पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा क्योंकि रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर हुआ है, लेकिन यूरो के मुकाबले मजबूत हुआ है। कंपनी यूरोप से काफी बड़ी मात्रा में कलपुर्जों और कारों का आयात करती है। कपड़ा एवं रेडीमेड गारमेंट और रत्नाभूषण विनिर्माता रुपये में कमजोरी से उत्साहित हैं। जो लोग विदेश यात्रा या अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए अमेरिकी कॉलेजों में भेजने की योजना बना रहे हैं, उन्हें ज्यादा पैसा खर्च करने के लिए तैयार रहना होगा। (साथ में शैली सेठ मोहिले, सोहिनी दास, शिवानी शिंदे, अनीश फडणीस, बिंदिशा सारंग, विनय उमरजी, शाइन जैकब और संजय सिंह)
