केंद्र ने प्रायोजक बैंकों को उन क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) की पहचान करने के लिए कहा है, जिन्हें स्पष्ट मानदंडों के आधार पर एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध किया जा सकता है। इनमें ऐसे बैंक शामिल हैं जिनके पास 300 करोड़ रुपये से अधिक की कुल परिसंपत्ति हो और परिसंपत्तियों पर न्यूनतम 0.5 प्रतिशत का प्रतिफल हो। ऐसे ऋणदाताओं के आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) लाने की योजना को पुनर्जीवित करने के लिए कहा गया है। फिलहाल सभी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक गैर-सूचीबद्ध हैं और प्रायोजक बैंकों, जो क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में करीब 35 प्रतिशत हिस्सेदारी रखते हैं, को मर्चेंट बैंकरों की पहचान से लेकर आईपीओ के समापन तक सभी चरणों में इन क्षेत्रीय ऋणदाताओं की मदद करने के लिए कहा गया है। आरआरबी में केंद्र के पास 50 प्रतिशत स्वामित्व है, जबकि राज्य सरकारों के पास शेष 15 प्रतिशत हिस्सेदारी है। आरआरबी को आईपीओ लाने के लिए प्रेरित करने की इस कवायद को नकदी उपलब्ध कराने और बाजार से पूंजी जुटाने के लिए अवसर प्रदान करने के रूप में देखा जा रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा वर्ष 2019 में ऐसे बैंकों को अनवरत ऋण विकल्प जारी करने की अनुमति दिए जाने के बाद आरआरबी को उनकी विनियामकीय पूंजी आवश्यकता को पूरा करने के लिए अतिरिक्त स्रोत प्रदान करने की दिशा में यह कवायद अगला कदम है। केंद्र वर्ष ने 2019 में भी क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकिंग में अपनी समेकन कवायद के समापन के बाद आरआरबी का आईपीओ पेश विचार कर रहा था, जिसमें ऐसे ऋणदाताओं की संख्या वित्त वर्ष 21 में घटकर 43 रह गई, जो वर्ष 2005 में 196 थी। केंद्र आरआरबी को परिचालनगत रूप से व्यावहारिक बनाने के लिए उनके पुनर्गठन की कवायद भी कर रहा है। वित्त वर्ष 19 और वित्त वर्ष 20 में लगातार दो साल के नुकसान के बाद आरआरबी ने वित्त वर्ष 21 में 1,682 करोड़ रुपये का समेकित शुद्ध लाभ दर्ज किया था। वित्त वर्ष 21 के दौरान 43 आरआरबी में से 30 ने शुद्ध लाभ दर्ज किया। अलबत्ता 43 में से 17 आरआरबी ने 31 मार्च, 2021 तक 8,264 करोड़ रुपये का संचित घाटा उठाया। आईपीओ के लिए उम्मीदवारों का चयन करने की खातिर प्रायोजक बैंकों को ऐसे आरआरबी की पहचान करने के लिए कहा गया है, जिनके पास कम से कम 300 करोड़ रुपये की कुल परिसंपत्ति हो तथा पिछले तीन साल के दौरान न्यूनतम नौ प्रतिशत का पूंजी और जोखिम भारित परिसंपत्ति अनुपात (सीआरएआर) हो।
