रविवार को देश में कोविड-19 टीकाकरण ने दो अरब का आंकड़ा पार कर लिया। निश्चित रूप से यह खुशी का मौका है क्योंकि देश की आबादी के दो तिहाई से अधिक हिस्से को टीके की दोनों खुराक लग चुकी है। भारत जैसे संघीय ढांचे और सामाजिक और भौगोलिक जटिलताओं वाले विशाल आकार के देश के लिए यह कोई मामूली सफलता नहीं है। यह इसलिए भी मील का पत्थर है कि इसे आईटी आधारित बुनियाद तैयार करके सहजता से अंजाम दिया गया जबकि जनवरी 2021 में जब देश में टीकाकरण कार्यक्रम की शुरुआत हुई थी तब आपूर्ति नियोजन कमजोर था और पहुंच पर कृत्रिम प्रतिबंध लगाने पड़े थे। इसकी वजह से आर्थिक सुधार की प्रक्रिया में भी देरी हुई। बहरहाल सरकार ने अपनी शुरुआती गलतियों से बहुत जल्दी सबक लिए। शुरुआत में ऑर्डर में देरी तथा पड़ोसी देशों को टीके देने की प्रतिबद्धता के चलते टीका आपूर्ति में जो समस्या आई थी उसे दूर किया गया और राज्यों को यह अनुमति दी गई कि वे अपने टीकाकरण कार्यक्रम में ज्यादा महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएं। सबसे पहले, चिकित्सा समुदाय से काफी आलोचना होने के बाद टीके की पहली और दूसरी खुराक के बीच का अंतराल कम किया गया। इस वर्ष सरकार ने दूसरी और तीसरी (बूस्टर) खुराक के बीच के अंतर को भी नौ महीने से कम करके छह महीने कर दिया। सरकार के टीकाकरण केंद्रों में से दो तिहाई को ग्रामीण इलाकों में स्थापित किया गया जिससे ग्रामीण आबादी तक टीकों की बेहतर पहुंच सुनिश्चित हुई। 2020 के लॉकडाउन के कारण बड़ी तादाद में प्रवासी श्रमिकों के अपने गांव लौटने के कारण गांवों की आबादी बढ़ी हुई थी और उन्हें टीकाकरण की सख्त आवश्यकता थी। 12 से 17 वर्ष की आयु के बच्चों के टीकाकरण के लिए भी समुचित नेटवर्क तैयार किया गया। केंद्र सरकार ने इस माह के आरंभ में निर्णय लिया कि 18 से 59 वर्ष के सभी नागरिकों को सरकारी केंद्रों पर अगले 75 दिनों तक नि:शुल्क बूस्टर खुराक लगायी जाएगी। आजादी की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर लिया गया यह निर्णय बताता है कि टीकों की आपूर्ति में कोई बाधा नहीं है। बल्कि टीकों की कुछ तैयार खुराक को जल्दी खपाने का भी प्रश्न है क्योंकि अगर ऐसा नहीं किया गया तो उसके इस्तेमाल की तारीख बीत जाएगी।
हालांकि सत्ता के गलियारों में खुद को सराहने का भाव उचित है लेकिन इस बीच हमें इस हकीकत को नहीं भूलना चाहिए कि इस सफलता को स्थायी बनाने के लिए लगातार प्रयास करते रहने की आवश्यकता है। कोविड-19 से लड़ाई की जरूरत फिलहाल भले ही कमजोर पड़ी हो लेकिन लगातार बढ़ते मामले बताते हैं कि यह लड़ाई अभी समाप्त नहीं हुई है। यह सही है कि इस समय वायरस के जो प्रकार फैल रहे हैं वे 2020 और 2021 में लोगों की जान लेने वाले वायरस से काफी कमजोर हैं लेकिन महामारी के जानकारों का कहना है कि वायरस के कम असर की एक वजह यह भी है कि बड़े पैमाने पर लोगों ने टीकाकरण करा लिया है। दूसरे शब्दों में कहें तो इस बात पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है कि समूची आबादी को कम से कम एक बूस्टर खुराक लग जाए। पिछली गिनती के मुताबिक 92 प्रतिशत भारतीय तीसरी खुराक के लिए पात्र हैं और उन्हें अब तक यह टीका ले लेना चाहिए था। सरकार को आशा है कि 75 दिन की नि:शुल्क टीकाकरण की व्यवस्था में वह इस समस्या को हल कर लेगी। इसके अलावा चौथी खुराक पर भी विचार करने की आवश्यकता है। कम से कम बुजुर्गों और अग्रिम पंक्ति के कर्मचारियों को चौथी खुराक देने पर विचार होना चाहिए। इस समूह ने अपनी बूस्टर खुराक जनवरी में ले ली होगी और अब उनका प्रतिरक्षण कमजोर पड़ रहा होगा। इसके साथ ही आर्थिक गतिविधियां भी अब सामान्य हो रही हैं। ऐसे में यह बात अहम है कि केंद्र सरकार लोगों को प्रेरित करे कि वे सार्वजनिक जगहों पर मास्क लगाकर रहें। जैसा कि चीन के अनुभव ने दिखाया है, हम कोविड शून्य विश्व से अभी दूर हैं। ऐसे में सतर्कता ही सबसे बेहतर उपाय है।
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