वैश्विक मंदी के डर से घटेगी थोक महंगाई | इंदिवजल धस्माना / नई दिल्ली July 16, 2022 | | | | |
अमेरिका में खुदरा मूल्य पर आधारित महंगाई दर 20 साल के उच्च स्तर पर है, जिसे देखते हुए फेडरल रिजर्व द्वारा नीतिगत दरों में और बढ़ोतरी किए जाने की संभावना है। इसकी वजह से वैश्विक मंदी की आशंका और बढ़ेगी और भारत में थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर में कमी आने की संभावना है। वैश्विक वजहों का उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर पर असर पड़ने में थोड़ा वक्त लगेगा।
बहरहाल इसका कुछ असर भारत से पूंजी के सुरक्षित स्थानों पर जाने के कारण रुपये में होने वाली गिरावट और फेडरल रिजर्व द्वारा दरों में बढ़ोतरी से वहां ज्यादा राजस्व पूंजी आने की वजह से कम हो जाएगा। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले आज सुबह रुपये का कारोबार 79.80 पर हुआ, जबकि बुधवार को यह 79.64 पर बंद हुआ था।
क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डीके जोशी ने कहा कि जिंसों के वैश्विक दाम कम होने से थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित महंगाई दर में कमी आएगी और यह असर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित महंगाई दर की तुलना में ज्यादा रहेगा। उनके अनुमान के मुताबिक डब्ल्यूपीआई महंगाई पर वैश्विक कारणों का असर 60 प्रतिशत है, जबकि ऐतिहासिक रूप से इसका असर 30 प्रतिशत ही रहा है। उन्होंने कहा, ‘सीपीआई पर आधारित महंगाई दर पर वैश्विक असर बहुत कम होता है, इसलिए इसके कम होने में लंबा वक्त लगेगा।’
बहरहाल अगर अमेरिकी फेडरल रिजर्व आक्रामक रूप से सख्ती करता है तो इसका असर रुपये पर पड़ेगा, जिसे हाल में जिंसों के दाम में वैश्विक कमी का कुछ लाभ मिल रहा था। जोशी ने कहा, ‘असर इस पर भी निर्भर होगा कि रुपया कितना कमजोर होता है और कितने समय तक उस पर स्थिर रहता है। इसके पहले हुई तेज गिरावटों से हमें पता चलता है कि लंबे समय तक डॉलर के मुकाबले रुपया गोते लगाता रहा है और इसमें सुधार तब हुआ जब जोखिम कम हो गया।’ उन्होंने कहा कि अभी जो परिस्थितियां पैदा हो रही हैं, बहुत जटिल हैं और कई वजहों का इस पर असर पड़ रहा है।
इक्रा में मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि अमेरिका में महंगाई बढ़ने की वजह से आक्रामक रूप से मौद्रिक सख्ती की उम्मीद है और इससे मंदी का खतरा और बढ़ेगा और जिंसों की कीमतों में कमी आएगी। उन्होंने कहा, ‘भारत के संदर्भ में देखें तो इससे डब्ल्यूपीआई महंगाई दर तेजी से कम हो सकती है, जबकि खुदरा महंगाई दर पर धीरे धीरे असर होगा।’
एचडीएफसी बैंक ट्रेजरी में प्रधान अर्थशास्त्री साक्षी गुप्ता ने कहा कि महंगाई दर ज्यादा होने की वजह से अमेरिकी फेडरल रिजर्व नीतिगत दरों में 100 आधार अंक की बढ़ोतरी कर सकता है और इससे मंदी का डर बढ़ेगा।
क्वांटइको रिसर्च में प्रधान अर्थशास्त्री युविका सिंघल ने कहा कि ज्यादातर जिंसों के दाम में हाल के सप्ताहों में कमी आई है क्योंकि बाजार इस समय मंदी के जोखिम से डरा हुआ है और इसकी वजह से वैश्विक मांग कम हुई है।
हालांकि बैंक आफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि वैश्विक दाम कम होने से डब्ल्यूपीआई कम हो सकता है, क्योंकि धातुओं व रसायनों की कीमत घटेगी, लेकिन सीपीआई स्थानीय वजहों से संचालित होगा।
उन्होंने कहा, ‘अमेरिका में महंगाई दर हमारे यहां की महंगाई दर से अलग है। हमारे यहां उत्पादक ज्यादा इनपुट लागत ग्राहकों पर डाल रहे हैं। उत्पादन (आपूर्ति) की वजहों से खाद्य महंगाई पर असर पड़ा है। साथ ही आयातित तेल और प्रसंस्करित खाद्य की लागत बढ़ी है। सेवाएं और महंगी हुई हैं। इस तरह से हमारी महंगाई कई वजहों से संचालित है।’
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