भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने रुपये में अंतरराष्ट्रीय व्यापार के निपटान को मंजूरी देने का फैसला उस समय किया है, जब संयुक्त अरब अमीरात, इंडोनेशिया, श्रीलंका और म्यांमार जैसी कई एशियाई अर्थव्यवस्थाएं घरेलू मुद्राओं में ही कारोबार निपटान के लिए एक-दूसरे से बात कर रही हैं। केंद्रीय बैंक के सूत्रों ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि इन देशों के बीच चर्चा चल रही है और कल घोषित रिजर्व बैंक के उपाय उसी दिशा में पहला कदम हैं। सूत्र ने कहा, ‘कारोबारी लेनदेन का निपटान द्विपक्षीय मुद्रा में करना अगला कदम है। इसमें दोनों देश एक-दूसरे की मुद्रा स्वीकार करेंगे। चीन पहले ही रूस के साथ डॉलर के बिना कारोबार कर रहा है।’ आरबीआई ने निर्यात और आयात के बिल, भुगतान और निपटान रुपये में ही करने की अतिरिक्त व्यवस्था कल से शुरू की है। सूत्रों ने बताया डॉलर में लेनदेन पर निर्भरता घटाने का फैसला मुख्य रूप से रूस-यूक्रेन युद्धके कारण लिया गया है क्योंकि उसकी वजह से पश्चिमी देशों ने रूस पर व्यापक प्रतिबंध लगा दिए। फरवरी के अंत में यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद पश्चिमी ताकतों ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए और यूरोपीय संघ 2022 के अंत तक रूस से ज्यादातर तेल आयात बंद करने की योजना बना रहा है। रूस के कई बैंकों को सोसाइटी फॉर वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनैंशियल टेलीकम्युनिकेशंस (स्विफ्ट) से बाहर कर दिया गया है। यूक्रेन में युद्ध और पश्चिम की जवाबी कार्रवाई से यह प्रक्रिया बेशक तेज हुई है मगर व्यापार के लिए हर जगह चलने वाली मुद्रा के रूप में डॉलर का दबदबा कम होने के संकेत पहले से मिल रहे थे। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के पिछले महीने प्रकाशित ब्लॉग में बताया गया कि केंद्रीय बैंक अब अपने भंडार में पहले जितने डॉलर नहीं रख रहे। इस ब्लॉग में कहा गया है कि आधिकारिक विदेशी मुद्रा भंडार में मुद्राओं की हिस्सेदारी पर आईएमएफ के आंकड़ों के मुताबिक वैश्विक विदेशी मुद्रा भंडार में दो दशक से कम हो रहा डॉलर का हिस्सा पिछले साल की अंतिम तिमाही में 59 फीसदी से भी नीचे चला गया। विश्लेषकों ने कहा कि रिजर्व बैंक के इस कदम का मकसद शायद रूस के साथ सौदे आसान बनाना है, जिससे भारत बड़ी मात्रा में कच्चा तेल आयात करता है।
