प्लास्टिक पर प्रतिबंध कितने सफल | जमीनी हकीकत | | सुनीता नारायण / July 11, 2022 | | | | |
भारत में कुछ वस्तुओं पर प्रतिबंध 1 जुलाई से ही प्रभावी हो गया और इन वस्तुओं को केवल एक बार ही इस्तेमाल में लाने लायक प्लास्टिक के रूप में परिभाषित किया गया है। हालांकि कुछ उद्योगों ने इसकी समय-सीमा स्थगित करने का भारी दबाव बनाया था। तथ्यात्मक रूप से देखा जाए तो भले ही एक बार इस्तेमाल वाले प्लास्टिक पर लगाया गया प्रतिबंध बेहद सीमित है लेकिन प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण के खतरे को नियंत्रित करने की दिशा में यह एक महत्त्वपूर्ण कदम है। हमें इस समस्या के बारे में चेतावनी देने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि हम इसे हर दिन झेल रहे हैं।
हमारे शहर में ऐसी प्लास्टिक सामग्री भरी पड़ी है जो प्राकृतिक तरीके से नहीं सड़ती है और इससे पर्यावरण पर दबाव बढ़ने के साथ ही इसका क्षरण भी हो रहा है। आगे का रास्ता यह सुनिश्चित करना है कि हमारे रोजमर्रा के जीवन में व्यापक स्तर पर मौजूद प्लास्टिक वस्तुओं का नवीनीकरण कैसे हो या सुरक्षित तरीके से उनका निपटान कैसे हो। इसके लिए हमें तीन स्तरीय रणनीति बनाने की जरूरत है। सबसे पहले, तैयार प्लास्टिक और इस्तेमाल में लाए गए सभी प्लास्टिक को निपटान के लिए इकट्ठा किया जाना चाहिए। दूसरी बात यह है कि अपशिष्ट प्लास्टिक सामग्री का नवीनीकरण अवश्य होना चाहिए या फिर उन्हें जला दिया जाना चाहिए। इसकी पहुंच कचरा भराव क्षेत्र तक नहीं होनी चाहिए या इसकी वजह से हमारे जल क्षेत्र में कोई अवरुद्ध जैसी स्थिति नहीं बननी चाहिए। तीसरी बात यह है कि दोबारा इस्तेमाल के लायक चीजे बनाने या निपटान की प्रक्रिया इस तरह होनी चाहिए कि वह पर्यावरण के अनुकूल हो और इससे अधिक प्रदूषण न फैले या श्रमिकों के लिए स्वास्थ्य का खतरा पैदा न हो।
लेकिन सबसे अहम बात यह है कि प्लास्टिक की उन वस्तुओं को जिन्हें इकट्ठा करना या उनका पुनर्संस्करण करना मुश्किल है, उनका इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए। ऐसे में मौजूदा प्रतिबंध भले ही सीमित लगे लेकिन यह उपयुक्त कदम साबित होता है। इसका उद्देश्य रोजमर्रा के उपयोग वाली ऐसी वस्तुओं की पहचान करना है जिनका इस्तेमाल एक बार किया जाता है और फिर उन्हें कूड़े में फेंक दिया जाता है और इस तरह यह कूड़ा-करकट से जुड़ जाता है। यही कारण है कि प्रतिबंधित वस्तुओं की सूची में इयरबड, कटलरी, स्ट्रॉ और पॉलिथीन कैरी-बैग (दिसंबर 2022 तक 120 माइक्रोन से कम मोटाई के) शामिल हैं। कैरी-बैग पर प्रतिबंध कोई नई बात नहीं है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की नई रिपोर्ट के अनुसार, 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने पहले ही इन पर प्रतिबंध लगा दिया है। राज्यों का कहना है कि प्लास्टिक की मोटाई के आधार पर इन वस्तुओं का नियमन करना मुश्किल है। लेकिन हम जानते हैं कि इस तरह की निगरानी भी अपर्याप्त है। यही कारण है कि नए प्रतिबंध लागू करने से ही यह तय होगा कि प्लास्टिक कचरे के खिलाफ भारत का पूरा संघर्ष सफल होगा या विफल।
प्रतिबंधित वस्तुओं की मौजूदा सूची ज्यादा लंबी नहीं है। कोई भी यह तर्क दे सकता है कि अगर मकसद उन वस्तुओं से छुटकारा पाना है जिन्हें एकत्र करना मुश्किल है या फिर जिनका एक बार ही इस्तेमाल हो रहा है, तब इस सूची में कई स्तरों पर की जाने वाली पैकेजिंग भी शामिल होनी चाहिए थी। ऐसी पैकेजिंग का इस्तेमाल लगभग सभी एफएमसीजी वस्तुओं में किया जाता है जिनमें चिप्स से लेकर शैंपू और गुटका के पाउच तक शामिल हैं। बात जब प्लास्टिक प्रदूषण की आती है तब यही चीजें असली खतरा बन कर सामने आती हैं क्योंकि इन वस्तुओं को इकट्ठा करना लगभग असंभव है और इसका प्रसंस्करण करना तो बिलकुल ही असंभव है। इस पैकेजिंग सामग्री के साथ केवल एक ही चीज की जा सकती है और वह है इसे जलाने के लिए सीमेंट संयंत्रों में भेजना। यही कारण है कि सीपीसीबी द्वारा किए गए ज्यादातर अध्ययन में कचरा जमाव वाली जगहों पर एक बार इस्तेमाल किए जाने वाले प्लास्टिक ही नजर आते हैं। सरकार का कहना है कि सभी पैकेजिंग सामग्री को विस्तारित उत्पादक दायित्व (ईपीआर) अधिसूचना के रूप में शामिल किया गया है। इसके तहत इन सामग्री को बनाने वाली या इस्तेमाल करने वाली कंपनियों को इन्हें वापस लेना या दोबारा प्रसंस्करण के लिए भेजना जरूरी है। यहां तक कि कंपनी के आधार पर वार्षिक लक्ष्य भी निर्धारित किए गए हैं कि उन्हें ऐसी कितनी सामग्री संग्रह करनी है।
यह सब कागजी कार्रवाई के स्तर पर अच्छा लगता है, लेकिन ईपीआर को जिस तरह डिजाइन किया गया है या इसे जिस तरह लागू किया जा रहा है उसमें बड़ी समस्याएं हैं। उदाहरण के तौर पर प्लास्टिक सामग्री की मात्रा या कंपनी द्वारा पैदा किए गए अपशिष्ट पदार्थ के बारे में कोई जानकारी नहीं है। यह न केवल स्व-घोषणा पर आधारित है बल्कि इसकी सटीकता का आकलन करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में कुछ भी उपलब्ध नहीं है। इसका मतलब यह है कि प्रत्येक कंपनी के लिए जो लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं उनका कोई अर्थ नहीं है। ऐसा कोई पैमाना नहीं है जिस लिहाज से इसे पर्याप्त कहा जा सके। इससे भी बुरी बात यह है कि ईपीआर के तहत, कंपनियों को केवल 2024 तक एकत्र की जाने वाली सामग्री का दोबारा प्रसंस्करण या नवीनीकरण करना है। अब ऐसे में सवाल यह है कि एकत्र किए जा रहे प्लास्टिक कचरे का क्या किया जा रहा है, इसे संग्रहित किया जा रहा है या कचरे में डाला जा रहा है?
मैंने इसे चलन में उस वक्त देखा जब मैंने एक अधिकृत निर्माता उत्तरदायित्व संगठन (पीआरओ) का दौरा किया। यह एक ऐसी एजेंसी है जिसके जरिये कंपनियों ने ईपीआर लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अपनी ओर से कचरा एकत्र करने का ठेका दिया है। इस पीआरओ को नगर निकायों से कचरा मिल रहा था। इस कचरे को बड़ी कन्वेयर बेल्ट में डाला जाता है जहां इसके कर्मचारी अलग-अलग तरह की वस्तुओं के आधार पर विभिन्न बंडल तैयार करते थे जिनमें एल्युमीनियम टिन से लेकर विभिन्न तरह के पाउच तक शामिल है।
समस्या यह थी कि अलग-अलग बंडल में छांटी गई इन सामग्री के साथ क्या किया जाए। पीआरओ उन वस्तुओं को बेचेगा जिसकी कोई कीमत लग सकती है लेकिन जिन वस्तुओं का नवीनीकरण नहीं किया जा सकता था उन्हें बस एक गोदाम में संग्रहित किया गया। मैंने बड़े करीने से क्रमबद्ध किए गए और बंडल बनाए गए पैकेज और पाउच के बड़े संग्रह भी देखे। पीआरओ ने कहा कि उसके पास जगह की कमी होने लगी और ऐसे में एकमात्र विकल्प यही था कि इन सामग्री को जलाने के लिए सीमेंट कंपनियों में भेजा जाए लेकिन परिवहन लागत पर मनाही थी। ऐसे में स्थिति पहले जैसी ही हो गई। इस बार, अपशिष्ट पदार्थ को कूड़े में नहीं डाला गया बल्कि उसकी पैकिंग की गई ताकि उस कचरे का निपटान खाली जमीन में डाल कर किया जाए।यही कारण है कि सबसे विवादास्पद मुद्दा यह है कि आखिर नवीनीकरण से हमारा क्या तात्पर्य है। हम इस भरोसे पर अपनी ग्लानि कम करना चाहते हैं कि हम जो कचरा फेंकते हैं उसे दोबारा संसाधित किया जाता है।
लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि ऐसा नहीं हो रहा है या अगर ऐसा हो भी रहा है तो वह इसलिए कि असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लाखों गरीब लोग इन फेंकी हुई चीजों को भी मूल्यवान बनाने की कोशिश करते हैं। दरअसल वे ही इन अपशिष्ट वस्तुओं का इस्तेमाल करने वाले लोग हैं। अब वक्त आ गया है कि हम यह समझें कि हम अपने कचरे के लिए खुद ही जिम्मेदार हैं और आज प्रतिबंधित वस्तुओं का इस्तेमाल न करें और कल से उन वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाने के लिए अन्य वस्तुओं की मांग करनी होगी हमें उनके बिना रहना चाहिए और हम रह भी सकते हैं।
(लेखिका सेंटर फॉर साइंस ऐंड एन्वायरनमेंट से संबद्ध हैं)
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