खाद्यान्न के ऊंचे दाम किसानों के लिए वरदान | राजेश भयानी और वीरेंद्र रावत / मुंबई/लखनऊ July 10, 2022 | | | | |
देश के उत्तरी हिस्से में मॉनसून की बारिश हो रही है, इसलिए उत्तर प्रदेश के बहरौली में रहने वाले जसकरण यादव धान बुआई की तैयारी कर रहे हैं। इधर खाद्यान्न के भाव भी बढ़ रहे हैं, जिससे यादव जैसे किसानों को लंबे समय बाद सुनहरे भविष्य की उम्मीद बंधी है। यादव ने कहा, ‘बाजार में अच्छी मांग के कारण चालू रबी विपणन सीजन अच्छा रहा है, जिसमें हमें सरकारी खरीद केंद्रों पर अपनी उपज के अच्छे दाम मिले हैं।’ यादव का परिवार दूध का कारोबार भी करता है। वह पुरखों से मिली पांच एकड़ जमीन पर चावल, गेहूं, पुदीना और आलू की खेती करते हैं।
पिछले कुछ महीनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की मांग तेजी से बढ़ने और देसी कारोबारियों द्वारा फसल जल्द खरीदे जाने से इसकी कीमतें चढ़ी हैं। इससे गेहूं उत्पादक किसानों की आमदनी भी बढ़ी है। सरकार ने खाद्य कीमतों में कमी लाने के लिए मई में बहुत से कदम उठाए। इसके बावजूद यादव जैसे किसानों पर कोई असर नहीं पड़ा है। कीमत नियंत्रण के बाद भी उनकी औसत आय पिछले कुछ सीजन में
सुधरी है और पिछले सालों से बेहतर हुई है।
चावल और गेहूं जैसे खाद्यान्न उगाने वाले किसान भी सुरक्षित हैं क्योंकि कीमतों में बढ़ोतरी के समय भारी मुनाफा कमाने वाले बिचौलियों को अब घाटा उठाना पड़ रहा है। इस साल मई में खाद्य महंगाई 17 साल के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंचने से चिंतित केंद्र सरकार ने गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी और 20 लाख टन सूरजमुखी और सोयाबीन के तेल का आयात बिना किसी शुल्क के करने की मंजूरी दे दी। सरकार ने चालू सीजन के लिए चीनी निर्यात की सीमा भी 1 करोड़ टन तय कर दी है। अब खाद्य तेल के दाम भी घटने लगे हैं। जून में प्रमुख खाद्य जिंसों के दाम 5 से 10 फीसदी गिरे हैं। हालांकि खाद्य जिंसों के दाम अब भी पिछले साल के मुकाबले अधिक हैं। उदाहरण के लिए गेहूं और चावल के दाम पिछले साल दिसंबर के मुकाबले 4 फीसदी अधिक हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इन खाद्य उत्पादों का खाद्य मुद्रास्फीति सूचकांक में भारांश काफी अधिक है, इसलिए उनकी कीमतों में गिरावट का मतलब है कि खाद्य महंगाई में भी कमी आएगी। खुशकिस्मती से दाम सीजन निकलने के बाद घटने शुरू हुए हैं, जिससे किसानों की ज्यादातर आमदनी पर कोई असर नहीं पड़ा है।
खाद्य नीति के विशेषज्ञ और किसानों के संगठन किसान जागृति मंच के अध्यक्ष सुधीर पंवार ने कहा कि सरकार ने रूस-यूक्रेन युद्धके कारण गेहूं और चीनी की वैश्विक कीमतों में अचानक बढ़ोतरी से देसी कारोबारियों और किसानों को भारी फायदा मिलने का अनुमान जताया था। पंवार ने कहा, ‘जब कीमतें बढ़ रही थीं, तब किसानों को कम से कम पूरा न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल गया। उनके पास एमएसपी के अलावा खुले बाजार में ऊंची कीमतों पर बेचने का विकल्प भी था। प्रतिकूल मौसम के कारण गेहूं का घरेलू उत्पादन प्रभावित होने से इस जिंस के लिए समीकरण बदल गया मगर इन जिंसों की ऊंची कीमतों ने महंगाई का दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है।’ तकनीकी-विधि कृषि विशेषज्ञ विजय सरदाना ने कहा, ‘उपभोक्ता महंगाई या उपभोक्ताओं द्वारा खाद्य उत्पादों के लिए चुकाई जाने वाली कीमतें कभी किसानों को नहीं मिलीं। ज्यादातर लाभ बिचौलिये हड़प लेते हैं।’
सरदाना ने कहा कि बढ़ती कीमतों का किसानों को ज्यादा से ज्यादा लाभ मिले, यह सुनिश्चित करने के लिए सरकार को उपभोक्ताओं के लिए मंडी कर हटाकर और संगठनों तथा आवासीय कॉलोनियों को सीधे किसानों से खाद्यान्न एवं दाल खरीद की मंजूरी देकर नीतिगत पहल करनी चाहिए।
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