भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153ए (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास स्थान, भाषा के आधार पर दो अलग समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना) के अंतर्गत दर्ज होने वाले मामलों की संख्या साल 2014 से 2020 के बीच छह गुना हो गई है यानी इनमें 500 फीसदी बढ़ोतरी हो गई है। यह जानकारी भारतीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों से मिली है। पिछले सात साल में इस तरह के सबसे कम मामले 2014 में आए थे, जब केवल 323 मामले दर्ज हुए। 2020 में ऐसे सबसे अधिक 1,804 मामले दर्ज किए गए। उस साल इस धारा के तहत सबसे अधिक 303 मामले तमिलनाडु में दर्ज किए गए। इसके बाद उत्तर प्रदेश में 243, तेलंगाना में 151, असम में 147 और आंध्र प्रदेश में 142 मामले दर्ज हुए। इसी तरह धारा 153बी (देश की अखंडता को नुकसान पहुंचाने वाले अभियोग, बयान) के अंतर्गत मामलों की संख्या भी 2014 से 2020 के बीच छह गुना हो गई। 2014 में ऐसे 13 मामले दर्ज हुए थे और 2020 में 82 मामले आए। नफरत फैलाने वाले बयानों की परिभाषा किसी भी भारतीय कानून में नहीं दी गई है और यह मामला देश भर में बहस का मुद्दा बना हुआ है। भारतीय विधि आयोग ने भी मार्च 2017 की अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि नफरत फैलाने वाले बयान रोकने के लिए आईपीसी में नए प्रावधान शामिल करने की जरूरत है। नफरती बयानों को रोकने के प्रावधान बेशक नहीं हों मगर आईपीसी में ऐसी कुछ धाराएं हैं, जिनमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करते हुए कुछ खास तरीके के बयानों पर रोक लगाई जाती है। बहरहाल 2016 से 2020 के बीच आईपीसी की धारा 153 के तहत केवल 20 फीसदी मामलों में सजा दी गई। 2016 में केवल 15.5 फीसदी मामलों में सजा मिली और 2020 में 20.4 फीसदी मामलों में सजा दी गई।
