व्यवस्था में कर्ज का वितरण बढ़ रहा है, जबकि जमा में वृद्धि की रफ्तार तुलनात्मक रूप से सुस्त है। इसकी वजह से कर्ज और जमा का अनुपात 3 साल के शीर्ष स्तर पर है। ऐसे में इस बात को लेकर चिंता है कि जमा में वृद्धि की सुस्त रफ्तार कर्ज में वृद्धि की राह में बड़ी बाधा बन सकती है। हाल के भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़ों के मुताबिक व्यवस्था में ऋण वृद्धि 17 जून को समाप्त पखवाड़े में 13.2 प्रतिशत रही है, जबकि जमा में वृद्धि 8.3 प्रतिशत रही है। इसकी वजह से 490 आधार अंक का अंतर आ गया। मैक्वैरी रिसर्च के सुरेश गणपति और परम सुब्रमण्यन ने कहा, ‘हमारी सबसे बड़ी चिंता यह है कि जमा में वृद्धि और ऋण में वृद्धि का अनुपात 3 साल के उच्च स्तर पर है। हमारा मानना है कि ऋण की वृद्धि की राह में जमा में वृद्धि सबसे बड़ा व्यवधान होगा।’ पिछले कुछ महीनों से कर्ज लेने की रफ्तार तेज रही है। इसकी कई वजहें हैं, जिनमें कंपनियों द्वारा कार्यशील पूंजी सीमा का बेहतरीन इस्तेमाल, आवास ऋण में तेज वृद्धि और खपत ऋण में वृद्धि शामिल है। साथ ही कॉर्पोरेट अपनी परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए बैंक का सहारा ले रहे है, क्योंकि टर्म पेपर में दरें बढ़ी हैं। हाल के कर्ज के आंकड़ों के मुताबिक अगर क्षेत्रवार ऋण वृद्धि देखें तो खुदरा क्षेत्र में 16.4 प्रतिशत, सेवा क्षेत्र में 12.9 प्रतिशत, कृषि क्षेत्र में 11.8 प्रतिशत और उद्योग क्षेत्र में 8.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। इक्रा में फाइनैंशियल सेक्टर रेटिंग्स में वीपी अनिल गुप्ता ने कहा, ‘जमा में जहां 8.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, शुद्ध नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर), वैधानिक तरलता अनुपात (एसएलआर), बैंकों के बढ़े जमा से उधारी योग्य जमा कम है। कर्ज और जमा में वृद्धि का अंतर संकेत देता है कि व्यवस्था में अतिरिक्त नकदी घट रही है और हम आने वाले दिनों में नकदी की कमी की स्थिति पा सकते हैं।’ बैंकिंग व्यवस्था में अतिरिक्त नकदी उल्लेखनीय रूप से कम हुई है और यह अप्रैल के 4.57 लाख करोड़ रुपये से घटकर जुलाई की शुरुआत में 3.5 लाख करोड़ रुपये हो गया है। इंडिया रेटिंग्स में डायरेक्टर और हेड (फाइनैंशियल इंस्टीट्यूशंस) प्रकाश अग्रवाल ने कहा, ‘व्यवस्था में नकदी कम हुई है। हम बैंकों की देयता के मामले में दबाव देख सकते हैं।’
