पूंजीगत व्यय आवश्यक | संपादकीय / July 03, 2022 | | | | |
इस समय देश के नीति निर्माताओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि अर्थव्यवस्था को सतत उच्च वृद्धि के मार्ग पर कैसे ले जाया जाए। यह सही है कि उत्पादन का स्तर महामारी के पहले के स्तर को पार कर चुका है लेकिन बीते दो वर्षों में कोविड महामारी ने जो दिक्कतें पैदा कीं, वे आर्थिक मोर्चे पर आने वाले कुछ समय तक मुश्किल पैदा करती रहेंगी। इसके अतिरिक्त धीमी वैश्विक वृद्धि और उच्च मुद्रास्फीति भी आर्थिक सुधार को प्रभावित करेंगी। चूंकि महामारी के कारण लगे प्रतिबंधों ने उत्पादन को प्रभावित किया इसलिए भारत समेत दुनिया भर की सरकारों ने खर्च बढ़ाया। परिसंपत्ति निर्माण पर उच्च सरकारी व्यय से ऐसे समय पर मदद मिली है जब निजी क्षेत्र की मांग कमजोर है। सरकार का इरादा है कि वृद्धि को मजबूत करने के लिए यह प्रक्रिया जारी रखी जाए। गत सप्ताह इस समाचार पत्र को दिए एक साक्षात्कार में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बात को रेखांकित किया और कहा, ‘हमने जो रास्ता चुना है और हम जिस पर टिके हुए हैं वह है पूंजीगत व्यय।’ चालू वित्त वर्ष में केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय आवंटन 7.5 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। पूंजीगत आवंटन में से राज्यों को एक लाख करोड़ रुपये तक का ऋण का ब्याज रहित ऋण दीर्घावधि के लिए दिया जाएगा। जैसा कि वित्त मंत्री ने उल्लेख किया कई राज्य अपनी योजनाओं के साथ तैयार हैं और यह पूरी राशि जुलाई-सितंबर तिमाही में उनको दी जा सकती है।
सरकार ने परियोजनाओं की निगरानी बढ़ाकर भी अच्छा किया है। पूंजीगत व्यय बढ़ाने के लिए सरकार की सराहना की जानी चाहिए। कई वर्ष बाद यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 2 प्रतिशत से अधिक हो जाएगा। अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में ही यह बढ़कर जीडीपी का 2.9 प्रतिशत हो जाएगा। यह यकीनन उत्साह बढ़ाने वाला रुझान है लेकिन दो सवाल अभी भी बाकी हैं। पहला, क्या अर्थव्यवस्था को तेज वृद्धि के मार्ग पर ले जाने के लिए इतना काफी होगा? पूंजीगत व्यय पर सुविचारित जोर के बावजूद चालू वर्ष की दूसरी छमाही में वृद्धि 4 फीसदी के नीचे आ सकती है।
दूसरा, राजकोषीय घाटे और सरकारी कर्ज के स्तर को देखते हुए क्या यह संभव होगा कि सरकार मध्यम अवधि में पूंजीगत व्यय का यह स्तर बरकरार रख सके? आम सरकारी व्यय 2020-21 में जीडीपी का 90 प्रतिशत तक पहुंच गया और अनुमानों के अनुसार मध्यम अवधि में भी यह ऊंचा बना रहेगा। ऐसे में सरकार को आने वाले वर्षों में राजकोषीय घाटे को काफी कम करना होगा। इसका असर पूंजीगत व्यय पर भी पड़ सकता है। चालू वर्ष में भी सरकार को उच्च राजस्व संग्रह का विश्वास है, जो मुद्रास्फीति के स्तर और कर संग्रह में प्रगति के हिसाब से ठीक ही लग रहा है, लेकिन बजट में किए गये उल्लेख से अधिक खर्च करना होगा।
इस संदर्भ में यह ध्यान देने वाली बात है कि सरकार ने गत सप्ताह पेट्रोल, डीजल और विमानन ईंधन पर निर्यात शुल्क लगा दिया। उसने स्थानीय रूप से उत्पादित कच्चे माल पर भी कर लगाया। इन नये करों को सरकार का राजस्व सुधारने के लिए लगाया गया है जो कच्चे तेल की ऊंची कीमतों के कारण प्रभावित हुआ है। इनका बोझ उपभोक्ताओं पर नहीं डाला जा रहा है। बहरहाल, नीतियों में अचानक बदलाव और नये करों को लगाना कारोबारों के लिए सही नहीं है। इसका असर निवेश पर पड़ सकता है और यह देश की ऊर्जा सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है क्योंकि निवेशक ऊर्जा कारोबार से दूरी बना लेंगे। चूंकि सरकार मांग बढ़ाने के लिए पूंजीगत व्यय पर जोर दे रही है और जिसका लाभ निजी निवेश के रूप में सामने आने की आशा है, ऐसे में यह अहम है कि वह कारोबारी माहौल में अनिश्चितता पैदा करने से बचे। सतत उच्च आर्थिक वृद्धि के लिए यह आवश्यक है कि सार्वजनिक वित्त और नीतियां सहयोगी भूमिका में रहें।
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