भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के सदस्य जयंत आर वर्मा का कहना है कि इसे लेकर चर्चा शुरू होनी चाहिए कि क्या केंद्रीय बैंक के कदमों को लेकर बाजार में किस तरह का स्पष्ट संकेत दिखता है। मनोजित साहा के साथ साक्षात्कार में वर्मा ने कहा कि मुद्रास्फीति को कम करने के लिए मामूली दर वृद्धि पर्याप्त नहीं है। पेश हैं उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश:आपने कहा कि आरबीआई को अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। रीपो दर मई से 90 आधार अंक तक बढ़ चुकी है 2022 के अंत तक इसमें और कितनी वृद्धि हो सकती है? मैंने कहा था कि मुद्रास्फीति की रफ्तार रीपो दर के मुकाबले तेजी से बढ़ी है। जब तक आप इस पर ध्यान नहीं देते कि पूरे वित्त वर्ष के लिए वास्तविक मुद्रास्फीति 100 आधार अंक बढ़ी है तो 90 आधार अंक की वृद्धि आपको ज्यादा लगेगी। मुद्रास्फीति या तो स्वयं नीचे आएगी या हमें दर बढ़ानी होगी, या इन यह दोनों का समावेश होगा। फिलहाल, वास्तविक नीतिगत दर नकारात्मक है, न सिर्फ अप्रैल, मई के आंकड़ों के आधार पर बल्कि, वित्त वर्ष 2023 के अनुमानित आंकड़ों के आधार पर भी। मैं नहीं मानता कि आज के हालात नकारात्मक वास्तविक दरों के लायक हैं।आपको कब तक वास्तविक दर सकारात्मक होने की संभावना दिख रही है? मुझे नहीं पता... क्योंकि ज्यादातर महंगाई यूक्रेन संकट की वजह से बढ़ी है, जो वैश्विक घटनाक्रम है। यदि वैश्विक परिवेश स्थिर होता है, कच्चे तेल की कीमतें नीचे आती हैं, अच्छे मॉनसून से खाद्य कीमतों में नरमी को बढ़ावा मिलता है तो इन सबकी वजह से मुद्रास्फीति में नरमी आ सकती है। मौजूदा हालात में कितनी वृद्धि सहन करने योग्य है? मेरा मानना है कि हालात 2020 या 2021 के शुरू से काफी अलग हैं। उस समय एमपीसी ने मुद्रास्फीति के मुकाबले रिकवरी पर ज्यादा ध्यान केंद्रित किया था। लेकिन इस बार हालात अलग हैं। आर्थिक सुधार काफी मजबूत है। हम ऐसे मोड़ पर हैं जिसमें मुद्रास्फीति स्वयं रिकवरी की राह में खतरा बन गई है। चूंकि वास्तविक आय घट गई है, इसलिए लोग उत्पाद नहीं खरीद रहे हैं। मुद्रास्फीति से मांग घट रही है। जब मैं इन कारकों को देखता हूं, तो मानता हूं कि एमपीसी ने अपनी प्राथमिकताओं में सही तरीके से बदलाव किया है। मुद्रास्फीति सहन करने योग्य दायरे में है।क्या इसका यह मतलब है कि आपका विचार अब पूर्व के मुकाबले एमपीसी के शेष सदस्यों के साथ अधिक अनुरूप है? हां, यह सही है। मैं इस संदर्भ में बड़ा अंतर देख रहा हूं कि किस तरह से महामारी ने आकार बदला था। 2021 के मध्य में मैंने महसूस करना शुरू किया कि महामारी आर्थिक संदर्भ में समाप्त हो गई। 2021 के मध्य तक अर्थव्यवस्था को हो रहा नुकसान घट रहा था। इसलिए मैं अर्थव्यवस्था को लेकर अधिक आशान्वित बन गया। कई महीनों तक एमपीसी के शेष सदस्य महामारी को लेकर चिंतित थे, जब मैंने आर्थिक नजरिये से सोचना बंद कर दिया था। मैं एक साल पहले महामारी को लेकर इस पर जोर दिया था कि यह एक स्वास्थ्य समस्या थी न कि मौद्रिक नीति संबंधित मुद्दा। यह असहमति का सबसे बड़ा स्रोत था।
