उलझा रहे मुनाफाखोरी के आरोप | निकुंज ओहरी / नई दिल्ली July 01, 2022 | | | | |
राष्ट्रीय मुनाफाखोरी रोधी प्राधिकरण (एनएए) एक रियल एस्सेट कंपनी के खिलाफ मामले की सुनवाई कर रहा है। कंपनी पर आरोप है कि उसने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) का लाभ मकान के खरीदारों को नहीं पहुंचाया।
इसके लिए जांच करने वाली संस्था मुनाफाखोरी रोधी महानिदेशालय (डीजीएपी) की तरफ से 500 से ज्यादा मकान खरीदारों को ई-मेल भेजा गया। उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें कीमत घटाकर आईटीसी का लाभ दिया गया और क्या कीमत में कमी के बारे में उन्हें सूचना दी गई। इसके जवाब में 50 से ज्यादा प्रतिक्रियाएं मिलीं। इनमें से 40 ने कहा कि उन्हें जीएसटी दर कम किए जाने का लाभ मिला है, जबकि 10 के जवाब नकारात्मक थे।
डीजीएपी ने निष्कर्ष निकाला कि रियल एस्टेट फर्म ने मुनाफा लिया है। डीजीएपी ने आईटीसी की तुलना जीएसी लागू होने के पहले और मौजूदा स्थिति से की। जीएसटी लागू होने के बाद से बिल्डरों की आईटीसी की पात्रता का लाभ ग्राहकों को निर्माण की स्थिति, धन प्राप्ति व अन्य कारोबारी वजहों पर विचार किए बगैर दिया गया।
केंद्रीय जीएसटी अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक अगर जीएसटी दरों में कमी की जाती है या आईटीसी लाभ मिलता है तो इसका फायदा ग्राहकों को दिया जाना चाहिए। एएमआरजी ऐंड एसोसिएट्स के पार्टनर रजत मोहन ने कहा कि पिछले 5 साल के दौरान कानून निर्माताओं या नियमावली बनाने वालों ने इसके लिए कोई नियम कानून तय नहीं किया कि किस तरीके से मुनाफाखोरी की गणना की जाए और इन प्रावधानों को लागू करने का तरीका क्या होगा।
केपीएमजी में पार्टनर अभिषेक जैन ने कहा कि जीएसटी कानून में मुनाफाखोरी रोधी का प्रावधान है, लेकिन इसके लागू होने के दिशा-निर्देश गायब हैं, जो कंपनियों के लिए चिंता का विषय है।
इस सिलसिले में एनएए से पूछे गए सवाल का उचित जवाब नहीं मिला।
जैन ने कहा कि भारतीय कंपनियों ने मुनाफाखोरी रोधी प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है और कहा है कि किसी उत्पाद की कीमत का निर्धारण जीएसटी प्रावधानों से स्वतंत्र है।
जैन ने कहा कि बहुत ज्यादा बिकने वाले तमाम उत्पादों में कंपनियां ज्यादा मुनाफा कमाती हैं और कभी कभी इसका समायोजन कम मुनाफा वाले उत्पादों में कर देती हैं, जिनकी बिक्री कम होती है और यह कारोबार की सामान्य गतिविधि है। वस्तुएं ही नहीं, सेवाओं का शुल्क भी अलग अलग होता है, जो मांग पर निर्भर होता है। जैन ने कहा कि मुनाफारोधी प्रावधानों में कोई व्यवस्था नहीं दी गई है कि ग्राहकों को लाभ शुरुआती स्तर पर, उत्पाद के स्तर पर या स्टॉक रखने वाली इकाई (एसकेयू) के स्तर पर पहुंचाया जाएगा, यह समस्या है।
इसकी वजह से उच्च न्यायालयों में प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले मामलों की बाढ़ आ गई है, जिनमें रियल एस्टेट फर्में भी शामिल हैं। तमाम कंपनियां, खासकर रोजमर्रा के इस्तेमाल के सामान बनाने वाले क्षेत्रों के अलावा अन्य ने दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया है और मुनाफाखोरी रोधी प्रावधानों को चुनौती दी है। अन्य उच्च न्यायालयों में भी तमाम याचिकाएं लंबित हैं। मिल रही जानकारी के मुताबिक एनएए ने इस प्रावधान के बचाव के लिए सॉलिसिटर जनरल से भी संपर्क साधा है।
लंबित मामलों को निपटाने के लिए भारतीय मुनाफाखोरी रोधी एजेंसी हरकत में आ गई है।
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