देश में अस्थायी या स्वतंत्र रूप से काम करने वाले कामगारों, अंशकालिक कामगारों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के लिए ठेके पर काम करने वाले कामगारों (गिग वर्कफोर्स) की संख्या वर्ष 2029-30 तक बढ़कर 2.35 करोड़ तक हो सकती है। नीति आयोग की रिपोर्ट में यह अनुमान लगाते हुए कहा गया है कि ऐसे कामगारों की 77 लाख की मौजूदा संख्या देखते हुए यह लगभग 200 प्रतिशत इजाफा होगा। आज जारी ‘इंडियाज बूमिंग गिग ऐंड प्लेटफॉर्म इकॉनमी’ रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि वित्त वर्ष 2030 तक देश की कुल आजीविका में गिग वर्करों की हिस्सेदारी 4.1 प्रतिशत हो सकती है जो फिलहाल 1.5 प्रतिशत है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से काम या अस्थायी काम का दायरा बढ़ रहा है, लेकिन मध्यम स्तर के कौशल वाली नौकरियों में इस तरह के काम की हिस्सेदारी 47 फीसदी है और अधिक कौशल वाली नौकरियों में भी ऐसे कामगारों की मांग करीब 22 फीसदी है। कम कौशल वाली नौकरियों में ऐसे करीब 31 फीसदी लोगों की मांग है। गिग वर्कर आमतौर पर नियोक्ता और कर्मचारी की पारंपरिक व्यवस्था से बाहर रहकर कमाई करते हैं और उन्हें मोटे तौर पर ऑनलाइन प्लेटफॉर्म या बिना प्लेटफॉर्म के श्रमिकों की जमात में रखा जा सकता है। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म वाले कामगार आमतौर पर किसी ऑनलाइन सॉफ्टवेयर ऐप या डिजिटल प्लेटफॉर्म जैसे खानपान पहुंचाने वाले या कैब सेवाएं देने वाले एग्रीगेटर मंच जोमैटो, स्विगी, ओला आदि के लिए सेवाएं देते हैं। बिना प्लेटफॉर्म वाले गिग वर्कर आम तौर पर पारंपरिक क्षेत्रों में अस्थायी मजदूरी पाने वाले श्रमिक और स्वतंत्र रूप से काम करने वाले श्रमिक होते हैं, जो अंशकालिक या पूर्णकालिक काम करते हैं। रिपोर्ट में इस क्षेत्र की बढ़ती चुनौतियों के बारे में भी बात की गई है, जिनका हल निकालने की आवश्यकता है। इनमें सबसे अहम बात नौकरी की सुरक्षा की कमी, कामगारों की मजदूरी में अनियमितता और श्रमिकों के लिए अनिश्चित रोजगार की स्थिति है। इसके अलावा प्लेटफॉर्म के मालिक और कामगारों के बीच ठेके वाला रिश्ता होता है और प्लेटफॉर्म पर काम करने वाले श्रमिकों को ‘स्वतंत्र ठेकेदार’ कहा जाता है। इसलिए प्लेटफॉर्म पर काम करने वालों को कार्यस्थल से जुड़ी सुरक्षा और इससे जुड़े अधिकार नहीं मिल पाते हैं। नीति आयोग ने रिपोर्ट में ऐसे स्वतंत्र और अस्थायी श्रमिकों तथा उनके परिवारों के लिए सामाजिक सुरक्षा उपायों का विस्तार करने की सिफारिश की है, जिसमें बीमार पड़ने पर मिलने वाली छुट्टी, बीमा और पेंशन शामिल हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है ‘गिग वर्कर और प्लेटफॉर्म पर चलने वाले क्षेत्रों में काम शुरू करना आसान है, इसलिए भारत में रोजगार सृजन के लिए काफी संभावनाएं हैं। यह क्षेत्र उन लोगों को बेहतर आमदनी के अवसर प्रदान करता है जो पहले इसी तरह की पबिना प्लेटफॉर्म की नौकरियों से जुड़े हुए थे। इससे कारोबार को गति मिलती है।’ इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए सॉफ्टवेयर सेवा कंपनियों के संगठन नैसकॉम ने कहा कि कोविड-19 महामारी ने काम, कार्यबल, कार्यस्थल और कार्य संस्कृति में बदलाव ला दिया है और दिखाया है कि भविष्य में भी काम करने का यही तरीका आम हो जाएगा। नैसकॉम ने कहा, ‘आज कार्यबल का गिग मॉडल क्षमता विकास का प्रमुख मॉडल बन रहा है जो भविष्य में अहम घटक बन जाएगा। हालांकि अबी यह शुरुआती चरण में है लेकिन हाइब्रिड कार्य मॉडल बढ़ रहा है और भारत की ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के समर्थन वाली सरकारी नीतियां इसमें और तेजी लाएंगी, जिससे प्रतिभाशील लोग बढ़ेंगे और रोजगार सृजन होगा।’
