नैनो यूरिया की सफलता के बाद सरकार नैनो डाई-अमोनिया फॉस्फेट (नैनो डीएपी) पेश करने पर काम कर रही है। कम लागत पर ज्यादा प्रभावी होने के कारण इससे क्रांतिकारी बदलाव हो सकता है। इसका असर उर्वरक सब्सिडी बिल के साथ विदेशी मुद्रा पर पड़ सकता है क्योंकि डीएपी की खपत यूरिया के बाद सबसे ज्यादा होती है। देश में डीएपी की सालाना खपत का आधा आयात किया जाता है। नैनो यूरिया नैनोपार्टिकल के रूप में आवश्यक यूरिया होता है, जिसमें तरल रूप में यूरिया के सभी गुण मौजूद होते हैं। इनका असर ज्यादा होता है। उपलब्ध सूचना के मुताबिक परंपरागत यूरिया की दक्षता दर 25 से 30 प्रतिशत है, वहीं नैनो यूरिया की 90 प्रतिशत तक हो सकती है। उर्वरक क्षेत्र की दिग्गज इफको को इस पर जमीनी काम करने को कहा गया है। शुरुआती अनुमान के मुताबिक नैनो डीएपी की 500 लीटर की बोतल की कीमत करीब 600 रुपये हो सकती है, जो 50 किलो की सब्सिडी वाली डीएपी की 1,350 रुपये की बोरी की तुलना में 50 प्रतिशत से भी कम है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘नैनो डीएपी के पेटेंट की कवायद की गई है।’ कुछ सप्ताह पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व के पहले नैनो यूरिया संयंत्र का गुजरात में उद्घाटन करते हुए वैज्ञानिकों और तकनीकी जानकारों से अपील की थी कि वे ज्यादा से ज्यादा इस तरह के उत्पाद बनाने की कवायद करें। इस तकनीक को क्रांतिकारी करार देते हुए मोदी ने कहा कि एक छोटी बोतल (500 मिलीलीटर) नैनो यूरिया किसानों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाली 50 किलो की यूरिया की बोरी के बराबर ही असर दिखाएगी। उन्होंने कहा कि इससे यूरिया की ढुलाई की लागत करीब शून्य हो जाएगी। नैनो डीएपी के मामले में भी मूल्य शृंखला में शामिल सभी लोगों को उल्लेखनीय लाभ हो सकता है। गैर यूरिया उत्पादों पर सब्सिडी का बड़ा हिस्सा डीएपी पर खर्च होता है क्योंकि रबी सीजन में इसकी बड़े पैमाने पर खपत होती है। वित्त वर्ष 23 में केंद्र ने उर्वरक सब्सिडी के लिए 1.05 लाख करोड़ रुपये का बजट रखा है, जिसमें से करीब 40 प्रतिशत गैर यूरिया सब्सिडी है। रूस और यूक्रेन का युद्ध लंबा खिंचने के साथ उर्वरक के दाम बढ़ रहे हैं। अप्रैल में सरकार ने 60,939.23 करोड़ रुपये गैर यूरिया के लिए अतिरिक्त सब्सिडी को मंजूरी दी है, जो इस वित्त वर्ष के पहले 6 महीने के लिए है। इससे कंपनियां किसानों को सस्ती दरों पर मिट्टी का पोषक बेचने में सफल हो सकेंगी। हाल के सब्सिडी समर्थन के बाद कंपनियां डीएपी की एक बोरी 1,350 रुपये में बेच सकेंगी, क्योंकि केंद्र शेष लागत का बोझ वहन करेगा, जिसकी अनुमानित लागत 2,500 रुपये है। डीएपी और एनपीकेएस (विभिन्न श्रेणी) के लिए सब्सिडी गैर यूरिया उर्वरक के लिए आवंटित सब्सिडी की तुलना में करीब 45.23 प्रतिशत ज्यादा हो गई है। अब तक सरकार ने गैर यूरिया उर्वरक के लिए वित्त वर्ष 23 में 42,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया है, जबकि अतिरिक्त 19,000 करोड़ रुपये भी सिर्फ पहली छमाही यानी सितंबर तक के लिए है। यूरिया के मामले में केंद्र सरकार अधिकतम खुदरा मूल्य तय करती है और अधिकतम खुदरा मूल्य और उत्पादन लागत का भुगतान सब्सिडी के रूप में करती है।
