इस सप्ताह प्रमुख सूचकांक इन उम्मीदों से करीब 3 प्रतिशत की तेजी दर्ज करने में कामयाब रहे कि जिंस कीमतों में नरमी आने से मुद्रास्फीति को काबू में करने और कॉरपोरेट आय बढ़ाने में मदद मिलेगी। इससे पूर्व के सप्ताह में, ये सूचकांक करीब 6 प्रतिशत की गिरावट के शिकार हुए, जो दो साल के दौरान इनमें सबसे बड़ी साप्ताहिक कमजोरी भी थी। पिछले सप्ताह में आक्रामक मौद्रिक सख्ती से वैश्विक मंदी का खतरा पैदा होने की आशंकाओं के बीच बाजार में गिरावट को बढ़ावा मिला था। हालांकि मंदी की चिंताओं से कच्चे तेल, इस्पात, लौह अयस्क और अन्य औद्योगिक धातुओं में ज्यादा बिकवाली हुई। विश्लेषकों का कहना है कि उत्पादन लागत में गिरावट के साथ साथ आकर्षक मूल्यांकन से भी बाजार को पिछले सप्ताह की गिरावट से उबरने में मदद मिली। शुक्रवार को सेंसेक्स 462 अंक या 0.8 प्रतिशत की तेजी के साथ 52,728 पर बंद हुआ। पूरे सप्ताह के संदर्भ में सेंसेक्स ने 2.6 प्रतिशत या 1,368 अंक की तेजी दर्ज की। वहीं निफ्टी शुक्रवार के कारोबार में 142 अंक या 0.9 प्रतिशत की तेजी के साथ 15,699 पर बंद हुआ और पूरे सप्ताह के संदर्भ में इस सूचकांक में 2.7 प्रतिशत का इजाफा दर्ज किया गया। कच्चा तेल 112 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा था, जो जून के दूसरे सप्ताह के स्तरों से 12 प्रतिशत की गिरावट है। जूलियस बेयर इंडिया के कार्यकारी निदेशक मिलिंद मुछला ने कहा, 'खासकर औद्योगिक धातु समेत कई जिंसों की कीमतों में ताजा गिरावट से मुद्रास्फीति दबाव कम होने की उम्मीदें बढ़ रही हैं। मुद्रास्फीति में नरमी (आपूर्ति झटकों में संभावित कमी की मदद से) और कमजोर अर्थव्यवस्था से वैश्विक केंद्रीय बैंकों की राह चुनौतीपूर्ण हो सकती है और इससे भविष्य में उकी मौद्रिक नीति के चक्र को लेकर प्रक्रिया कम सख्त होगी, जो इक्विटी के अनुकूल होगा।' हालांकि कुछ ने इसे बाजार में टेक्नीकल के तौर पर ताजा बदलाव करार दिया है और कहा है कि शेयरों पर दबाव बना रहेगा, क्योंकि केंद्रीय बैंकों ने हाल में अपनी दर वृद्धि की होड़ शुरू की है। इसके अलावा, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) द्वारा लगातार बिकवाली से बाजार को अन्य दबाव का सामना करना पड़ रहा है। शुक्रवार को एफपीआई ने 2,354 करोड़ रुपये मूल्य के शेयर बेचे, जिसके साथ ही महीने में उनकी कुल बिकवाली का आंकड़ा बढ़कर 50,000 करोड़ रुपये के आसपास हो गया। बीडीओ इंडिया में फाइनैंशियल सर्विसेज टैक्स के पार्टनर एवं लीडर मनोज पुरोहित ने कहा, 'एफपीआई द्वारा इस तरह की निकासी पिछली बार तब देखी गई थी जब 2020 की पहली तिमाही में महामारी चरम पर थी। वैश्विक तौर पर, यूक्रेन और रूस के बीच मौजूदा सैन्य कार्रवाई, फेड द्वारा दर वृद्धि और महामारी के मामलों में फिर से तेजी आने से विदेशी निवेशकों द्वारा बिकवाली को बढ़ावा मिला है। नकारात्मक उतार-चढ़ाव की यह अल्पावधि रफ्तार आगामी सप्ताहों में नरम पड़ने की संभावना है।' इस सप्ताह, फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए केंद्रीय बैंक के प्रयासों को फिर से दोहराया और स्वीकार किया कि मंदी को नियंत्रित करने की राह में मंदी एक समस्या हो सकती है।
