गैर बिजली क्षेत्र में घरेलू कोयला कम | श्रेया जय और ध्रुवाक्ष साहा / नई दिल्ली June 24, 2022 | | | | |
पिछले साल अगस्त में कोयले की मांग व आपूर्ति में अंतर शुरू होने के बाद केंद्र सरकार ने बिजली क्षेत्र को घरेलू कोयले की आपूर्ति को प्राथमिकता दी। उसके बाद से ही स्टील, एल्युमीनियम, आयरन, कागज, सीमेंट आदि उद्योगों सहित प्रमुख गैर बिजली क्षेत्रों को कोयले की कमी से जूझना पड़ रहा है। बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत के दौरान इन क्षेत्रों से जुड़े अधिकारियों ने कहा कि कोयला संकट शुरू होने को एक साल होने को हैं, लेकिन स्थिति में बमुश्किल कोई सुधार है, भले ही इस दौरान कोयले का उत्पादन बढ़ा है।
पिछले एक साल में गैर बिजली क्षेत्र को कोयले की लदान में 33 प्रतिशत कमी आई है। पिछले साल अगस्त में जब कोयले की कमी शुरू हुई, केंद्र ने नैशनल माइनर कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) से कोयले की आपूर्ति में बिजली क्षेत्र को प्राथमिकता देने को कहा और अन्य क्षेत्रों का कोयला भी बिजली क्षेत्र को देना शुरू कर दिया गया।
एक स्टील कंपनी के अधिकारी ने कहा, ‘उसके बाद से स्थिति खराब ही हुई है। हम विकल्प तलाशने की कवायद कर रहे हैं। बड़े कारोबारी कोयले का आयात कर रहे हैं, जो महंगा है। लेकिन छोटे कारोबारियों के पास पूंजी नहीं होती है। सीआईएल द्वारा की जा रही कोयले की ई-नीलामी की दर भी मांग बढ़ने के साथ बढ़ी है।’
कोयला मंत्रालय को लिखे गए पत्र में कोल कंज्यूमर्स एसोसिएशन आफ इंडिया ने कहा कि उन्हें एफएसए के मुताबिक आवंटित कोयले की आपूर्ति नहीं की जा रही है, वहीं कोयला कंपनियां हाजिर ई-नीलामी कर रही हैं, जहां मार्च 22 के बाद से हाजिर भाव में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है।
एसोसिएशन ने कहा, ‘महानदी कोलफील्ड्स (एमसीएल) द्वारा कराई गई हाल की हाजिर ई-नीलामी में कोयले की कीमत अधिसूचित मूल्य की तुलना में 800 प्रतिशत से ज्यादा पर पहुंच गई। एमसीएल के तमाम ग्राहक कोयले की खरीद के लिए बाध्य हुए, जिससे कि वे अपने संयंत्र चालू रख सकें। वहीं तमाम उद्योगों ने इस नीलामी से अलग रहने में ही भलाई समझी।’
कोयले की आपूर्ति में कमी के साथ गैर बिजली क्षेत्रों को कोयले के परिवहन में रेलवे की हिस्सेदारी भी कम हो रही है। अप्रैल में कोयले की 96 रैक प्रतिदिन आपूर्ति उद्योगों को हुई। मई में घटकर 93.4 रैक रह गई। जून के पहले पखवाड़े में सिर्फ 86 रैक प्रतिदिन आपूर्ति हुई। इसमें से दो तिहाई औद्योगिक कोयले की आपूर्ति आयातित कोयले से भी महंगी है। एक रैक में सामान्यतया 58 वैगन होते हैं, जिनकी ढुलाई क्षमता करीब 3,800 टन होती है।
नैशनल ट्रांसपोर्टर का मानना है कि यह पूरी तरह से बाजार की गणित है कि बिजली क्षेत्र व औद्योगिक कोयले की आपूर्ति में विपरीत संबंध स्थापित हो रहा है। रेलवे के एक अधिकारी ने नाम न दिए जाने की शर्त पर कहा, ‘पहली नजर में ऐसा लग सकता है कि बिजली क्षेत्र को रेलवे अधिक आपूर्ति कर रहा है और उद्योगों की आपूर्ति कम कर रहा है। लेकिन यह पूरी तरह से मांग और आपूर्ति का मसला है। उद्योग से कोयले की मांग इस समय घटनी शुरू हो जाती है। हमारे पास बिजली और औद्योगिक क्षेत्र दोनों को ही कोयले की आपूर्ति करने के लिए पर्याप्त संख्या में रैक है।’
मॉनसून सक्रिय होने के साथ कोयले की ढुलाई सुस्त हो जाती है, क्योंकि बारिश के कारण कोयले का वजन बढ़ जाता है और इसकी गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। रेलवे के अनुमान के मुताबिक करीब 300 रैक इस समय खड़े हैं, क्योंकि कोयले की मांग कम है।
गैर बिजली क्षेत्र का कहना है कि मॉनसूनी बारिश के साथ आगे कोयले की उपलब्धता और कम हो जाएगी।
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