राजकोषीय कमजोरी | संपादकीय / June 23, 2022 | | | | |
कोविड-19 महामारी के कारण मची उथलपुथल ने दुनिया भर की सरकारों के वित्त पर बुरा असर डाला है। भारत की बात करें तो हालांकि हमारे यहां ध्यान केंद्र सरकार पर है लेकिन यह भी अहम है कि राज्य सरकारों की वित्तीय स्थिति पर से ध्यान नहीं हटाया जाए। ऐसा इसलिए कि आम सरकारी व्यय का बड़ा हिस्सा राज्यों द्वारा ही किया जाता है। महामारी से निपटने में राज्य ही अग्रिम मोर्चे पर हैं। चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने और राजस्व को जबरदस्त हानि पहुंचने के दौर में आबादी के वंचित वर्ग की मदद करने के क्षेत्र में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई। यही कारण है कि उनकी वित्तीय स्थिति बुरी तरह प्रभावित हुई।
बहरहाल, इस एकबारगी झटके के अलावा कई अन्य कमजोरियां हैं जो कई राज्यों को प्रभावित कर रही हैं और आने वाले समय में समग्र वृद्धि और विकास के लिए खतरा बन सकती हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अपने ताजा मासिक बुलेटिन में इनमें से कुछ को रेखांकित करके अच्छा किया है।
महामारी के आगमन के पहले औसत सकल राजकोषीय घाटे (जीएफडी) और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का अनुपात 2.5 प्रतिशत था, हालांकि कुछ राज्यों का राजकोषीय घाटा 3.5 प्रतिशत था। परंतु महामारी ने सरकारी खजाने को गहरी क्षति पहुंचाई।
अध्ययन में कठिन हालात से जूझ रहे 10 राज्यों को 2020-21 में उनके कर्ज के स्तर के मुताबिक रेखांकित किया गया। उनका जीएफडी से जीएसडीपी अनुपात 3 प्रतिशत या उससे अधिक था। ये राज्य थे-पंजाब, केरल, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और हरियाणा। ये सभी राज्य अहम हैं क्योंकि देश में राज्यों के कुल व्यय का आधा हिस्सा इन्हीं राज्यों में होता है। अध्ययन आगे पांच अत्यंत संकटग्रस्त राज्यों को चिह्नित करता है जो हैं- बिहार, केरल, राजस्थान, पंजाब और पश्चिम बंगाल।
राज्यों की वित्तीय स्थिति नीतिगत प्रतिष्ठान के लिए कई वजहों से चिंता का विषय है। राजस्व संग्रह एक आम समस्या रहा है लेकिन कुछ राज्यों के कर राजस्व में भी गिरावट देखने को मिल रही है। इसके अलावा व्यय की गुणवत्ता भी स्तरीय नहीं है। इन राज्यों के कुल व्यय में राजस्व व्यय की हिस्सेदारी 80-90 प्रतिशत है जो वृद्धिकारी परिसंपत्तियों पर व्यय करने की उनकी क्षमता को सीधे प्रभावित करता है। अध्ययन राज्य सरकारों के वित्त के सामने मौजूद कई अन्य जोखिमों को भी रेखांकित करता है। वितरण को दी जा रही प्राथमिकता ऐसे समय में मुश्किल पैदा कर सकती है जब वित्तीय स्थिति दबाव में है। कुछ राज्यों द्वारा पुरानी पेंशन योजना को अपनाना भी चिंता का विषय है। सरकारी उपक्रमों को विस्तारित गारंटी और बिजली वितरण कंपनियों का बढ़ता कर्ज भी राज्यों के लिए खतरा है। अनुमान के अनुसार राज्यों की बजट से इतर उधारी बढ़कर जीडीपी का 4.5 प्रतिशत तक हो चुकी है।
चिंता की बात यह है कि कुछ कर्जग्रस्त राज्यों में निकट भविष्य में हालात सुधरते नहीं दिख रहे। अनुमान बताते हैं कि अधिकांश राज्यों का कर-जीएसडीपी अनुपात 2026-27 तक 30 प्रतिशत से अधिक हो जाएगा। पंजाब में यह स्तर 45 प्रतिशत तक पहुंच सकता है। यह अध्ययन इस बात को भी रेखांकित करता है कि पांच सबसे कर्जग्रस्त राज्यों में कर्ज अब झेलने लायक नहीं रह गया है और वह जीएसडीपी से भी तेज गति से बढ़ रहा है। वस्तु एवं सेवा कर व्यवस्था के अधीन क्षतिपूर्ति की व्यवस्था समाप्त होने से भी राज्यों की वित्तीय स्थिति प्रभावित होगी। चूंकि आम सरकारी कर्ज तेजी से बढ़ा है इसलिए भारत को मध्यम अवधि में सुदृढ़ीकरण का एक खाका चाहिए। कुछ बड़े राज्यों में कर्ज का भारी भरकम स्तर न केवल वृद्धि संभावनाओं पर असर डालेगा बल्कि यह वृहद आर्थिक स्थिरता के लिए भी जोखिम पैदा कर सकता है।
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