ब्याज दरों में और वृद्धि के संकेत | मनोजित साहा / मुंबई June 23, 2022 | | | | |
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति के सदस्यों ने महंगाई पर काबू पाने के लिए आने वाले महीनों में ब्याज दर में और बढ़ोतरी के संकेत दिए हैं। जून की मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक के आज जारी ब्योरे से यह जानकारी मिलती है। दरें तय करने वाली समिति ने नीतिगत रीपो रेट में मई और जून के दौरान 90 आधार अंक का बढ़ोतरी कर इसे 4.9 प्रतिशत कर दिया है। 2022 के सभी 5 महीनों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित महंगाई दर रिजर्व बैंक द्वारा तय ऊपरी सीमा 6 प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है।
मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की 6 से 8 जून को हुई बैठक के ब्योरे में जिंसों के बढ़ते दाम के बीच महंगाई दर बढ़ने के जोखिम को लेकर सदस्यों के बीच चिंता नजर आई। एमपीसी ने महंगाई दर के लिए 2 से 6 प्रतिशत के बीच की सीमा तय कर रखी है। दर तय करने वाली समिति के सभी सदस्यों ने ब्याज दरों में और बढ़ोतरी का पक्ष लिया।
बैठक के ब्योरे से पता चलता है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के डिप्टी गवर्नर माइकल पात्र ने कहा, ‘उद्देश्य यह हो सकता है कि रीपो रेट उस स्तर पर ले जाया जाए, जिससे कम से कम चौथी तिमाही में इसका असर नजर आए।’
उन्होंने कहा, ‘हमारा मकसद यह होना चाहिए कि वित्त वर्ष 2022-23 की अंतिम तिमाही में या वित्त वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही तक महंगाई दर घटाकर तय सीमा के भीतर लाया जाए और उसके बाद 2023-24 में पूरे वित्त वर्ष के दौरान इसे सीमा के भीतर रखा जाए।’
मई में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित महंगाई दर 7.04 प्रतिशत रही है। जून की नीतिगत समीक्षा में एमपीसी ने रीपो रेट 50 आधार अंक बढ़ाकर 4.90 प्रतिशत कर दिया, जिससे मई के बाद से रीपो दर में कुल बढ़ोतरी 90 आधार अंक हो गई है।
जून के बयान में एमपीसी ने अनुमान लगाया था कि औसत प्रमुख खुदरा महंगाई चालू वित्त वर्ष में 6.7 प्रतिशत रहेगी, यह पहले के 5.7 प्रतिशत के अनुमान की तुलना में बहुत ज्यादा है।
रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि रीपो दर अभी भी महामारी के पहले की तुलना में कम है और बैंकिंग व्यवस्था में नकदी अधिशेष कोविड संकट के पहले की तुलना में ज्यादा है।
जून की नीतिगत समीक्षा में एमपीसी ने अपने रुख को लेकर शब्दावली बदलते हुए कहा है कि यह फैसला किया गया है कि समावेशी नीति की वापसी जारी रखी जाएगी, जबकि मई के नीतिगत बयान में समावेशी बने रहने और समावेश वापस लेने पर ध्यान केंद्रित करने की बात कही गई थी।
ब्योरे के मुताबिक दास ने कहा, ‘हाल के महीनों में निर्विवाद रूप से हमारा ध्यान नकदी और दरों दोनों हिसाब से समावेशन को वापस लेने पर ध्यान रहा है। रुख को लेकर शब्दावली में बदलाव को हमारे हाल के रुख को बेहतर करने और उसे जारी रखने के रूप में देखा जाना चाहिए।’
एपीसी के सदस्य और इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट आफ डेवलपमेंट रिसर्च में मानद प्रोफेसर अशिमा गोयल ने कहा कि यह जरूरी था कि रिकवरी को लेकर नीति पर ध्यान दिया जाए क्योंकि भारत अभी महामारी की वजह से आई गिरावट से उबर रहा है। ब्योरे में उन्होंने कहा है कि यह 2011 की स्थिति के विपरीत है, जब भारत आर्थिक तेजी से नीचे आ रहा था।
उन्होंने कहा, ‘रिकवरी की मौजूदा स्थिति मे वास्तविक दर -1 प्रतिशत से ज्यादा ऋणात्मक नहीं होना चाहिए। पचास से साठ आधार अंक की बढ़ोतरी से यह हासिल किया जा सकता है।’
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