बाजारों को उच्चस्तर पर टिके रहने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। जेफरीज के वैश्विक प्रमुख (इक्विटी रणनीतिकार) क्रिस्टोफर वुड ने सलाह दी है कि अल्पावधि में निवेशकों को बाजार की तेजी में बिकवाली करना चाहिए। रूस-यूक्रेन विवाद की समाप्ति पर जिंसों पर दबाव घटेगा। पुनीत वाधवा को दिए साक्षात्कार के मुख्य अंश...क्या आप इस साल अमेरिकी फेडरल रिजर्व का रुख नरम होने की उम्मीद कर रहे हैं? कैलेंडर वर्ष 21 की चौथी तिमाही से ही महंगाई को लेकर अमेरिकी फेडरल रिजर्व पर दबाव रहा है। ओपिनियन पोल से पता चलता है कि बढ़ती कीमतें अमेरिकी नागरिकों की सबसे बड़ी चिंता है और लोग इसके लिए प्रशासन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप फेडरल रिजर्व तेजी से कदम बढ़ा रहा है। जब अगले कुछ महीने में मौद्रिक नीति की सख्ती के निहितार्थ स्पष्ट हो जाएंगे तब राजनीतिक दबाव कम हो सकता है और केंद्रीय बैंक का रुख भी बदल सकता है।अमेरिका में मध्यावधि चुनाव इस साल होने वाले हैं। क्या यह फेड के रुख में बदलाव करेगा? मेरा अनुमान कहता है कि सितंबर तिमाही में बदलाव होंगे। ऊंची कीमतें चिंता का विषय है, लेकिन मौद्रिक सख्ती से आर्थिक क्षति भी होगी, खास तौर से शेयर बाजार को। फिर राजनेता फेड को अपना रुख मोड़ने के लिए दबाव डाल सकते हैं। अगर फेड महंगाई को काबू में लाए बिना रुख मोड़ता है तो इससे संकेत मिलेगा कि वे ज्यादा महंगाई सहन करने के इच्छुक हैं।आपने हाल में तेजी में बिकवाली की सलाह दी है। क्या आप अभी भी इस रुख पर कायम हैं? मैं अभी भी कह रहा हूं कि अल्पावधि के लिहाज से तेजी के दौर में निवेशकों को बिकवाली करनी चाहिए। बाजारों की तेजी रूस-यूक्रेन विवाद की अचानक समाप्ति से रूबरू होगा क्योंकि यह जिंसों की आपूर्ति का दबाव घटाएगा। कच्चे तेल की कीमतों का दबाव भी नरम होगा। इन चीजों से बाजारों में राहत भरी तेजी आ सकती है, लेकिन अभी ऐसा होने के कोई सबूत नहीं हैं।भारतीय बाजारों को लेकर आपका क्या नजरिया है? मैं भारत को लेकर अपना भारांक बढ़ाने पर विचार कर रहा हूं और अगर निफ्टी 14,000 या 14,500 के आसपास आएगा तो मैं खरीदारी करूंगा। अगर फेड अगले कुछ महीने में अपना रुख नहीं बदलता है तो निफ्टी इस स्तर पर आ सकता है। भारत में महंगाई की समस्या अमेरिका की तरह ढांचागत नहीं है। लेकिन हम भारत में महंगाई में बढ़ोतरी की संभावना से इनकार नहीं कर सकते। भारतीय बाजार के लिए जोखिम है भूराजनीतिक मसलों के कारण कच्चे तेल की कीमत का अचानक बढ़ना। हमें यह भी देखना होगा कि एफपीआई की बिकवाली को देसी संस्थान व निवेशक कब तक भरपाई कर पाएंगे। अगर भारतीय बाजार यहां से 10 फीसदी और टूटता है तो क्या खुदरा निवेशक व देसी संस्थान बिकवाली शुरू करेंगे? ऐसा होने की संभावना है और निफ्टी 14,000 तक फिसल सकता है। मुझे लगता है कि उस स्तर पर विदेशी फंड खरीदारी शुरू करेंगे। कई महीनों से विदेशी निवेशक भारतीय शेयरों की बिकवाली कर रहे हैं और निफ्टी के 14,000 के स्तर पर आने से विदेशी रकम दोबारा आनी शुरू हो जाएगी।आप हाल में भारत यात्रा पर थे। कंपनियों व निवेशकों से मुलाकात के बाद आपको क्या महसूस हुआ? वे मौद्रिक सख्ती से जुड़े मसले समझ रहे हैं, लेकिन उनका नजरिया तेजी का बना हुआ है। भारत में प्रॉपर्टी मार्केट सुधर रहा है और बढ़ती दरों के बावजूद टिका रह सकता है। इसे लेकर आशावाद है कि भारत में पूंजीगत खर्च का चक्र जोर पकड़ेगा। चिंता यह है कि वैश्विक स्तर पर जोखिम का माहौल पूंजीगत खर्च के चक्र में देरी करेगा? मुझे लगता है कि दरों में बढ़ोतरी से प्रॉपर्टी मार्केट में अवरोध पैदा नहीं होगा। मेरी राय में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए वास्तविक जोखिम अमेरिकी फेड के कदम और तेल की कीमतों में संभावित बढ़ोतरी है। भारतीय अर्थव्यवस्था इसे झेलने के लिए पर्याप्त रूप से सुदृढ़ है। हालांकि सब्सिडी का भार भारत के लिए अभी भी जोखिम बना हुआ है। कंपनियां पूंजीगत खर्च के लिए तैयार हैं, लेकिन मौद्रिक सख्ती के कारण इसमें देर हो सकती है।अगर निफ्टी 14,000 पर आता है तो आप कौन से क्षेत्र व शेयरों में खरीदारी करेंगे? मैं उन शेयरों में भारांक बढ़ा दूंगा, जिनमें मैं पहले से ही निवेशित हूं। अभी मेरा पसंदीदा क्षेत्र ऊर्जा है, लेकिन मेरा मुख्य निवेश निजी क्षेत्र के बैंकों में है। मुझे लगता है कि आने वाले समय में कच्चा तेल 150 डॉलर प्रति बैरल के पार जाएगा।
