बंद हो सिंगल यूज प्लास्टिक | संपादकीय / June 22, 2022 | | | | |
एक बार इस्तेमाल होने वाले (सिंगल यूज) प्लास्टिक पर प्रतिबंध काफी समय से लंबित था। अब वह 1 जुलाई से प्रभावी होने जा रहा है। परंतु कुछ हिस्सेदारों की लॉबी अभी भी कोशिश कर रही है कि इस समय सीमा को और टाला जा सके। इस कोशिश को किसी भी लिहाज से उचित नहीं ठहराया जा सकता है, इस आधार पर भी नहीं कि इनका कोई किफायती विकल्प उपलब्ध नहीं है। इन लॉबीइंग करने वालों में सबसे मुखर हैं उन पेय पदार्थों के उत्पादक जिनके साथ स्ट्रॉ अनिवार्य रूप से दिया जाता है। वे एक वर्ष या छह माह का अतिरिक्त समय मांग रहे हैं ताकि जैविक रूप से अपघटित होने वाले पदार्थों से बने स्ट्रॉ की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। पर्यावरणविद उनकी मांग को जाहिर तौर पर खारिज कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्लास्टिक स्ट्रॉ का उचित विकल्प तलाश करने के लिए पहले ही उन्हें काफी समय दिया जा चुका है।
चरणबद्ध तरीके से इन स्ट्रॉ तथा अन्य एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक उत्पादों का इस्तेमाल बंद करने को लेकर पहली बार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 2018 में अधिसूचना जारी की थी और ऐसा करने के लिए 2020 की समय सीमा तय की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 2019 में स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में कहा था कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले इन उत्पादों से छुटकारा पाया जाएगा। एक जुलाई, 2022 की मौजूदा समय सीमा भी करीब एक वर्ष पहले अगस्त 2021 में तय की गई थी। ऐसे में इन कंपनियों के पास नये मानकों को अपनाने के लिए समय की कमी नहीं थी। कागज, पॉलिलैक्टिक एसिड, मक्के के स्टार्च से बने स्ट्रॉ कई देशों में इस्तेमाल किए जा रहे हैं। भारत में भी उनका उत्पादन या आयात आसानी से किया जा सकता है। कुछ कंपनियों ने तो ऐसा करना शुरू भी कर दिया है। हालांकि देश में इनके निर्माण की क्षमता हमारी आवश्यकता से काफी कम है लेकिन मांग के साथ इसे बढ़ाया जा सकता है।
प्लास्टिक पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए नुकसानदेह है। उनका उपयोग सीमित और नुकसान बहुत ज्यादा हैं इसलिए उनसे निपटने में कोई ढिलाई नहीं बरती जा सकती है। एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक उत्पादों में करीब 90 प्रतिशत का न तो पुनर्चक्रण होता है, न उन्हें सही ढंग से निपटाया जाता है। इसका बड़ा हिस्सा सड़कों पर बिखरा रहता है और नालियों को जाम करता है। यह नदियों के जरिये सागर में पहुंचकर जलीय पारिस्थितिकी को भी खराब करता है। कचरे के ढेरों में भी बड़ा हिस्सा ऐसे ही प्लास्टिक का है। यह वहां सैकड़ों सालों तक पड़ा रह सकता है और हवा में जहरीले धुएं का कारण बन सकता है। प्लास्टिक के प्रदूषक तत्त्व अक्सर पकाए जाने वाले भोजन या खराब पैकिंग वाले पैकेट बंद खाद्य पदार्थ में पाए जाते हैं।
हमारे देश में हर वर्ष प्रति व्यक्ति करीब 4 किलो प्लास्टिक कचरा उत्पादित होता है। यह कई अन्य देशों की तुलना में कम लग सकता है लेकिन कुल मिलाकर यह चीन और अमेरिका के बाद तीसरा सबसे अधिक प्लास्टिक कचरा है। प्लास्टिक कचरे को बाकी कचरे से अलग करने का किफायती तरीका न होना और इसे वैज्ञानिक ढंग से न निपटाया जा सकना ज्यादा चिंता का विषय है। गत मार्च में नैरोबी में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा में भाग लेने वाले करीब 170 देशों ने कहा था कि 2030 तक ऐसे नुकसानदेह प्लास्टिक के इस्तेमाल से निजात पाई जाएगी। उनमें से 80 देशों ने पहले ही अमानक प्लास्टिक के उत्पादन, व्यापार, उसे रखने या इस्तेमाल करने पर पूरा या आंशिक प्रतिबंध लगा दिया है। इनमें से करीब अफ्रीका और एशिया के छोटे और विकासशील देश हैं। भारत के पीछे रहने की कोई वजह नहीं है।
|