अब दोहरे घाटे का डर | अरूप राय चौधरी / नई दिल्ली June 21, 2022 | | | | |
वित्त मंत्रालय ने अर्थव्यवस्था में दोहरे घाटे की समस्या उभरने के प्रति आगाह किया है। मंत्रालय का कहना है कि जिंसों के ऊंचे दाम और सब्सिडी के बढ़ते बोझ से राजकोषीय घाटे के साथ साथ चालू खाते का घाटा भी बढ़ेगा। यह पहला मौका है जब सरकार ने चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य पीछे रहने के बारे में खुलकर बात की है।
वित्त मंत्रालय ने अपनी ताजा मासिक आर्थिक समीक्षा में कहा है, ‘डीजल और पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क में कटौती से सरकार को राजस्व का नुकसान होगा, वहीं सकल राजकोषीय घाटे का लक्ष्य पार होने का जोखिम बढ़ गया है। राजकोषीय घाटा बढ़ने से चालू खाते का घाटा भी बढ़ सकता है। महंगे आयात के समेकित असर और विदेशी घटनाक्रम से रुपये में आगे और नरमी आने की वजह से घाटा और बढ़ेगा तथा मुद्रा और नरम हो सकती है।’
रिपोर्ट में कहा गया है कि वृद्धि को मदद देने के लिए पूंजीगत व्यय की सुरक्षा तथा घाटे को बढ़ने से रोकने के लिए गैर-पूंजीगत व्यय में कटौती करना महत्त्वपूर्ण हो गया है।
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक आपूर्ति प्रभावित होने से वित्त मंत्रालय ने पहले संकेत दिया था कि वित्त वर्ष 2023 में देश का उर्वरक सब्सिडी बिल करीब 2.5 लाख करोड़ रुपये पहुंच सकता है जबकि बजट में इसके 1.05 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया गया था। उर्वरक सब्सिडी मद में 1.10 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी की घोषणा के अलावा केंद्र सरकार ने पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना को सितंबर तक बढ़ाने का निर्णय किया है, जिससे चालू वित्त वर्ष में खाद्य सब्सिडी बजट अनुमान 2.07 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2.87 लाख करोड़ रुपये पहुंच सकता है।
पेट्रोल और डीजल पर उत्पादन शुल्क में हालिया कटौती के कारण इस साल सरकारी खजाने को 85,000 करोड़ रुपये की चपत लगेगी। इसके साथ ही कुछ उत्पादों पर आयात शुल्क घटाने से 10,000 से 15,000 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान होगा। इसके अतिरिक्त सरकार ने प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के 9 करोड़ से ज्यादा लाभार्थियों को 12 सिलिंडर तक प्रति सिलिंडर 200 रुपये की सब्सिडी देने का निर्णय किया है, जिससे खजाने पर 6,100 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा।
रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में जहां व्यापक स्तर पर महंगाई जनित मंदी की संभावनाएं बन रही हैं, वहीं भारत में इससे जुड़े कम जोखिम हैं। इसकी वजह यहां की दूरदर्शी संतुलित नीतियां हैं। महंगाई जनित मंदी एक ऐसी स्थिति होती है जब महंगाई की दर अधिक होती है और आर्थिक वृद्धि की दर कम होने के साथ ही बेरोजगारी दर काफी अधिक होती है।
इस वित्त वर्ष में वृद्धि की रफ्तार को बरकरार रखना, महंगाई पर नियंत्रण करना, राजकोषीय घाटे को बजट अनुमानों के दायरे में रखना और अर्थव्यवस्था के अंतर्निहित बाह्य बुनियादी आधार के अनुरूप विनिमय दर का क्रमिक विकास सुनिश्चित करना नीति निर्माताओं के लिए चुनौती है। रिपोर्ट के मुताबिक इसे सफलतापूर्वक करने के लिए लघु अवधि में वृद्धि के बजाय वृहद अर्थव्यवस्था की स्थिरता को प्राथमिकता देने की जरूरत होगी। अर्थव्यवस्था में रिकॉर्ड मुद्रास्फीति स्तर को काबू में करने के लिए एक महीने के भीतर भारतीय रिजर्व बैंक ने नीतिगत दरों में 90 आधार अंकों की बढ़ोतरी की है।
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