कच्चे माल की महंगाई से परिधान उद्योग बेहाल | शाइन जैकब / चेन्नई June 20, 2022 | | | | |
वित्त वर्ष 2021-22 में भारत के कपड़ा एवं परिधान के निर्यात में 41 प्रतिशत बढ़ोतरी के बाद कुल निर्यात 44.4 अरब डॉलर पहुंच गया था और अब इस उद्योग पर महंगाई की मार पड़ रही है। कपास और धागे की कीमत में बढ़ोतरी की वजह से चालू वित्त वर्ष के दौरान मांग में कम से कम 10 प्रतिशत की कमी आई है।
वजीर टेक्सटाइल इंडेक्स के मुताबिक इस क्षेत्र की वेलस्पन, वर्धमान, अरविंद, ट्राइडेंट, केपीआर मिल्स, इंडो काउंट,
आरएसडब्ल्यूएम, फिलाटेक्स, नाहर एसपीजी और इंडोरामा सहित करीब सभी शीर्ष कंपनियों की बिक्री पिछले वित्त वर्ष के दौरान बढ़ी थी। उद्योग संगठनों का कहना है कि चालू वित्त वर्ष के पहले 2 महीनों के दौरान मांग में गिरावट आई है।
अपैरल एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल (एईपीसी) के चेयरमैन नरेंद्र गोयनका ने कहा, ‘पिछले साल अमेरिका औऱ यूरोप में बढ़ी मांग और कुछ देशों द्वारा चाइना प्लस वन के कारण निर्यात में बढ़ोतरी हुई थी। पिछले साल भारत में फैक्टरियां महामारी से बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं हुई थीं। यहां तक कि गैर सूचीबद्ध कंपनियों ने भी बेहतर प्रदर्शन किया था। इस साल मांग कम हुई है, क्योंकि कच्चे माल की कीमत
बहुत ज्यादा है।’
उद्योग संगठन का मानना है कि इस सेक्टर की मांग में चालू वित्त वर्ष के पहले दो महीनों में 2021-22 के समान महीनों की तुलना में कम से कम 10 प्रतिशत की गिरावट आई है।
महामारी प्रभावित 2020-21 की तुलना में 2021-22 के दौरान विभिन्न कंपनियों में वेलस्पन की बिक्री में 13 प्रतिशत, वर्धमान की बिक्री 60 प्रतिशत, अरविंद की करीब 65 प्रतिशत और ट्राइडेंट की करीब 54 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। पिछले वित्त वर्ष के दौरान सबसे ज्यादा बढ़ोतरी अमेरिका से हुई है, जिसकी भारत के कुल परिधान व टेक्सटाइल उद्योग के निर्यात में 27 प्रतिशत हिस्सेदारी है। उसके बाद यूरोपीय संघ की हिस्सेदारी 18 प्रतिशत, बांग्लादेश की 12 प्रतिशत और यूएई की 6 प्रतिशत है।
चालू वित्त वर्ष के दौरान भारत में कपास की कीमत दोगुने से ज्यादा बढ़कर 1,00,000 रुपये प्रति कैंडी पहुंच गई है। इसकी वजह से धागों के दाम भी बढ़े हैं। उद्योग संगठनों ने सरकार से संपर्क कर कपास के फ्यूचर ट्रेडिंग पर प्रतिबंध लगाने और कपास औऱ धागे के निर्यात पर अंकुश लगाने की मांग की है।
दिल्ली की टीटी लिमिटेड के संजय कुमार जैन ने कहा, ‘कच्चे माल की कीमत में तेजी की वजह से इस साल संकट साफ नजर आ रहा है औऱ ऐसे में संभवतः स्थिति पिछले साल जैसी नहीं रहेगी। जिन लोगों के पास कपास या यार्न का भारी भंडार है और उन्होंने पुरानी दर पर खरीद की है, उन्हें अभी भी मौजूदा बढ़ोतरी से लाभ होगा।’ टीटी का मुख्य विनिर्माण तमिलनाडु के तिरुपुर में होता है।
एईपीसी ने यह भी आरोप लगाया है कि यूक्रेन संकट की वजह से ऊर्जा की कीमत बढी है और यह इस साल अमेरिका और यूरोप में मांग में कमी की बड़ी वजह है।
मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक चेक रिपब्लिक, मिस्र, जॉर्डन, मैक्सिको, स्पेन, तुर्की, पनामा और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों की नई गार्मेंट कंपनियों ने चीन में लॉकडाउन के बाद भारत की कंपनियों से मोलभाव करना शुरू कर दिया है। बहरहाल उद्योग जगत का कहना है कि इस तरह के ऑर्डर पिछले साल की तुलना में मामूली है।
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